आयुर्वेद को 30 से अधिक देशों ने पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली के रूप में स्वीकार किया: प्रधानमंत्री मोदी
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आयुर्वेद को 30 से अधिक देशों ने पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली के रूप में स्वीकार किया: प्रधानमंत्री मोदी

- पीएम मोदी ने 9वीं विश्व आयुर्वेद कांग्रेस के समापन समारोह को संबोधित किया

by WEB DESK
Dec 11, 2022, 07:49 pm IST
in भारत
श्री नरेन्द्र मोदी, प्रधानमंत्री

श्री नरेन्द्र मोदी, प्रधानमंत्री

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आयुर्वेद को बढ़ावा देने के लिए सभी देशों को आगे आने का आह्वान करते हुए कहा कि 30 से अधिक देशों ने आयुर्वेद को पारंपरिक चिकित्सा पद्धति के रूप में स्वीकार किया है। उन्होंने कहा कि आयुर्वेद हमें जीवन जीने का तरीका सिखाता है। यह हमें सिखाता है कि आत्मा और शरीर दोनों स्वस्थ हों और इनके बीच समन्वय हो।

प्रधानमंत्री यहां आयोजित 9वीं विश्व आयुर्वेद कांग्रेस के समापन समारोह को संबोधित कर रहे थे। इससे पहले उन्होंने गोवा में अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान (एम्स) का उद्घाटन किया। साथ ही वर्चुअल माध्यम से गाजियाबाद में राष्ट्रीय यूनानी चिकित्सा संस्थान (एनआईयूएम) और दिल्ली में राष्ट्रीय होम्योपैथी संस्थान (एनआईएच) का उद्घाटन किया। इन संस्थानों को लगभग 970 करोड़ रुपये की कुल लागत से विकसित किया गया है। इनके माध्यम से, अस्पताल के बिस्तरों की संख्या में लगभग 500 की वृद्धि होगी और छात्रों के प्रवेश में भी लगभग 400 की वृद्धि होगी।

प्रधानमंत्री ने इस बात पर प्रकाश डाला कि विश्व आयुर्वेद कांग्रेस का आयोजन तब किया जा रहा है जब आजादी का अमृत काल की यात्रा चल रही है। प्रधानमंत्री ने कहा कि अमृत काल के प्रमुख संकल्पों में से एक भारत के वैज्ञानिक, ज्ञान और सांस्कृतिक अनुभव से वैश्विक कल्याण सुनिश्चित करना है और इसके लिए आयुर्वेद एक सशक्त और प्रभावी माध्यम है। भारत की जी-20 अध्यक्षता का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री ने जी-20 की थीम ‘वन अर्थ, वन फैमिली, वन फ्यूचर’ की जानकारी दी।

प्रधानमंत्री ने प्रसन्नता व्यक्त की कि दुनिया के 30 से अधिक देशों ने आयुर्वेद को पारंपरिक चिकित्सा पद्धति के रूप में मान्यता दी है। उन्होंने आयुर्वेद की व्यापक मान्यता सुनिश्चित करने के लिए और अधिक निरंतर काम करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि आज उद्घाटन किए गए तीन राष्ट्रीय संस्थान आयुष स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को नई गति प्रदान करेंगे।

आयुर्वेद के दार्शनिक आधार पर प्रधानमंत्री ने कहा कि आयुर्वेद उपचार से परे है और कल्याण को बढ़ावा देता है। आयुर्वेद के आदर्श वाक्य ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया’ का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि आयुर्वेद एक ऐसा विज्ञान है जिसका दर्शन, जिसका सिद्धांत सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः यानी, सबका सुख, सबका स्वास्थ्य है। उन्होंने कहा कि आयुर्वेद इलाज से आगे बढ़कर वेलनेस या कल्याण की बात करता और वेलनेस को बढ़ावा देता है। मोदी ने कहा कि आयुर्वेद हमें जीवन जीने का तरीका सिखाता है। उन्होंने कहा कि कुछ लोग समझते है कि आयुर्वेद, सिर्फ इलाज के लिए है लेकिन इसकी खूबी ये भी है कि आयुर्वेद हमें जीवन जीने का तरीका सिखाता है। उन्होंने कहा कि आयुर्वेद हमें सिखाता है कि हार्डवेयर सॉफ्टवेयर की तरह ही शरीर और मन भी एक साथ स्वस्थ रहने चाहिए, उनमें समन्वय रहना चाहिए।

आज की दुनिया में आयुर्वेद के विलंबित वैश्विक समझौते, सुगमता और स्वीकृति पर दुख व्यक्त करते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्नत विज्ञान केवल प्रमाण को पवित्र कब्र मानता है। ‘डेटा आधारित साक्ष्य’ के प्रलेखन की दिशा में लगातार काम करने की आवश्यकता पर बल देते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि योग और आयुर्वेद दुनिया के लिए नई उम्मीद हैं। हमारे पास आयुर्वेद का परिणाम और प्रभाव भी था, लेकिन प्रमाण के मामले में हम पीछे छूट रहे थे। इसलिए, आज हमें ‘डेटा बेस्ड एविडेंसेस’ का डॉक्युमेंटेशन करना होगा। उन्होंने कहा कि यह एक मार्गदर्शक है कि हम अपने मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को कैसे बनाए रखें। भारत ने दुनिया के सामने ‘वन अर्थ वन हेल्थ’ का फ्यूचरिस्टिक विजन रखा है। इसका मतलब स्वास्थ्य के लिए एक सार्वभौमिक दृष्टि है।

अर्थव्यवस्था में भी आयुर्वेद के महत्व पर प्रकाश डालते हुए, प्रधानमंत्री ने आयुर्वेद के क्षेत्र में नए अवसरों जैसे कि जड़ी-बूटियों की खेती, आयुष दवाओं के निर्माण और आपूर्ति, और डिजिटल सेवाओं के बारे में बात की। उन्होंने कहा कि इन क्षेत्रों में आयुष स्टार्टअप्स के लिए काफी संभावनाएं हैं। आयुर्वेद के क्षेत्र में सभी के लिए अवसरों के बारे में बात करते हुए, प्रधानमंत्री ने बताया कि लगभग 40,000 एमएसएमई आयुष क्षेत्र में सक्रिय हैं। आयुष उद्योग जो 8 साल पहले करीब 20 हजार करोड़ रुपये का था आज करीब 1.5 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गया है। इसका मतलब है कि 7-8 वर्षों में 7 गुना वृद्धि हुई है।

उन्होंने इस क्षेत्र के वैश्विक विकास पर भी विस्तार से बताया और कहा कि हर्बल दवाओं और मसालों का मौजूदा वैश्विक बाजार लगभग 120 बिलियन डॉलर या 10 लाख करोड़ रुपये का है। पारंपरिक चिकित्सा का यह क्षेत्र लगातार विस्तार कर रहा है और हमें इसकी हर संभावना का पूरा फायदा उठाना है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए हमारे किसानों के लिए कृषि का एक नया क्षेत्र खुल रहा है, जिसमें उन्हें अच्छी कीमत भी मिलेगी। इसमें युवाओं के लिए हजारों-लाखों नए रोजगार सृजित होंगे।

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