आज 10 दिसंबर है और आज ही विश्व मानवाधिकार दिवस मनाया जाता है। आज के दिन दुनियाभर में मानवाधिकार की बात होती है, लेकिन कोई भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान आदि देशों में रहने वाले उन हिदुंओं की बात नहीं करता है, जिन्हें वर्षों से दबाया जा रहा है, कुचला जा रहा है और उनके मंदिरों को तोड़ा जा रहा है।
मानवाधिकार के नाम पर दुनियाभर में लाखों संगठन हैं। ये संगठन दावा करते हैं कि जहां भी मानवाधिकार का उल्लंघन होता है, उसके विरुद्ध वे आवाज उठाते हैं। लेकिन गौर से देखने पर आपको पता चल जाएगा कि ये संगठन उन्हीं घटनाओं के विरुद्ध बोलते हैं, जिनमें पीड़ित मुसलमान हों या ईसाई। यहां तक कि ये संगठन उन आतंकवादियों के मानवाधिकार की भी बात करते हैं, जो मानव के सबसे बड़े दुश्मन हैं। हिंदुओं के मामलों में ये संगठन ऐसे चुप्पी साध लेते हैं, मानो उनके लिए हिंदू मानव ही नहीं हैं।
भारत में हिंदुओं की हत्या
बात पहले भारत की ही करते हैं। भारत में इसी वर्ष 11 ऐसी घटनाएं हुईं, जिनमें हिंदू मारे गए। लेकिन किसी भी मानवाधिकारी ने उन हिंदुओं की हत्या पर कुछ नहीं बोला। 2022 में पहली घटना दिल्ली में ही हुई। 17 जनवरी को दिल्ली के सुल्तानपुरी में हीरालाल गुजराती की हत्या इरफान ने कर दी। इरफान ने पहले हीरालाल की बहन के साथ बलात्कार किया था। इसी को लेकर हीरालाल के साथ उसका विवाद हुआ और उसने उनकी हत्या कर दी। इसके बाद 25 फरवरी को अमदाबाद के पास धुंधका में किशन भरवाड की हत्या हुई। फिर 20 फरवरी को कर्नाटक के शिमोगा में हर्षा नामक एक युवक की हत्या कर दी गई। 21 जून को पुणे में उमेश कोल्हे की हत्या की हुई। 29 जून को हरियाणा के पलवल में विक्की भारद्वाज को मारा गया। 28 जून को उदयपुर में
की हत्या बहुत ही बर्बरता से कर दी गई। 18 मई को मुम्बई की हिंदू बेटी श्रद्धा को मारकर हत्यारे आफताब ने उसके शव के 35 टुकड़े कर दिए। लगभग छह महीने बाद उसकी करतूत बाहर आई और अब जांच चल रही है। अभी श्रद्धा की हत्या का मामला ठंडा भी नहीं हुआ था कि भागलपुर के पीरपैंती में 3 दिसंबर को नीलम यादव को 16 टुकड़ों में काट दिया गया। इन हत्याओं पर कभी किसी मानवाधिकारी ने कुछ नहीं बोला।
प्रतिदिन 750 हिंदू परिवार बांग्लादेश छोड़ रहे हैं
अब थोड़ी चर्चा बांग्लादेश की। जिहादी तत्व कोई अफवाह उड़ाकर हिंदुओें पर टूट पड़ते हैं। इसी वर्ष 17 मार्च को बांग्लादेश की राजधानी ढाका स्थित इस्कॉन के राधाकांत मंदिर पर लगभग 200 जिहादियों ने हमला किया। गत 13 वर्ष में बांग्लादेश में इस्कॉन मंदिर पर छह हमले हुए हैं। पहला हमला 2009 में चटगांव स्थित इस्कॉन मंदिर पर हुआ। 2015 में इस्कॉन मंदिर, दिनाजपुर पर आतंकवादियों ने हमला किया। 2016 में सिलहट के इस्कॉन मंदिर पर हमला किया गया। 2018 में इस्कॉन की ओर से ढाका में निकाली गई रथयात्रा पर हमला किया गया। 2020 में अंसार अल-इस्लाम समूह ने इस्कॉन मंदिर, ढाका पर हमले की योजना बनाई, लेकिन पुलिस ने उसके गुर्गों को गिरफ्तार कर लिया था। 2021 में जिहादियों की भीड़ ने नोआखली में इस्कॉन मंदिर पर हमला किया।
बांग्लादेश मानवाधिकार संगठन ऐनओ सलीश केंद्र (एएसके) की एक रिपोर्ट के अनुसार 2013 से 2021 तक बांग्लादेश में हिंदुओं पर 3,600 हमले हुए। 550 से अधिक हिंदू घरों और 440 दुकानों और अन्य व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को निशाना बनाया गया, उनमें तोड़फोड़ और आगजनी की गई। इस आठ साल में हिंदू मंदिरों में तोड़फोड़ और आगजनी के 1,670 से अधिक मामले दर्ज किए गए। इस दौरान 11 हिंदुओं को मारा गया और 862 को बुरी तरह घायल कर दिया गया। वहीं ‘बांग्लादेश हिंदू बौद्धिस्ट क्रिस्चियन यूनिटी काउंसिल’ का दावा है कि पुलिस अधिकतर घटनाओं की एफआईआर दर्ज नहीं करती है। इस कारण दुनिया के सामने बांग्लादेश के हिंदुओं के साथ घटित होने वाली घटनाएं जाती ही नहीं हैं।
आएदिन होने वाले हमलों से बांग्लादेश के हिंदू भारत की ओर पलायन करते हैं। जो ऐसा नहीं कर पाते हैं, उन्हें जबरन मुसलमान बना दिया जाता है। इस कारण बांग्लादेश में मुस्लिम—बहुल क्षेत्रों से हिंदू निकल चुके हैं। वे जो थोड़े—बहुत हिंदू इलाके हैं, वहां रहने को मजबूर हैं। इन वजहों से बांग्लादेश में हिंदुओं की आबादी तेजी से घट रही है।
2011 की जनगणना के अनुसार 16.5 करोड़ की जनसंख्या वाले बांग्लादेश में हिंदुओं की संख्या 8.5 प्रतिशत है, जबकि 90 प्रतिशत से अधिक मुस्लिम आबादी है। अन्य अल्पसंख्यकों में बौद्ध 0.6 प्रतिशत और ईसाई 0.4 प्रतिशत ही हैं। अब 11 वर्ष बाद तो हिंदुओं की संख्या और घट गई है। बांग्लादेश की एक सरकारी रिपोर्ट के अनुसार 1980 के दशक में बांग्लादेश में हिंदुओं की संख्या 13.5 प्रतिशत थी, जबकि 1947 में वहां 30 प्रतिशत हिंदू थे।
ढाका विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अब्दुल बरकत द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार प्रतिदिन 750 हिंदू बांग्लादेश से पलायन कर रहे हैं। इसके कई कारण हैं। जैसे वहां के हिंदुओं को लगता है कि न जाने कब उन्हें मार दिया जाएगा और उनकी संपत्ति पर जिहादी तत्व कब्जा कर लेंगे। इसलिए वहां के हिंदू औने—पौने दामों में अपनी संपत्ति बेचकर भाग रहे हैं। कई हिंदू तो ऐसा भी नहीं कर पा रहे हैं। अचानक उन्हें सब कुछ छोड़कर पलायन करना पड़ रहा है।
इन बांग्लादेशी हिंदुओं के लिए भी कोई मानवाधिकार संगठन कुछ नहीं बोलता है।
हिंदुओं के लिए पाकिस्तान बना नरकिस्तान
पाकिस्तान तो हिंदुओं के लिए मौत का कुंआ बन चुका है। ऐसा कोई दिन नहीं जाता है, जब वहां किसी हिंदू लड़की का अपहरण और जबरन निकाह न होता हो। ऐसे ही वहां हिंदुओं की हत्या भी आम बात है। ‘पाकिस्तानी हिंदू परिषद’ के अनुसार पाकिस्तान से प्रताड़ित हिंदू भारत जाने के लिए तड़पते रहते हैं। उसी के अनुसार प्रतिवर्ष 5,000 से ज्यादा पाकिस्तानी हिंदू जान और धर्म बचाने के लिए भारत जाते हैं और वे कभी पाकिस्तान वापस नहीं लौटना चाहते। दिल्ली में रहने वाले एक पाकिस्तानी हिंदू के अनुसार, ”जो हिंदू परिवार पाकिस्तान में रहते हैं, उनके सामनेे दो ही विकल्प हैं— एक, मुसलमान बनो और दूसरा, फिर भागो। जो हिंदू कहीं नहीं जा पाते हैं, उन्हें मुसलमान बना दिया जाता है। जो मुसलमान नहीं बनते हैं, उन्हें मार दिया जाता है। इस कारण पाकिस्तान में हिंदू एक प्रतिशत भी नहीं बचे हैं।”
मजहबी प्रताड़ना के कारण एक देश से ही हिंदू खत्म हो रहे हैं, लेकिन कभी किसी मानवाधिकारी ने पाकिस्तानी हिंदुओं के पक्ष में एक बयान तक नहीं दिया।
मानवाधिकार कार्यकर्ता और सर्वोच्च न्यायालय में अधिवक्ता राजेश गोगना तो कई चौंकाने वाली बातें करते हैं। उन्होंने बताया कि भूटान, म्यांमार और यहां तक कि श्रीलंका में भी हिंदुओं की स्थिति ठीक नहीं है। इसके बावजूद दुनिया के 99 प्रतिशत मानवाधिकारी चुप हैं। वे इन हिंदुओं के लिए बोलना ठीक नहीं समझते हैं।
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