आप लोगों को याद होगा कि इसी वर्ष 10 जून को जुम्मे की नमाज के बाद झारखंड की राजधानी रांची को दंगे की आग में झुलसाने की कोशिश की गई थी। इस पर पुलिस ने सख्ती दिखाई तो रांची के वरीय पुलिस अधीक्षक सुरेंद्र कुमार झा का स्थानांतरण कर दिया गया। इस घटना में प्रतिबंधित संगठन पीएफआई की भूमिका बताई जा रही थी। घटना के बाद भाजपा ने हेमंत सरकार पर तुष्टीकरण के तहत हिंसा में शामिल लोगों को बचाने का भी आरोप लगाया था। राज्य सरकार ने रांची पुलिस के साथ-साथ सीआईडी से भी जांच कराने की बात कही, लेकिन जांच हुई नहीं। इस कारण इतनी बड़ी घटना पर अब तक किसी के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं हुई है।
अब यह मामला झारखंड उच्च न्यायालय पहुंच गया है। मुख्य न्यायाधीश डॉ रवि रंजन एवं न्यायाधीश एसएन प्रसाद की खंडपीठ मामले से जुड़ी एक याचिका पर सुनवाई कर रही है। 9 दिसंबर को अदालत के कहा कि रांची हिंसा मामले की जांच सही से नहीं हो रही है। इसके पीछे न्यायालय का कहना था कि कुछ मामलों की जांच सीआईडी कर रही है, तो कुछ पुलिस, जबकि दोनों की जांच रिपोर्ट में काफी अंतर पाया जा रहा है। अदालत ने कहा कि पुलिस और सीआईडी की जांच रिपोर्ट में अंतर आने पर जांच को बंद कर दिया जाएगा। इसी तरह की भिन्नता को देखते हुए अदालत ने यह भी पूछा कि अगर सरकार मामले की जांच नहीं करा पा रही है तो क्यों न इसकी जांच सीबीआई को सौंप दी जाए! अदालत ने इस मामले की अगली सुनवाई की तिथि 15 दिसंबर को तय की है। इस दिन राज्य के गृह सचिव और डीजीपी को सशरीर हाजिर होने का आदेश दिया है।
बता दें कि यह जनहित याचिका पंकज यादव नाम के एक व्यक्ति ने दाखिल कर पूरे मामले की जांच एनआईए से कराने की मांग की है। साथ ही झारखंड संपत्ति विनाश और क्षति निवारण विधेयक 2016 के अनुसार आरोपितों के घर को तोड़ने का आदेश देने का आग्रह किया गया है।
रांची हिंसा के बाद तत्कालीन वरीय पुलिस अधीक्षक सुरेंद्र कुमार झा के स्थानांतरण पर भी न्यायालय ने टिप्पणी की है। अदालत ने पूछा है कि ऐसी कौन सी प्रशासनिक अनिवार्यता थी जिसके चलते घटना के समय वहां मौजूद रांची के तत्कालीन वरीय पुलिस अधीक्षक को स्थानांतरित कर दिया गया था! अदालत ने इस मामले में स्थानांतरण से संबंधित दस्तावेज मंगवाया था। इस दस्तावेज से भी यह स्पष्ट नहीं हो पाया कि वरीय पुलिस अधीक्षक का स्थानांतरण क्यों किया गया! अदालत ने इस मामले को भी गृह सचिव और डीजीपी से स्पष्ट करने को कहा है। इस मामले में ऐसा पहली बार नहीं है कि अदालत ने सरकार को फटकार लगाई हो। इससे पहले भी कई बार अदालत जांच की गति को लेकर नाराजगी जता चुकी है।
आपको बता दें कि 10 जून को हुए प्रदर्शन में लगभग 10000 लोग शामिल हुए थे। इसके लिए झारखंड के खूंटी, लोहरदगा, पाकुड़, धनबाद सहित कई जिलों से मुसलमानों को रांची बुलाया गया था। उस दिन इन लोगों ने रांची को एक तरह से बंधक बना लिया था। पुलिस की प्राथमिकी के अनुसार उपद्रवियों द्वारा पुलिस पर अवैध हथियारों से करीब 80 राउंड फायरिंग की गई थी। इस दौरान यह भी पता चला था कि रांची को दंगों की आग में झुलसाने में पीएफआई और उत्तर प्रदेश के सहारनपुर से आए हुए लोगों की भूमिका भी रही है। इस दंगे में पुलिस पर पथराव और गोली चलाने से 12 पुलिसवाले घायल हुए थे। इसके बाद पुलिस की जवाबी कार्रवाई में 2 लोगों की मौत हो गई थी।
दंगे में शामिल लोगों के विरुद्ध कार्रवाई करने में देर होने से झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस ने भी पुलिस के आला अधिकारियों को फटकार लगाई थी। इसके बाद रांची पुलिस ने 14 जून को मुख्य सड़क एवं सभी चौक—चौराहों पर पत्थरबाजी और तोड़फोड़ में शामिल 31 दंगाइयों का पोस्टर लगाया था। इस पर भी सत्ताधारी दल झारखंड मुक्ति मोर्चा के वरिष्ठ नेता सुप्रियो भट्टाचार्य ने आपत्ति दर्ज कराई थी। इसके बाद पोस्टर तो हटा लिया गया, लेकिन प्रधान सचिव की ओर से तत्कालीन पुलिस अधीक्षक से स्पष्टीकरण मांगा गया था। इस घटना के कुछ दिन बाद वरीय पुलिस अधीक्षक सुरेंद्र कुमार झा का स्थानांतरण भी कर दिया गया था।
इस घटना के बाद सरकार ने जांच के लिए एसआईटी गठित की थी और उसके बाद जांच सीआईडी को दे दी गई। अब न्यायालय के अनुसार सीआईडी और पुलिस की जांच में काफी अंतर पाया जा रहा है। ऐसे में लोगों का कहना है कि वर्तमान सरकार कट्टरपंथियों को बचाने की फिराक में है। तभी तो कार्रवाई करने वाले पुलिस अधिकारियों पर ही गाज गिरा दी जा रही है।
इस पर भाजपा नेता बाबूलाल मरांडी ने प्रदेश की हेमंत सोरेन सरकार की मंशा पर भी सवाल उठाया है।
विगत 10 जून को रांची में हुई हिंसा की सुस्त जांच से नाराज़ मा. उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार से पूछा है कि क्यों न इसकी जांच सीबीआई को सौंप दी जाए?
राज्य के गृह सचिव और डीजीपी दोनों तलब किये गए हैं।
इस हिंसा की जांच में सरकार की सुस्ती के पीछे की मंशा बताने की जरुरत नहीं है।— Babulal Marandi (@yourBabulal) December 10, 2022
दस वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय। राजनीति, सामाजिक और सम-सामायिक मुद्दों पर पैनी नजर। कर्मभूमि झारखंड।
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