न भूलने वाला पल
हिन्दुओं को धमकी दी जा रही थी कि गांव जितनी जल्दी हो सके खाली कर दो, नहीं तो सबके सब मारे जाओगे। ऐसे माहौल में यकीनन सबको डर लगेगा ही।
बलवंत कौर चांदना
पेशावर, पाकिस्तान
बंटवारे का नाम मैंने पहली बार तब सुना था, जब गांव में चर्चा होते हुए यह बात घर तक आई थी। तब तक सब कुछ अच्छे से चल रहा था। पिताजी खेती-किसानी का काम करते थे और इसी से घर का खर्च चलता था। लेकिन अचानक ही सब कुछ बदल गया। वे पड़ोसी जो कल तक साथ बैठते थे, अब वही आंखें तरेरने लगे थे या फिर एक तरह से कटने लगे थे। एक दिन ऐसा आया जब मुसलमानों ने गांव को घेर लिया। उन्मादी नारे लगाए जा रहे थे।
हिन्दुओं को धमकी, गांव जितनी खाली कर दो, मुसलमानों ने गांव को घेर लिया
हिन्दुओं को धमकी दी जा रही थी कि गांव जितनी जल्दी हो सके, खाली कर दो, नहीं तो सबके सब मारे जाओगे। ऐसे माहौल में यकीनन सबको डर लगेगा ही। कुछ हिन्दू तो तुरंत भाग खड़े हुए सब छोड़कर। गांव के हालात देखकर हमारे घर में भी यह तय हुआ कि ऐसे वातावरण में रहना ठीक नहीं है। इसलिए सुरक्षित रूप से निकलना ही होगा। हम लोग किसी तरह शिविर में पहुंचे। वहां पर भी मुसलमानों ने शिविर को घेर कर शोर मचाया और धमकियां दीं। इससे भगदड़ मच गई। मुसलमानों ने कइयों को गोली मारकर उनकी हत्या कर दी।
मुसलमानों ने कइयों को गोली मार हत्या कर दी। जो किसी तरह बच गए, उनका सारा सामान शिविर में ही छूट गया। पिताजी मुझे गोद में उठाकर सुरक्षित जगह ले आए। मैं इस दौरान बेहोश हो गई थी।
जो किसी तरह बच गए, उनका सारा सामान शिविर में ही छूट गया। पिताजी मुझे गोद में उठाकर सुरक्षित जगह ले आए। मैं इस दौरान बेहोश हो गई थी। यह देख माता जी रोने लगीं। उनको लगा कि बेटी मर गई। लेकिन कुछ देर बाद ही मुझे होश आ गया। इसे देख पिताजी चिल्लाने लगे। खैर, किसी तरह हम भारत आ पाए। इस दौरान बहुत कष्ट सहे। उन दिनों के दुखों को जब भी याद करता हूं तो बहुत दुख होता है। जो जमीन और व्यवसाय हिन्दुओं का था, वह बंटवारे के बाद सब मुसलमानों का हो गया था।
मतलब जिस जगह पर हमारे पुरखे रहते चले आ रहे थे, जिस माटी में हम सभी ने जीवन जीया, वह माटी हमसे दूर हो गई थी। हम सभी को मारकर भगाया गया, खून बहाया गया। यह सब उस दौरान की हकीकत है। विभाजन के बाद जब हम भारत आए तो सबने अनेक कष्ट सहे। जीवन को पटरी पर लाने को तमाम जद्दोजहद कीं। छोटे-छोटे काम किए। दो समय की रोटी के लिए यातनाएं तक सहीं। कभी-कभी तो भूखे भी सोए। यह मेरी या मेरे परिवार की स्थिति नहीं थी, कमोवेश पाकिस्तान से आने वाले हर हिन्दू-सिख परिवार की यही स्थिति थी। खैर, किसी तरह जीवन पटरी पर लौटा। लेकिन जो सुख-चैन वहां था, आनंद था वह कभी नहीं मिल पाया। जीवन संघर्ष में ही गुजर गया।
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