उत्तराखण्ड की पवित्र पावन भूमि एक ओर धार्मिक, आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक अनुष्ठान स्थली रही है, वहीं यह देवभूमि अनेक वीर एवं वीरांगनाओं की जन्मस्थली भी रही है। देवभूमि उत्तराखण्ड के लाट सुबेदार बलभद्र सिंह नेगी, विक्टोरिया क्रास विजेता सुबेदार दरबान सिंह, विक्टोरिया क्रास विजेता रायफलमैन गब्बर सिंह रावत, कर्नल बुद्धीसिंह रावत, मेजर हर्षवर्धन बहुगुणा आदि जैसे नाम सदा अमर रहेंगे। ऐसे बहादुरों की वीरता से परिपूर्ण इतिहास हमारे लिए बेहद गर्व का विषय है। इनके अदम्य साहस, शौर्य एवं वीरता ने उत्तराखण्ड का नाम सदैव ऊंचा किया है। इस ऐतिहासिक क्रम में एक अमूल्य हीरा जिसने देश के लिए सर्वस्व न्यौछावर कर दिया था, बिपिन लक्ष्मण सिंह रावत जिनकी नेतृत्व क्षमता पर भारतीय सेना बेहद गौरवान्वित महसूस करती है।
बिपिन रावत का जन्म भारत के अति विकट भौगोलिक परिस्थितियों वाले राज्य उत्तराखण्ड राज्य के पौड़ी गढ़वाल में 16 मार्च 1958 को हुआ था। देशभक्त चरित्र से परिपूर्ण यह परिवार कई पीढ़ियों से भारतीय सेना में सेवाएं दे रहा है। बिपिन रावत के पिता लक्ष्मण सिंह रावत उत्तराखण्ड के पौड़ी गढ़वाल जिले के ग्राम सैंजी में निवास करते थे। लक्ष्मण सिंह रावत भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट जनरल के पद से सेवानिवृत्त हुए थे। बिपिन रावत की माता उत्तराखण्ड राज्य के उत्तरकाशी क्षेत्र से थीं और उत्तरकाशी विधानसभा क्षेत्र से विधायक रह चुके किशन सिंह परमार की पुत्री थीं। बिपिन रावत की प्रारंभिक शिक्षा देहरादून के कैंबरीन हॉल स्कूल के साथ हिमाचल प्रदेश स्थित शिमला के सेंट एडवर्ड स्कूल से हुई थी, इसके बाद इन्होंने खडकवासला स्थित राष्ट्रीय रक्षा अकादमी में प्रवेश लिया था। बिपिन रावत ने भारतीय सैन्य अकादमी, देहरादून से प्रथम श्रेणी में स्नातक की उपाधि प्राप्त की थी, यहां उन्हें बेहतरीन प्रदर्शन के लिए सोर्ड ऑफ ऑनर का सम्मान दिया गया था। बिपिन रावत ने 11वीं गोरखा राइफल की पांचवी बटालियन से सन 1978 में अपने सैन्य करियर की शुरुआत की थी और जनवरी सन 1979 में भारतीय सेना से मिजोरम में प्रथम नियुक्ति पाई थी।
बिपिन रावत ने डिफेंस सर्विसेज स्टाफ कॉलेज, वेलिंगटन से शिक्षा प्राप्त की और यूनाइटेड स्टेट्स आर्मी कमांड एंड जनरल स्टाफ़ कॉलेज से भी सन 1997 में उपाधि ग्रहण की थी। उन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय से रक्षा अध्ययन विषय में एमफिल की उपाधि एवं प्रबन्धन एवं कंप्यूटर अध्ययन में डिप्लोमा भी प्राप्त किया था। सन 2011 में चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय से बिपिन रावत को सैन्य मीडिया अध्ययन के क्षेत्र में शोध अध्ययन के लिए पी.एच.डी. की मानद उपाधि दी गयी थी। 1 सितंबर सन 2016 को उन्होंने भारतीय सेना के सैन्य उप-प्रमुख का पदभार संभाला था। इसके पश्चात भारतीय थल सेनाध्यक्ष के पद पर 31 दिसंबर 2016 से 31 दिसंबर 2019 तक रहे थे। जम्मू कश्मीर राज्य के पुलवामा में भीषण आतंकी हमले में 40 से अधिक भारतीय सैनिकों के बलिदान होने के पश्चात भारत के सैन्य प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने सन 2019 में पाक अधिग्रहित कश्मीर के बालाकोट में सर्जिकल स्ट्राइक कर जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी ट्रेनिंग सेंटर को निशाना बनाकर किए गए हवाई हमलों का नेतृत्व किया था। बिपिन रावत ने 1 जनवरी सन 2020 को भारत के रक्षा प्रमुख का पद भार ग्रहण किया था।
भारत के रक्षा प्रमुख के रूप में जनरल बिपिन रावत 8 दिसम्बर सन 2021 को निजी स्टाफ़ के सदस्यों तथा पत्नी के साथ भारतीय वायुसेना के एमआई-17 हेलिकॉप्टर पर सुलुरु वायुसेना हवाई अड्डे से वेलिंगटन स्थित रक्षा सेवा स्टाफ़ कॉलेज जा रहे थे वहां उनको एक व्याख्यान प्रस्तुत करना था। जनरल बिपिन रावत को लेकर जा रहा सेना का हेलीकाप्टर तमिलनाडु के नीलगिरि जिले में कुन्नूर तालुके के बांदीशोला के पास निजी चाय बागान की आवासीय कॉलोनी के समीप दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। जनरल बिपिन रावत को उनकी पत्नी समेत 11 सैन्य अधिकारियों के निधन की पुष्टि बाद में भारतीय वायुसेना द्वारा की गई थी।
देहावसान के समय जनरल बिपिन रावत की उम्र 63 वर्ष थी। 10 दिसम्बर सन 2021 को जनरल बिपिन लक्ष्मण सिंह रावत का अंतिम संस्कार सैन्य सम्मान के साथ 17 तोपों की सलामी देते हुए बरार चौक पर संपन्न हुआ। भारतीय सेना में सैन्य सेवाएं प्रस्तुत करते समय जनरल बिपिन रावत को उनके उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए परम विशिष्ट सेवा पदक, उत्तम युद्ध सेवा पदक, अति विशिष्ट सेवा पदक, युद्ध सेवा पदक, सेना पदक, विशिष्ट सेवा पदक आदि अनेकों विशिष्ट सम्मान से विभूषित किया गया था। जनरल बिपिन रावत को मरणोपरांत भारत सरकार ने सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया है।
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