ऐसा लगता है कि बिहार धीरे—धीरे जमीन जिहादियों की गिरफ्त में जा रहा है। जिहादी तत्व बड़े पैमाने पर सरकारी जमीन पर कब्जा कर रहे हैं। पूर्णिया, किशनगंज, अररिया, कटिहार, भागलपुर जैसे जिलों में सरकारी जमीन पर कब्जा करने की कई खबरें आ रही हैं।
बिहार में सैकड़ों एकड़ सरकारी जमीन पर जिहादी तत्वों और बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठियों का कब्जा हो चुका है। अब ये लोग निजी जमीन पर भी कब्जा करने का ‘खेल’ खेल रहे हैं। इसका ताजा उदाहरण है भागलुपर के पीरपैंती में नीलम यादव की बर्बर हत्या। बता दें कि 03 दिसंबर को 40 वर्षीया नीलम यादव की नृशंस हत्या कर दी गई। मो. शकील और मो. शेखजुद्दीन ने मृतका के शरीर को 16 टुकड़ों में काट दिया। फिलहाल दोनों जेल में हैं।
इस मामले में पुलिस ने यह बताने का प्रयास किया कि पैसे के लेनदेन मेें हुए विवाद के बाद नीलम की हत्या हुई। लेकिन नीलम के गांव वालों का मानना है कि नीलम की हत्या जमीन जिहाद के लिए हुई। यही नहीं, विपक्ष के नेता विजय सिन्हा ने भी इसे जमीन जिहाद से जोड़ा है।
बता दें कि इस नीलम हत्याकांड का मुख्य आरोपी शकील मियां अजगरा पहाड़ के नजदीक सरकारी जमीन पर घर बनाकर रहता था। वहां अपराधियों का जमावड़ा लगा रहता है। लोगों का कहना है कि उसने साजिशन इस स्थान पर अपना घर बनाया। उसके घर के पास से सात पंचायतों का रास्ता है। शकील महिलाओं को लेकर इलाके में बदनाम है। वह आस-पास की महिलाओं और बच्चियों को परेशान करता रहता था। पुलिस का उसे संरक्षण प्राप्त था। इसलिए कोई विरोध नहीं करता था।
अजगरा पहाड़ की तलहट्ट़ी पर अनधिकृत रूप से रहने वालों की संख्या काफी अधिक है। अजगरा पहाड़ के पूरब में एक मजार है। 1989 के दंगों के बाद वहां कई लोग आकर रहने लगे। धीरे—धीरे वहां मुसलमानों की एक बड़ी आबादी बस गई। कुछ लोग यह भी कहते हैं कि उनमें कुछ बांग्लादेशी भी हैं। वोट बैंक की राजनीति के कारण इनकी सघन पड़ताल नहीं हुई। बिहार सरकार ने भी इन लोगों को वहां से नहीं हटाया। वहां रहने वाले ज्यादातर लोग पशुओं की तस्करी और पत्थर की अवैध निकासी जैसे कार्यों में संलग्न हैं। पहाड़ के पूरब में जब जमीन नहीं बची तो लोग पश्चिम की तरफ बसने लगे। जब वहां भी जमीन नहीं बची तो ये लोग आसपास के गांव वालों की जमीन पर कब्जा करने के लिए तरह—तरह के हथकंडे अपनाने लगे। पीरपैंती के संतोष कुमार नीलम की हत्या को इसी नजरिए से देखते हैं। उनका कहना है कि नीलम की हत्या उसकी जमीन पर कब्जा करने के लिए हुई है।
बता दें कि पीरपैंती से बिहार का कटिहार, झारखंड का साहेबगंज और पश्चिम बंगाल का मालदा ज्यादा दूर नहीं हैं। पीरपैंती से बांग्लादेश की दूरी भी लगभग 500 कि.मी. है। कटिहार में जमीन जिहाद की घटनायें अक्सर घटती रही हैं। जमीन पर कब्जे में जो लोग बाधक बनते हैं, उनकी हत्या कर दी जाती है। कुछ वर्ष पहले कटिहार में मंजुल दास, उनकी अपाहिज गर्भवती पत्नी और बच्चों को आग में झुलसाकर मार दिया गया था। इसी प्रकार पूर्णिया में भी कई घटनायें घटी हैं। पूर्णिया का कस्बा, अमौर और बायसी; अररिया का जोकीहाट और पूरा किशनगंज जिला इस मामले में कुख्यात है। वहां यह कहकर भी हिंदुओं को धमकाया जाता है कि उनके कारण मुसलमानों के परिजनों को जमीन नहीं मिल रही है। हिंदू अपनी जमीन छोड़ दें, नहीं तो कोई भी अंजाम भुगतने को तैयार रहें। कस्बा में तो मंदिर की जमीन पर ही कब्रिस्तान बना दिया गया। पूर्णिया से किशनगंज जाने के रास्ते में बायसी प्रखंड के आसपास फोरलेन पर ही जिहादी अपना कब्जा जमा रहे हैं। जिहादियों ने पूर्णिया प्रमंडल के बाद अब भागलपुर जैसे प्रमंडलों में अपने पैर पसारने शुरू कर दिए हैं।
नेता प्रतिपक्ष विजय सिन्हा भी स्वीकार करते हैं कि जिहादी और बांग्लादेशी पहले पूर्णिया प्रमंडल तक सीमित थे, लेकिन अब इनकी पहुंच मध्य बिहार तक हो गई है। उनका कहना है कि सत्ता पक्ष ने वोट के लिए बिहार को जिहादियों का गढ़ बना दिया है। सरकारी जमीन पर उनका कब्जा हो रहा है। छोटे-छोटे मंदिरों को मदरसों का रूप दिया जा रहा है। प्रशासन का संरक्षण मिलने से इनका मनोबल बढ़ रहा है। उन्होंने राज्य के एक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी को इसका दोषी मानते हुए बताया कि उक्त अधिकारी की मदद से जिहादियों को हर तरह का संरक्षण प्रदान किया जा रहा है। पुलिस अधिकारियों को बचाने में लगी रहती है। जन दबाव में आकर पुलिस अपराधियों को गिरफ्तार तो करती है लेकिन साक्ष्यों की कमी का हवाला देकर उचित कार्रवाई नहीं करती।
*प्रशासन मुद्दे को भटकाने में लगा*
नीलम देवी की हत्या के नाम पर भी प्रशासन लोगों को उलझाने में लगा है। भागलपुर के पुलिस अधीक्षक स्वर्ण प्रभात ने इसे आपसी विवाद में उठाया गया त्वरित कदम बताया है। कानून के जानकार बताते हैं कि साजिशन और त्वरित प्रतिक्रिया में की गई हत्या का दंड अलग-अलग है। विजय सिन्हा पहले ही कह चुके हैं कि पुलिस ऐसे मामलों को उलझाती है, जिससे जिहादियों को बचाया जा सके। बिहार भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. संजय जायसवाल ने पुलिस अधीक्षक के बयान को अत्यंत खेदजनक बताया है। उन्होंने प्रशासन से प्रश्न किया है कि अगर बहुसंख्यक समाज का कोई व्यक्ति अल्पसंख्यक समाज के किसी व्यक्ति से उधार लेगा और समय पर लौटा नहीं पाएगा तो क्या उसे अंग-भंग करके मार डाला जायेगा? बिहार के प्रशासन पर भी यह बड़ा प्रश्न चिन्ह् है। उन्होंने पुलिस अधीक्षक से अपने बयान को तुरंत वापस लेने की मांग भी की है।
इस हत्याकांड को लेकर एक बात यह भी कही जा रही है कि नीलम ने अपनी बेटी के विवाह के लिए शकील से 2,00,000 रु कर्ज लिए थे। पस पर लोगों को भरोसा नहीं हो रहा है। शकील मजदूरी करता था और शेखजुद्दीन बैलगाड़ी चलाता था। इनकी आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं की ये लोग किसी को 2 लाख रूपये दे सकें। इसलिए लोग कह रहे हैं कि पैसे के लेनदेन की बात गलत है। इसलिए इसकी निष्पक्षता से जांच की मांग की जा रही है।
पूरा परिवार दहशत में
बहरहाल, नीलम देवी की नृशंस हत्या के बाद पूरा परिवार सशंकित है। परिवार के लोगों को डर है कि क्षेत्र से पुलिस की वापसी के बाद जिहादी तत्व गांव पर हमला करेंगे। नीलम देवी की इकलौती बेटी नीतू अनहोनी की आशंका से दहशत में है। उसे अपनी पढ़ाई की भी चिंता है। गांव से निकलकर पीरपैंती बाजार या स्कूल जाने का एकलौता रास्ता अजगरा पहाड़ी से सटे घनी झाड़ियों से होकर है। इस स्थान पर शकील, शेखजुद्दीन और उनके नाते-रिश्तेदारों ने अवैध रूप से घर बना रखे हैं। इनका इस क्षेत्र में दहशत है।
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