मुंबई ने 26/11 की घटना के बाद जो जिजीविषा दिखाई, वह स्मरणीय है। आज मुंबई का स्वरूप बदल चुका है। सुरक्षा तंत्र में स्थायी मुस्तैदी लाई गई है। मुंबई हमले, उसे रोकने में हुई चूक, उसके मुकदमे के निहितार्थ और फलितार्थ, उससे लिए गए सबक, बदलाव, मुंबई की जनता के हौसले और अब देश की आर्थिक प्रगति का इंजन बनने को तैयार मुंबई पर पाञ्चजन्य के मुंबई संकल्प में महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने पाञ्चजन्य के संपादक हितेश शंकर से बेबाकी से चर्चा की। प्रस्तुत हैं इस बातचीत के अंश
देवेंद्र जी! मैं आपसे विशुद्ध मुंबई की बात करता हूं। आप नागपुर-मुंबई में पले-बढ़े। अपने साथ मुंबई को भी बढ़ते देखा है। जैसा फिल्मों में देखते हैं, जैसा आर्काइव्स में अपराध का ताना-बाना दिखता है, पहले मुंबई में भाई, डॉन, बम, वसूली की बात होती थी। मुंबई को एक अलग तरीके से जाना जाता था। समृद्धि थी, मगर उसके साथ एक भय भी था। आज क्या बदला है? आज की मुंबई कैसी है?
मैं मानता हूं कि आज की मुंबई, भयमुक्त मुंबई है। कारण ये है कि पिछले आठ वर्षों में मुंबई में कोई ऐसी घटना नहीं हुई कि जिसे आतंकवादी घटना कहा जाए। मुंबई में भाईगिरी, वसूली पर बहुत बड़े पैमाने पर अंकुश लगा है। सबसे बड़ी बात ये है कि आज मुंबई में हमारी बहनें आधी रात को भी लोकल ट्रेन में सफर कर सकती हैं। उन्हें मुंबई में घूमते हुए सुरक्षित महसूस होता है। आज की मुंबई देश के अन्य शहरों के मुकाबले एक बहुत सुरक्षित शहर है, और इसे सुरक्षित बनाने के लिए जैसे हमने कई चीजें सरकार के रूप में की हैं, वैसे ही मुंबई की जनता को भी इसका श्रेय जाता है। मुंबई की जनता में जो जिजीविषा है, लड़ने की जो ताकत है, वह बहुत प्रचंड है। सबसे बड़ी बात ये है कि मुंबई की जनता में अनुशासन बहुत है।
मुंबई के बस स्टॉप पर लोग लाइन लगाकर बस में चढ़ते हैं। मुंबई में इतना ट्रैफिक होने के बावजूद बहुत कम या नौसिखिए लोग ही आपको लेन फांदते दिखेंगे। मैं ऐसा मानता हूं कि मुंबई की अपनी एक संस्कृति, एक परंपरा है। कोई भी शहर शत-प्रतिशत सुरक्षित नहीं होता है, परंतु यदि तुलना करें तो मुंबई सुरक्षित शहर है।
26/11 एक ऐसा घाव है, जो कभी भरा नहीं जा सकता। वह हमारे ऊपर लगा एक ऐसा लांछन है, जिसे हम कभी दूर नहीं कर सकते हैं। हम ये जरूर प्रयास कर सकते हैं कि कोई दूसरा 26/11 न हो और शायद यही प्रयास मुंबई को औरों से अलग बनाता है। मुझे याद है कि 26/11 के बाद हमारे एक पूर्व गृहसचिव जी की अध्यक्षता में एक समिति बनी थी और उस समिति ने रिपोर्ट दी थी। मैं 26/11 के समय विपक्ष का विधायक था। मैंने उस रिपोर्ट को विधानसभा में उठाया था। मैं लगातार ये कहता आया था कि 26/11 की सूचना हमारे पास थी लेकिन हम कार्रवाई नहीं कर पाए। हमारे पास समन्वय नहीं था। जब सरकार को रिपोर्ट मिली तो अपनी विफलता को छुपाने के लिए यह रिपोर्ट दबा दी गई। तो, फिर मुझे वह काम करना पड़ा। उस रिपोर्ट में से कुछ चीजें पता करके विधानसभा में रखनी पड़ीं। उसके बाद जब मैं मुख्यमंत्री बना तो सही मायने में उस रिपोर्ट पर अमल करने का काम हमने किया।
छह साल हम कार्रवाई नहीं कर पाए। मुंबई में इतनी बड़ी घटना घटने के बाद भी सर्विलांस खड़ा नहीं हो पा रहा था। मैंने तुरंत उस काम को हाथ में लिया, उसके सारे टेंडर किए, वर्क आर्डर दिए और एल एंड टी को काम देकर, पीछे लग के एक साल में पूरी मुंबई को सीसीटीवी कैमरे से कवर किया।
रिपोर्ट ने मोटे तौर पर मुंबई को सीसीटीवी कवरेज में लाने और आधुनिक तरीके से इसके पूरे सर्विलांस की बात कही थी। आपको आश्चर्य होगा 2008 में घटना हुई। 2009 में सीसीटीवी लगाने के लिए कार्यवाही शुरू हुई। वर्ष 2014 तक मुंबई में सीसीटीवी नहीं लग पाए। टेंडर निकलते थे, रद्द होते थे। जब मैं मुख्यमंत्री बना, तो मैंने सोचा कि छह साल हम कार्रवाई नहीं कर पाए। मुंबई में इतनी बड़ी घटना घटने के बाद भी हम सर्विलांस खड़ा नहीं कर पा रहे हैं। मैंने तुरंत उस काम को हाथ में लिया, उसके सारे टेंडर किए, वर्क आर्डर दिए और एल एंड टी को काम देकर, पीछे लग कर एक साल में मुंबई को सीसीटीवी कैमरे से पूरा कवर किया। उसका कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम तैयार किया। एक कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम सीपी आफिस में और एक कॉरपोरेशन में तैयार किया। आज उसका परिणाम दिख रहा है। अब तो हम लोग दूसरे चरण पर काम कर रहे हैं जिसमें फेस रिकॉग्निशन कैमरा सहित हमलोग आर्टिफिशल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल कर रहे हैं ताकि हम सर्विलांस को अगले स्तर पर ले जा सकें। सर्विलांस का फायदा ये हुआ कि आज स्ट्रीट क्राइम पर पूरा अंकुश है। कुछ समय पहले एक बहुत ही भयानक घटना हमारे यहां हुई थी। पुलिस वालों ने ही मुकेश अंबानी के घर के सामने बम रखने का नाटक किया था। ये मामला वहां लगे सीसीटीवी कैमरा से उजागर हुआ था।
इसके साथ ही एक बहुत महत्वपूर्ण चीज उस रिपोर्ट ने कही थी। वो खुफिया एजेंसियों में समन्वय की थी। उस समय, ऐसी-ऐसी नौकाएं आ रही हैं, यह जानकारी नेवी ने दी थी। लेकिन हमारी राज्य खुफिया एजेंसियों, राज्य पुलिस इत्यादि में समन्वय नहीं था। इसलिए खुफिया जानकारी होने के बावजूद हम लोग उनको रोक नहीं पाए। इसी तथ्य को पकड़ते हुए समिति ने कहा था कि एक साझा खुफिया समिति होनी चाहिए और इसकी लगातार बैठकें होनी चाहिए ताकि सारी खुफिया जानकारी साझा हो। यह शुरू हुआ लेकिन जब तक स्वयं गृहमंत्री उस पर ध्यान नहीं देते, ऐसी चीजें कारगर नहीं होतीं। इसलिए मैंने ये शुरुआत की कि गृहमंत्री की अध्यक्षता में केंद्र की, राज्य की जितनी खुफिया एजेंसियां हैं, ये सब 15 दिन में एक बार बैठेंगी और जितने खुफिया इनपुट हैं, वे सारे पढ़े जाएंगे और सारे एक-दूसरे से साझा होंगे। वर्ष 2014 से लेकर आज तक यह पद्धति चल रही है।
हर आतंकी घटना के बाद हम निंदा करते रहे, डोजियर देते रहे। मोदी जी ने इस नजरिये को बदल दिया। मोदी जी ने कहा कि हम पर हमला करेंगे तो घुस कर मारेंगे और हमारे फौजियों ने घुसकर मार के दिखाया। हमारे फौजियों में ये ताकत हमेशा से थी। लेकिन पहले जो राजनीतिक नेतृत्व था, उसमें हिम्मत नहीं थी।
कुछ चीजें, जो उसके बाद बदलीं, वे भी बहुत महत्वपूर्ण हैं। हमारे ध्यान में आया कि समुद्र में हमारी अड़चनें क्या हैं। तो 2014 के बाद, विशेष रूप से मोदी जी की सरकार ने इसमें पहल की। हम लोगों ने सारी फिशिंग बोट्स की शिनाख्त की, उनके ऊपर ट्रांसपांडर लगाए, उसकी एक कलर कोडिंग स्कीम की। हमारा समुद्री किनारा पाकिस्तान से सटा है। अगर पाकिस्तान की नौका आ जाती है, तो हमारी नावों में उसे पहचानना बहुत कठिन था। लेकिन आज इन ट्रांसपोंर्ड्स के कारण, इन कलर कोडिंग के कारण हम उसको समझ सकते हैं। उसके साथ-साथ एक बहुत महत्वपूर्ण चीज शुरू हुई – सागर कवच। इसमें हमारी नेवी, कोस्ट गार्ड और सारी एजेंसियां साल में दो-तीन बार अलग-अलग प्रकार से अभ्यास करती हैं। तो 2009-10 में आई रिपोर्ट पर मुंबई को सुरक्षित करने के लिए मोदी जी की सरकार और महाराष्ट्र में हमारी सरकार आने के बाद अमल शुरु हुआ और आज तक वह चल रहा है।
14 वर्ष पहले जब यह मुंबई हमला हुआ, पूरा देश एक गुस्से में, आक्रोश में, आंसुओं में था, एक खीझ थी पूरे देश के मन में। ये केस जिस तरह से चला, वैसा चले, ऐसी शायद उस समय गृह मंत्रालय की तैयारी नहीं थी। उस समय 12 अलग-अलग एफआईआर की गई बारह-बारह अलग-अलग मामले चलाए गए। अगर वैसा होता तो क्या ये मामला कभी निर्णय तक पहुंचता?
मुझे नहीं लगता है कि अगर ऐसा होता तो ये मामला निर्णय तक पहुंचता। इसको एक साथ एक एफआईआर में जो बदला गया और उसके बाद जिस प्रकार से इसे चलाया गया, उसी के कारण इसे निर्णय तक पहुंचाया जा सका। मैं हमारी सारी टीम का, कानूनी टीम का, पुलिस का और केंद्रीय एजेंसियों का भी बहुत अभिनंदन करना चाहता हूं कि उन्होंने बहुत अच्छे तरीके से इसे चलाया। इसमें सबसे बड़ी बात ये है कि हम लोग पाकिस्तान के षड्यंत्र को उजागर कर पाए। ये इसमें बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे पहले पाकिस्तान हाथ खींच लेता था। लेकिन इसमें दुनिया के सामने उजागर हुआ कि ये षड्यंत्र पाकिस्तान ने रचा था।
पहले एक के बाद एक डोजियर भेजे जाते थे। आज क्या अंतर आया है कि आज हम कुछ करते हुए नहीं दिखते हैं, फिर भी हमारे शत्रु दहशत में रहते हैं। कोई धृष्टता करने की हिमाकत नहीं करते?
जिस समय हमला होता है, उस समय सॉफ्ट डिप्लोमैसी काम नहीं करती है। पहले हम पर हमला होने होने के बाद उसकी निंदा, कड़ी निंदा किया करते थे। हम निंदा करते रहे, डोजियर देते रहे। मोदी जी ने इस नजरिये को बदल दिया। मोदी जी ने कहा कि हम पर हमला करेंगे तो हम घुस कर मारेंगे और हमारे फौजियों ने घुसकर मार के दिखाया। हमारी फौज ने ये दिखाया कि अब हम वैसे नहीं हैं। ये केवल पाकिस्तान की बात नहीं है। डोकलाम के समय हमारी फौजों ने चीन को भी जिस प्रकार से रोका, उससे एक नया भारत झलकता है। हमारे फौजियों में ये ताकत हमेशा से थी। लेकिन जो राजनीतिक नेतृत्व था, उसमें हिम्मत नहीं थी। राजनीतिक नेतृत्व डर जाता था, कभी अमेरिका के दबाव में, कभी किसी और के दबाव में। जैसे एक बार अटल जी ने कहा था कि
चीन छीन देश का गुलाब ले गया,
ताशकंद में वतन का लाल सो गया।
हम सुलह की शक्ल संवारते रहे
और जीत-जीत कर बाजी हारते रहे।
ऐसी स्थिति हमको दिखती थी लेकिन अब ऐसा नहीं है। अब हमारी सरकार ने दुनिया में और विशेष रूप से हमारे पड़ोसियों के सामने ये छवि बनाई है कि इनसे उलझना अब आसान काम नहीं रहा। ये बहुत महत्वपूर्ण चीज है। मैं एक और बात कहना चाहता हूं क्योंकि उसके बिना मेरा उत्तर अधूरा रहेगा। मैं विशेष रूप से अभिनंदन करना चाहूंगा हमारे एडवोकेट उज्ज्वल निकम जी का। उज्ज्वल निकम जी ने यह प्रतिपादित किया कि अगर 12 एफआईआर रखेंगे तो जिंदगी भर ये केस समाप्त नहीं होगा। इसे एक एफआईआर में बदलना चाहिए।
हम आज सबसे तेजी से विकसित हो रही अर्थव्यवस्था है। डिजिटल एक ऐसा माध्यम है जो इसकी गति बहुत तेजी से बढ़ाता है, जो बहुत प्रचंड तरीके से मूल्य सृजित करता है। मुझे लगता है कि अर्थव्यवस्था की ये जो गतिशीलता है, इसको लाने का काम मुंबई करेगी।
कसाब के ट्रायल के लिए आपने क्या-क्या बात की थी, उज्ज्वल निकम से आपकी क्या बात हुई थी, वह आप दोनों की बात है। मगर आज मैं चाहूंगा कि पाञ्चजन्य के दर्शक-पाठक भी वह कहानी जानें।
कसाब के ट्रायल के लिए हम लोगों ने बहुत सारी चीजें कीं। उज्ज्वल निकम जी जिस प्रकार से हमारा मार्गदर्शन करते थे, हमने सरकार की इच्छाशक्ति को उनके पीछे खड़ा किया। यह बात आई कि विशेष रूप से इसमें पाकिस्तान के षड्यंत्र को अगर उजागर करना है तो डेविड हेडली का साक्ष्य होना बहुत जरूरी है। डेविड हेडली अमेरिका की जेल में था और एक प्रकार से उनके संरक्षण में भी था। तो उज्ज्वल निकम जी ने मुझसे कहा कि भले ही उसका आॅनलाइन साक्ष्य करें, वर्चुअल साक्ष्य करें, लेकिन ये साक्ष्य बहुत महत्वपूर्ण है। इससे पाकिस्तान का पूरा षड्यंत्र सामने आ जाएगा और इस मामले की अंतिम कड़ी यही है। तो मैंने एनएसए से, पीएम से बात की और उनको कहा कि आप अमेरिका से बात करके ये अनुमति दिलवाइए कि उज्ज्वल निकम जी और हमारे लोग वहां जाएं और उनकी व्यवस्था के अनुसार उनके न्यायाधीशों के सामने उसका बयान लें। उसके बाद अनुमति मिली। निकम जी वहां गए। वहां की व्यवस्था के अनुसार पूरी प्रक्रिया हुई। ये सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि उस पेशी ने ये सारी कड़ियां मिलाईं कि कैसे पाकिस्तान की सरकार ने कसाब और सारे आतंकवादियों को पैसा देकर भर्ती किया था, प्रशिक्षित किया था, संसाधन दिए थे। कैसे आईएसआई और पाकिस्तान की सेना इसके पीछे थी। ये सारी चीजें उससे स्पष्ट हुर्इं। और उसके बाद जो फैसला आया, वह हम सबने देखा।
मतलब जो कड़ियां बिखरी दिख रही थीं, उसमें पीछे तार जोड़ने का काम आप कर रहे थे क्योंकि ये अनुमतियां बहुत सरल नहीं होतीं।
अगर मोदी जी की सरकार नहीं होती तो अनुमति नहीं मिलती क्योंकि डेविड हेडली को उसकी तफ्तीश करने के लिए अमेरिका ने किसी और को कोई अनुमति नहीं दी। जेल में उसको एक प्रकार का अभयदान था। केवल मोदी जी की सरकार के कारण, जो मोदी जी के अपने संबंध थे, जो उन्होंने एक द्विपक्षीय संबंध तैयार किया था और भारत का जो महत्व बढ़ा था, इसके कारण ये अनुमति मिल पाई।
मुंबई पर हमला आतंकी तो था ही, साथ ही भारत की आर्थिक राजधानी जिसे कहते हैं, उसकी कमर कैसे तोड़ी जाए, इसकी भी पूरी तैयारी थी। उस आघात से तो हम निकले, मगर मुंबई में जीवन वापस पटरी पर कैसे आया? मुंबई ने आर्थिक गति कैसे पकड़ी?
आपने बिल्कुल सही कहा। ये हमला इतना सुनियोजित था, इनका निशाना देखिए। ताज होटल में केवल दुनिया भर के पर्यटक नहीं होते, यहां राजनयिक भी होते हैं। दुनिया भर की डिप्लोमेसी यहां होती है। ट्राइडेंट होटल में कई विदेशी कंपनियों के कार्यालय हैं या फिर लियोपोल्ड कैफे, जहां हमेशा विदेशी पर्यटक रहते हैं, जहां यहूदी लोग रहते हैं। ऐसे स्थानों को चुन-चुनकर कर निशाना बनाया गया। यह ऐसा षड्यंत्र था कि देश की आर्थिक राजधानी पर तो हमला था ही, भारत की सार्वभौमिकता पर भी हमला था और दुनिया को एक संदेश था। इस एक हमले से पाकिस्तान या इन आतंकवादियों ने दुनिया के कम से कम 50-60 देशों को चेताया कि भारत के साथ आप अगर संबंध रखोगे तो हम आपके लोगों को भारत में सुरक्षित नहीं रहने देंगे। यह एक बहुत बड़ा अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र था।
लेकिन मैं फिर मुंबई की जनता का आभार व्यक्त करना चाहूंगा। तीन-चार दिन हमले में निकल गए। फिर एक गुस्सा भी फूटा, लोग सड़कों पर भी आए। लेकिन उसके बाद जिस प्रकार से मुंबई ने स्वयं को संभाला, वह बहुत महत्वपूर्ण है। मुंबई के लोगों ने इस घटना का विरोध किया, निषेध किया, आक्रोश जताया लेकिन मुंबई के जीवन में विघ्न नहीं पड़ने दिया। आतंकवादी जो चाहते थे कि एक डरी-सहमी मुंबई घरों में बैठी रहे, सड़कें खाली हो जाएं और लोग बच्चों को बाहर न निकलने दें, ऐसा कुछ मुंबई में नहीं हुआ। पूरी मुम्बई बाहर निकली। मुंबई ने अपने सारे कामकाज शुरू किए। बच्चे स्कूल गए। लोग अपनी नौकरियों पर गए। एक दिन में मुंबई उठ खड़ी हुई। इससे हम आतंकवादियों की मंशा को परास्त कर पाए।
आतंकवादी चाहते थे कि डरी-सहमी मुंबई घरों में बैठी रहे, सड़कें खाली हो जाएं और लोग बच्चों को बाहर न निकलने दें, ऐसा कुछ मुंबई में नहीं हुआ। पूरी मुम्बई बाहर निकली। मुंबई ने अपने सारे कामकाज शुरू किए। बच्चे स्कूल गए। लोग अपनी नौकरियों पर गए। एक दिन में ये मुंबई उठ खड़ी हुई। इससे हम आतंकवादियों की मंशा को परास्त कर पाए।
मुंबई के इस संकल्प को मैं अलग तरीके से समझना चाहूंगा। आज भारत के प्रधानमंत्री फाइव ट्रिलियन इकोनॉमी की बात करते हैं। मुंबई में ही देश के शीर्ष उद्योगपति मुकेश अंबानी तो चालीस ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी की वे बात कर रहे हैं। तो देश की अर्थव्यवस्था का ये कायाकल्प कैसे होगा और उसमें मुंबई का संकल्प कितना काम करेगा, कैसे करेगा? आप निवेशकों के लिए क्या कर रहे हैं?
मैं मानता हूं कि मुंबई एक आर्थिक राजधानी ही नहीं, बल्कि एक प्रकार से ये एक ग्रोथ इंजन है। देश के करीब 30 प्रतिशत स्टार्टअप्स और देश के 25 प्रतिशत यूनीकॉर्न्स महाराष्ट्र में, मुंबई में ही हैं। तो एक प्रकार से ये नई अर्थव्यवस्था है जिसमें गति है। हमारी अर्थव्यवस्था की अपनी गति है जो 7-8-9 प्रतिशत की गति से बढ़ती हैं। हम आज सबसे तेजी से विकसित हो रही अर्थव्यवस्था है। डिजिटल एक ऐसा माध्यम है जो इसकी गति बहुत तेजी से बढ़ाता है, जो बहुत प्रचंड तरीके से मूल्य सृजित करता है। मुझे लगता है कि अर्थव्यवस्था की ये जो गतिशीलता है, इसको लाने का काम मुंबई करेगी। मुंबई और मुंबई के आसपास यानी ये जो एमएमआर क्षेत्र है, वह आगामी दिनों में एक विकास केंद्र के रूप में काम करेगा। हम लोग तो चाहते हैं कि महाराष्ट्र की अर्थव्यवस्था ट्रिलियन डॉलर की करें। लेकिन अकेले मुंबई में ये क्षमता है कि मुंबई और एमएमआर क्षेत्र की ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था हो सकती है। उस दृष्टि से हम लोगों ने बड़े पैमाने पर निवेश शुरू किया है।
सबसे महत्व की बात बुनियादी ढांचा है। आज हम लोग मुंबई को नवी मुंबई से जोड़ रहे हैं। 22 किलोमीटर के सी-लिंक का काम शुरू कर दिया है जो अगले साल पूरा होगा। इससे हम तीसरी मुंबई बसाएंगे। यह मुंबई से बड़ी होगी। हमने न्यू मुंबई एयरपोर्ट का काम भी शुरू किया। इसका काम मार्च, 2024 तक पूरा होगा। उसके नजदीक जो नई मुंबई होगी, वहां आज देश के सबसे ज्यादा डेटा सेंटर्स हैं। देश की डिजिटल अर्थव्यवस्था और इंडस्ट्री 4.0 का केंद्र ये नई मुंबई बनेगी। ये सारा इकोसिस्टम हम तैयार करेंगे।
आज जेएनपीटी बंदरगाह हमारे कंटेनर ट्रैफिक का 60-65 प्रतिशत अकेले संभालता है। हमारी आयात-निर्यात की क्षमता दुगुनी हो सकती है। इसके लिए हमें एक और बड़े बंदरगाह की आवश्यकता है। इसलिए हम लोग वाणवण में एक नया बंदरगाह तैयार कर रहे हैं। इस बंदरगाह का प्राकृतिक ड्राफ्ट जेएनपीटी से भी गहरा है। यहां दुनिया का आज तक का बना सबसे बड़ा जहाज भी पहुंच सकता है। ये बंदरगाह हमारे महाराष्ट्र को, मुंबई को और हमारे देश को दस साल आगे ले जाएगा। आज हम इतने बड़े पैमाने पर निर्यात अर्थव्यवस्था खड़ी कर रहे हैं। उसके लिए उतना ही बड़ा बुनियादी ढांचा चाहिए।
जेएनपीटी से ज्यादा क्षमता संभालने की ताकत इस बंदरगाह की होगी। इसके साथ ही हमने नागपुर-मुंबई कम्युनिकेशन एक्सप्रेसवे तैयार किया है, यह बंदरगाह से जुड़ा होगा। पहले शायद मुंबई एमएमआर क्षेत्र पुणे, नासिक ही बंदरगाह से जुड़े थे। अब इस एक्सप्रेसवे के कारण महाराष्ट्र के करीब बीस जिले बंदरगाह से जुड़ जाएंगे। ये केवल एक महामार्ग नहीं है, ये एक आर्थिक एक्सप्रेसवे है, ये एक वित्तीय एक्सप्रेसवे है। जिस प्रकार से सियोल-बुसान एक्स्प्रेसवे बना और आज पूरे दक्षिण कोरिया की अर्थव्यवस्था वह सड़क तय करती है, उसी प्रकार से हमने ये एक्सप्रेसवे तैयार किया है। इस एक्सप्रेसवे से आने वाले कल की पूरी अर्थव्यवस्था का संचालन होगा।
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