महाराष्ट्र के राज्यपाल श्री भगत सिंह कोश्यारी ने ‘मुंबई संकल्प’ कार्यक्रम में मुंबई हमले में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि उस त्रासदी की पीड़ा केवल मुंबई की नहीं, पूरे भारत की है। कार्यक्रम के बाद उन्होंने दिनेश मानसेरा से हुई बातचीत में पाञ्चजन्य के साथ अपने अनुभवों को भी साझा किया
पाञ्चजन्य के मुंबई संकल्प कार्यक्रम के समापन समारोह को महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने संबोधित किया। उन्होंने मुंबई हमले में मारे गए लोगों और प्राण न्योछावर करने वाले सुरक्षाकर्मियों को श्रद्धांजलि भी अर्पित की। उन्होंने ऐसे कार्यक्रमों को देश के लिए आवश्यक बताया।
उन्होंने 26/11 के बलिदानियों और उन परिवारों को, जिन्होंने उस पीड़ा को सहन किया, उनके साथ अपनी संवेदना भी जताई। उन्होंने कहा कि वैसे तो पीड़ा केवल उन परिवारों की नहीं है, वह पीड़ा सारे भारतवासियों की है। दुनिया भर में जो भी शांति चाहता है, अमन चाहता है, ऐसे सब लोगों की पीड़ा है। मनुष्य की स्मृति कमजोर है, हम भूल जाते हैं। लेकिन हम उसको भूले नहीं। हम ऐसी घटनाओं को याद इसलिए नहीं करते कि हम कमजोर हैं।
हम ऐसी घटनाओं को इसलिए याद करते हैं कि देखो हमने उसका मुकाबला कैसे किया और आगे भविष्य में इस प्रकार की कोई घटना हो ही नहीं, उसके लिए हम हर तरह से तैयार हैं। इसके लिए ऐसे कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। ऐसे कार्यक्रमों के माध्यम से हम लोग यह संकल्प लेते हैं कि यह काम केवल सरकार का नहीं, जनता और सरकार, दोनों को मिलकर लड़ना होगा। यह संकल्प केवल मुंबई का संकल्प नहीं है, यह मुंबई के माध्यम से पूरे देश का संकल्प है।
संवाद का माध्यम पाञ्चजन्य
‘पाञ्चजन्य’ से बातचीत करते हुए कोश्यारी बताते हैं कि किस तरह वे पिथौरागढ़, अल्मोड़ा, हल्द्वानी, नैनीताल के सुदूर गांवों में ‘पाञ्चजन्य’ का प्रसार करते थे। श्री कोश्यारी बताते हैं कि ‘पाञ्चजन्य’ एकमात्र ऐसा माध्यम था जो हमारे संवाद साहित्य का काम करता था। जिससे भी मिलने गए वहां एक ‘पाञ्चजन्य’ छोड़ आए, ताकि वे पढ़ें और राष्ट्रीय विचारधारा से जुड़ जाएं। कोश्यारी बताते हैं कि जब-जब देश में बड़े आंदोलन हुए, तब-तब ‘पाञ्चजन्य’ ने शंखनाद किया।
आपातकाल में पाञ्चजन्य
आपातकाल के दौरान कांग्रेस सरकार ने संघ पर प्रतिबंध लगाया और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को जेल में डालना शुरू किया। जब मुझे गिरफ्तार करने पुलिस आई, तब मेरे कमरे की तलाशी ली। पुलिस ने तलाशी के दौरान दो बड़ी पुस्तकें अपने कब्जे में ले लीं। उन्होंने सोचा यह कोई रामायण या गीता ग्रंथ होगा, जबकि वह थी पाञ्चजन्य की फाइल।
मैं ‘पाञ्चजन्य’ की हर प्रति की एक फाइल बना कर रखता था, क्योंकि इसी से हमें अपनी विचारधारा और ऐसी सामग्री मिलती थी जो हमें संवाद में मदद करती थी। यह मेरा ‘पाञ्चजन्य’ के साथ दिल से लगाव था।
पुलिस ने गिरफ्तारी के दौरान मेरी ‘पाञ्चजन्य’ की फाइल को जब्त कर लिया और पुलिस कागजी कार्रवाई में यह दिखाया कि इनके पास से आपत्तिजनक साहित्य बरामद किया गया।
इस कारण से ‘पाञ्चजन्य’ से मेरे जीवन का एक भावुक रिश्ता रहा है। प्रथम संपादक श्रद्धेय अटल जी, उत्तराखंड के भी संस्थापक रहे। वचनेश त्रिपाठी जी, दीनानाथ मिश्र जी, देवेंद्र स्वरूप जी, बल्देव जी, तरुण जी सबसे मेरा व्यक्तिगत परिचय रहा और हमने उनसे बहुत कुछ अनुभव पाया है।
उत्तरांचल राज्य आंदोलन में पाञ्चजन्य
श्री कोश्यारी बताते हैं कि देश में जब आरक्षण आंदोलन चल रहा था, तभी पृथक पर्वतीय राज्य की परिकल्पना पर बात होने लगी। हमने उस दौरान ‘पाञ्चजन्य’ में उत्तरांचल राज्य की जरूरत पर कई लेख लिखे और भी बड़े नेताओं ने, सामाजिक संगठनों के बुद्धिजीवियों ने अपने विचार ‘पाञ्चजन्य’ के माध्यम से साझा किए और उत्तरांचल राज्य के लिए आंदोलन का विस्तार, वैचारिक दृष्टि से भी होने लगा। श्री कोश्यारी कहते हैं कि चूंकि मैं पत्रकार भी रहा, इसलिए मेरे लिखे को ‘पाञ्चजन्य’ में स्थान भी प्रमुखता से मिला और राज्य आंदोलन की धार पैनी करने में मदद मिली।
श्री रामजन्मभूमि आंदोलन में पाञ्चजन्य
राज्यपाल कोश्यारी बताते हैं कि श्री रामजन्मभूमि आंदोलन के दौरान ‘पाञ्चजन्य’ की इतनी मांग होती थी कि हम उसे पूरा नहीं करवा पाते थे। कारसेवकों पर जब मुलायम सरकार ने गोलियां चलवाई और जब ढांचा गिराया गया तब लोग देश के अखबारों में सबसे ज्यादा विश्वास ‘पाञ्चजन्य’ की खबरों पर करते थे। मुझे याद है कि लोग ‘पाञ्चजन्य’ के पन्नों की छायाप्रति करवा कर बांटते थे।
का बदला स्वरूप पाञ्चजन्य
कोश्यारी कहते हैं कि मैंने ‘पाञ्चजन्य’ को कुछ साल पहले जब नए स्वरूप में देखा, तो मुझे आत्मसंतुष्टि हुई। पत्रिका के रूप को हम पहले केवल विशेषांक के रूप में देखते थे। अब मानो हर सप्ताह विशेषांक आ रहा है। डिजिटल प्लेटफार्म, वेबसाइट, ट्वीटर, फेसबुक और अन्य माध्यमों से ‘पाञ्चजन्य’ का प्रचार-प्रसार हुआ है, इसे देख कर मुझे हार्दिक प्रसन्नता है।
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