वैश्विक राजनीतिक और कूटनीतिक परिदृश्य में आजकल इस बात की सरगर्मी से अटकलें लगाई जा रही हैं कि क्या भारत को नाटो में शामिल किया जाने वाला है। रूस के विदेश मंत्री ने हाल ही में यह दावा भी किया है कि इस मामले में अमेरिका पूरी कोशिश में जुटा है। उनका कहना है कि अमेरिका का मकसद भारत को नाटो से जोड़कर चीन के साथ तनाव बढ़ाना।
लेकिन अमेरिका की इस कथित कूटनीति और मंशा से रूस के विदेश मंत्री को चिंता क्यों है? उन्हें चिंता इस बात को लेकर है कि वाशिंग्टन ऐसा इसलिए कर रहा है कि चीन को चिढ़ाकर वह रूस को मुख्य निशाने पर ले ले। दरअसल अमेरिका रूस के लिए मुसीबत पैदा करने का इच्छुक है।
हालांकि भारत की ओर से इस संबंध में अभी तक आधिकारिक रूप से कुछ नहीं कहा गया है कि अमेरिका क्या भारत के संदर्भ में ऐसी कोई कोशिश कर भी रहा है या यह सिर्फ एक कयास भर है। अथवा क्या अमेरिका सच में भारत जैसे तेजी से दुनिया में अपना कद बढ़ाते देश को दक्षिण अटलांटिक संधि संगठन यानी नाटो से जोड़ना चाहता है? भारत की ओर से इस संबंध में कोई बयान न आने, लेकिन रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव का दावा सामने आने के बाद तो नाटो ही नहीं, बीजिंग के भी कान खड़े हो गए हैं।
सवाल एक और है। अगर लावरोव की आशंका है कि भारत को नाटो में शामिल करने का अमेरिका का अंतिम लक्ष्य रूस पर निशाना साधना है, तो उसमें चीन की भूमिका पर भी गहन दृष्टि डालने की जरूरत है। सब जानते हैं कि इन दिनों अमेरिका और चीन के बीच छत्तीस का आंकड़ा है। उधर भारत के साथ अमेरिका की नजदीकियां भी बढ़ ही रही हैं। इधर वैश्विक स्तर पर भारत की महत्ता भी बढ़ रही है। चीन सीमा को लेकर भारत से अपने बेवजह के विवाद को लंबा खींचे रखना चाहता है। इस त्रिकोण में रूस की भूमिका कैसी और किस तरह से है, इस पर कूटनीति विशेषज्ञ खासतौर पर मंथन कर रहे हैं। और फिर यूक्रेन इस सबमें कहां खड़ा है?
भारत और रूस के बीच संबंध कोई आज के नहीं हैं। ये बहुत पहले से चले आ रहे हैं और अमेरिका के विदेश मंत्री ब्लिंकन खुद कह चुके हैं कि दोनों के बीच संबंधों में अमेरिका की कोई भूमिका नहीं हो सकती है। भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर के साथ वाशिंग्टन में हुई पिछली वार्ता के दौरान ब्लिंकन ने स्पष्ट रूप से कहा था कि भारत के किसी देश के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों पर उन्हें कोई आपत्ति नहीं है!
चीन के कूटनीतिज्ञ इस पूरे समीकरण को खंगाल ही रहे हैं। वे यह जानते हैं कि चीन अपनी विस्तारवादी मंशाएं जितनी ज्यादा पोसेगा उतनी ही ज्यादा भारत से उसे दुत्कार मिलेगी। गलवान की पिटाई को बीजिंग भूला नहीं है। चीन की तरफ तीन दिन पहले बयान भी आया था कि उसके और भारत के बीच चल रहे विवाद में अमेरिका कोई दखल न दे तो ही अच्छा।
लावरोव का अमेरिका के संदर्भ में उक्त बयान मॉस्को में मीडिया से बता करते हुए आया है। उन्होंने यह भी कहा है कि दक्षिण चीन सागर तनाव का एक नया क्षेत्र बनता जा रहा है। इसके पीछे भी लावारोव नाटो को दोषी ठहराते हैं। उन्होंने खुलकर आरोप लगाया है कि नाटो के देश मिलकर भारत को भी रूस तथा चीन के विरोध में अपने गुट में जोड़ना चाहते हैं। दक्षिण चीन सागर में नाटो द्वारा कथित तनाव बढ़ाने की कोशिश के पीछे वे मकसद रूस की घेराबंदी व दिक्कतें बढ़ाना मानते हैं।
रूसी विदेश मंत्री ने चीन के पक्ष का हवाला देते हुए कहा कि चीन भड़काने की ऐसी कोशिशों को बहुत गंभीरता से ले रहा है। इतना ही नहीं, लावरोव साफ कहते हैं कि ठीक दक्षिण चीन सागर की तरह नाटो ताइवान में भी तनाव बढ़ाने में जुटा है। यह स्थिति रूस के लिए भी खतरा पैदा कर सकती है। रूस और चीन के बीच बढ़ती निकटता के पीछे सफाई जैसी देते हुए रूस के विदेश मंत्री कहते हैं कि अमेरिका व नाटो से तनाव बढ़ने के कारण ही रूस और चीन के बीच सैन्य सहयोग में आई तेजी की वजह वाशिंग्टन और नाटो द्वारा तनाव बढ़ाने की कोशिशें ही हैं।
रूस का एक और गंभीर आरोप है कि अमेरिका की अगुआई में नाटो यूरोप में खतरनाक स्थितियां बना रहा है। उन्होंने ‘आकस’ का भी जिक्र करते हुए कहा कि अमेरिका, ब्रिटेन तथा ऑस्ट्रेलिया के बीच बना नया गठजोड़ ‘ऑस्ट्रेलिया-यूके-यूएस’ दरअसल भारत को भी रूस और चीन विरोधी गुट नाटो में शामिल करने को आतुर है।
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