वन विभाग में आईएफएस अधिकारियों की गुटबाजी और मन मुटाव के चलते बाघों और अन्य वन्यजीव जंतुओं के लिए बनाए जाने वाले अस्पताल की योजना ठंडे बस्ते में पड़ी हुई है। इस अस्पताल के लिए 2017 में 18 करोड़ रुपए केंद्र सरकार ने दिए थे, जो आज भी डंप पड़े हुए हैं।
हल्द्वानी में प्रस्तावित जू पार्क में वन्यजीवों के लिए एक पशु अस्पताल बनाया जाना था, जहां टाइगर के साथ-साथ अन्य जंगली जानवरों के घायल होने पर उन्हें रेस्क्यू कर यहां लाकर इलाज किया जाना था। ये योजना केंद्र सरकार के वन जलवायु मंत्रालय के द्वारा मंजूर की गई थी और इसके लिए केंद्र सरकार द्वारा 18 करोड़ रुपए भी दे दिए गए थे। योजना पर काम तो दूर उसके लिए निर्माण एजेंसी तक आज तक फाइनल नहीं की गई।
जानकारी के मुताबिक इस योजना को ठंडे बस्ते में रखने के लिए वन विभाग के आईएफएस अधिकारियों का आपसी मन मुटाव को जिम्मेदार माना जा रहा है। प्रोजेक्ट को लाने के लिए श्रेय लेने की आपसी खींचतान में ये योजना डंप हो गई। उल्लेखनीय है कि सरकार इसी जगह के बराबर में यहां अंतरराष्ट्रीय जू का निर्माण करने वाली है। ये योजना भी केंद्र की मदद से अथवा पीपीपी मोड में पूरी की जानी है। इसके लिए वन विभाग की जमीन की चार दिवारी भी हो चुकी है।
चिड़ियाघर में ही अत्याधुनिक पशु अस्पताल की जरूरत को देखते हुए इस प्रोजेक्ट के लिए सरकार ने 18 करोड़ मंजूर किए थे। एक वजह और भी थी कि कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के साथ लगे फॉरेस्ट के वेस्टर्न सर्कल में बाघों और अन्य जीव जंतुओं के इलाज के लिए भी इस पशु अस्पताल की सख्त जरूरत महसूस की गई थी। जानकारी के अनुसार इस पशु चिकित्सालय में चिड़ियों के परिवार बढ़ाने की योजना बनाई गई थी, जैसे गिद्ध, चील, बाज के ब्रीडिंग केंद्र बनाए जाने की योजना थी।
2017 से मंजूर पड़ी इस योजना में खुद वन विभाग के आईएफएस अधिकारी ही इसकी फाइल पर आपत्तियां लगा कर देरी करते रहे हैं। इन आपत्तियों की मुख्य वजह विभागीय कागजी कार्रवाई नहीं बताई जा रही है, बल्कि आपसी मन मुटाव बताया जा रहा है। जबकि जब केंद्र सरकार ने इस पर बजट जारी किया था तो उस वक्त कोई आपत्ति नहीं थी। उत्तराखंड के वन्यजीव प्रतिपालक समीर सिन्हा ने कहा, ‘मेरे पद ग्रहण करने के बाद ये मामला मुझे हल्द्वानी भ्रमण के दौरान बताया गया था, इस पर हमने एक बैठक भी की है जल्द ही इस योजना को पूरा करवाया जाएगा।’
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