उत्तर कोरिया के सनकी माने जाने वाले तानाशाह शासक किम जोंग उन आएदिन मिसाइलें दागकर दुनिया को घुड़कियां देने के लिए कुख्यात हैं। उनके शासन में उनके पिता और उससे पहले दादा के काल जैसे ही वहां के नागरिक हर तरह की किल्लतें झेलते हुए भी शासक के प्रति ‘वफादारी’ जताने और उसकी हर हरकत की ‘तारीफ’ करने को भी बाध्य हैं। बाहरी दुनिया से उनका संपर्क इसीलिए काटकर रखा गया है कि कहीं वे भी लोकतंत्र के असली मायने न समझ लें और कहीं ‘परिवार’ के लिए मुसीबत न खड़ी कर दें।
अब तानाशाह किम का नया फरमान सामने आने पर वहां के लोगों की मुसीबतें और बढ़ती दिख रही हैं। उनसे साफ कह दिया गया है कि वे अपने बच्चों के नाम ऐसे रखें जिनसे देश और तानाशाह के प्रति वफादारी झलके। बच्चों के नामों के अर्थ बम, गन और उपग्रह हों तो ‘किम बहुत खुश होगा’।
उत्तर कोरिया का तानाशाह चाहता है कि लोग अपने बच्चों के नाम उदाहरण के लिए, चोंग यानी बंदूक रखें, चुन सिम यानी वफादारी रखें, पोक यानी बम रखें और उइ सोंग यानी उपग्रह रखें। जिन बच्चों या बड़ों के नाम प्रेम, सुंदरता जैसे भाव झलकाने वाले हैं उनको भी फरमान सुनाया गया है कि वे अपने नाम बदल लें।
प्राप्त जानकारी के अनुसार, उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग चाहते हैं कि उनके देश के बच्चों के नामों से ही ‘मासूमियत’ नहीं बलिक् देशभक्ति का भाव प्रकट हो। जैसा पहले बताया, किम जोंग उन के फैसले विवादित भले होते हों पर उनको मानने के लिए नागरिक बाध्य बना दिए जाते हैं। उनका यह नया फरमान भी देश के नागरिकों के लिए सुनने में अजीब भले है लेकिन अब से आगे वे इसे नहीं मानेंगे तो कड़ी सजा की तलवार लटकी रहेगी। इसके लिए किम ने सबके लिए यह नया नियम लागू करने की घोषणा कर दी है।
तानाशाह किम जोंग उन चाहते हैं कि उत्तर कोरिया के बच्चों का नाम बम, गन और मिसाइल के नाम पर रखा जाए. ऐसा इसलिए क्योंकि बच्चों के नाम से सॉफ्टनेस नहीं बल्कि देशभक्ति का जज़्बा झलके। ताजा रिपोर्ट बताती है कि उत्तर कोरिया का तानाशाह चाहता है कि लोग अपने बच्चों के नाम उदाहरण के लिए, चोंग यानी बंदूक रखें, चुन सिम यानी वफादारी रखें, पोक यानी बम रखें और उइ सोंग यानी उपग्रह रखें। जिन बच्चों या बड़ों के नाम प्रेम, सुंदरता जैसे भाव झलकाने वाले हैं उनको भी फरमान सुनाया गया है कि वे अपने नाम बदल लें।
पहले वाले ‘गलत’ नाम बदलने का सिलसिला पिछले महीने सरकार द्वारा जारी किए नोटिस के बाद शुरू कर दिया गया है। लोग भले इससे परेशान हो रही हैं, लेकिन सरकार की तरफ से कोई सुनवाई नहीं है। प्रशासन लोगों पर बच्चों के नाम बदलने के लिए दबाव डाल रहा है। शिकायतें सब कूड़ेदान में फेंकी जा रही हैं क्योंकि तानाशाह के फरमान के सामने सब दलीलें बेकार ही होती आई हैं। इतना ही नहीं, दलील देने वालों को उलटे ‘सबक’ भी सिखा दिया जाता है।
उल्लेखनीय है कि आज के दौर में भी उत्तर कोरिया ऐसा देश है जहां तानाशाह तंत्र तय करता है कि आम लोग कितना और कितनी देर हंसेंगे या तालियां बजाएंगे, कब बैठेंगे और कब खड़े होंगे, किसकी उपासना करेंगे किसकी नहीं, किसका कहा मानेंगे और किसका नहीं। नागरिकों की अपनी पसंद को कोई मोल ही नहीं है। सरकारी आदेश की अवहेलना बहुत बड़ा अपराध माना जाता है और इसके लिए सजाए मौत तक दी जाती रही है।
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