ट्विटर के ब्लू टिक पर शुल्क लगाने से दूसरी टेक कंपनियों के भी अनुसरण करने की आशंका पैदा हुई। क्या है मसला
ट्विटर का नियंत्रण ईलोन मस्क के हाथ में आने के बाद इस माइक्रोब्लॉगिंग प्लेटफॉर्म पर लोगों की प्रामाणिकता बताने वाले नीले टिक पर शुल्क लगाने का फैसला हुआ तो तमाम तरह की चर्चाएं, अटकलें और आशंकाएं उठ खड़ी हुई। एक आशंका यह है कि क्या इंटरनेट के जरिए सेवाएं देने वाले दूसरे प्लेटफॉर्म और कंपनियां भी अपनी सेवाओं पर शुल्क लगा सकती हैं? मसलन व्हाट्सएप्प जिसे अरबों लोगों द्वारा इस्तेमाल किया जा रहा है और जो एक तरह से टेलीफोन सेवाओं का विकल्प ही बन गया है।
यह कल्पना कि दूसरों ने भी ट्विटर का रास्ता अपना लिया तो क्या होगा, सचमुच बहुत दिलचस्प है और एक तरह से तार्किक भी लगती है। कल्पना कीजिए कि जो फेसबुक अरबों लोगों को सेवा उपलब्ध करा रहा है या जो गूगल मैप्स करोड़ों लोगों द्वारा इस्तेमाल किया जा रहा है या फिर जो व्हाट्सएप्प करोड़ों लोगों के बीच संदेश लेने-देने का जरिया बन गया है, वह अगर जरा सा शुल्क लगा दे तो क्या हर्ज है? मसलन 50 रुपये प्रति माह? बहुत सारे उपभोक्ता इसके लिए तैयार हो सकते हैं। है न?
लेकिन बात इतनी सरल नहीं है, इसके कई पहलू हैं। सबसे पहले यह समझना जरूरी है को ट्विटर ने अपनी मूल सेवा पर शुल्क नहीं लगाया है। आज भी हर ट्विटर-यूजर अपने हैंडल से ट्वीट कर सकता है और दूसरों की ट्वीट्स पर टिप्पणियां भी कर सकता है। शुल्क सिर्फ नीले टिक पर लगाया गया है जो यह दिखाता है कि फलां ट्विटर यूजर प्रामाणिक है यानी कि जिसके नाम से यह अकाउंट बनाया गया है, वह असली व्यक्ति है।
यह अलग बात है कि नीला टिक एक तरह से सामाजिक दर्जे का प्रतीक भी बन गया है। लेकिन बात का मर्म यह है कि ट्विटर की सामान्य सेवाएं आज भी नि:शुल्क हैं और उसके एक विशिष्ट फीचर पर शुल्क लगाया गया है।
विशिष्ट सेवाओं पर इस तरह के शुल्क लगाना एक सामान्य बात है, भले ही आपने इस बात पर ध्यान न दिया हो। इसे फ्रीमियम मॉडल कहा जाता है जिसके तहत सामान्य सेवाएं नि:शुल्क मिलती हैं और बहुत संभव है कि आगे भी मिलती रहेंगी। लेकिन कुछ खास सेवाओं पर शुल्क लगा दिया जाता है और ये वे सेवाएं हैं जो सबको उपलब्ध नहीं होतीं और जिनमें कुछ अतिरिक्त या विशेष सुविधा दी जाती है।
आइए, एक नजर कुछ अन्य प्लेटफॉर्मों और सेवाओं पर डालते हैं।
गूगल की मेल, ड्राइव, मैप्स, डॉक्स, सर्च आदि का इस्तेमाल ज्यादातर लोग नि:शुल्क करते हैं। लेकिन इन्हीं के कुछ पेड (सशुल्क) वर्जन भी हैं। मसलन गूगल ड्राइव की डिफॉल्ट स्टोरेज सीमा 15 जीबी से ज्यादा स्टोरेज स्पेस चाहिए तो पैसे देने पड़ते हैं। गूगल डॉक्स का बेहतर संस्करण, जिसे गूगल वर्कस्पेस कहते हैं, भी पेड है। कुछ समय पहले तक गूगल ने आम लोगों को, चैरिटी संगठनों, छोटे कारोबारियों आदि को उनकी अपनी वेबसाइट के नाम से ईमेल एड्रेस बनाने की छूट दे रखी थी, जैसे mohan@mohan.com लेकिन कुछ अरसा पहले इस पर शुल्क लगा दिया गया।
व्हाट्सएप्प की सामान्य सेवाओं के लिए पैसे नहीं देने पड़ते। लेकिन वहां पर पांच लोगों को संदेश फॉरवर्ड करने और 256 लोगों तक को संदेश एकसाथ भेजने की सीमा है। अगर आप व्हाट्सएप्प बिजनेस एपीआई लेते हैं तो एक लाख लोगों तक को संदेश ब्रॉडकास्ट कर सकते हैं। व्हाट्सएप्प बिजनेस प्लेटफॉर्म पर भी हर कन्वर्सेशन (संवाद) के लिए शुल्क देना पड़ता है। आप अगर व्हाट्सएप्प आधारित एप्प बनाना चाहते हैं तो भी शुल्क देना होगा।
कुछ और उदाहरण देखिए। यूट्यूब पर हमें हर वीडियो के साथ विज्ञापन भी दिखाए जाते हैं। अगर आप विज्ञापन नहीं देखना चाहें तो पैसे देकर यूट्यूब प्रीमियम सेवा ले लीजिए। तब आपको विज्ञापन नहीं देखने पड़ेंगे और आप वीडियो आसानी से डाउनलोड भी कर सकेंगे। इतना ही नहीं, वीडियो बैकग्राउंड में चलता रहेगा और आप दूसरे एप्स पर अपने काम भी करते रहेंगे। नौकरियां तलाशने और नौकरियां देने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली लिंक्डइन वेबसाइट पर भी इसी तरह की विशिष्ट सेवा शुल्क के आधार पर उपलब्ध है, जिसे लिंक्डइन प्रीमियम कहा जाता है।
यह सेवा लेने वालों को कई अतिरिक्त सुविधाएं मिलती हैं, जैसे लिंक्डइन यह बताता है कि फलां नौकरी के लिए आवेदकों के बीच आप ज्यादा उपयुक्त दिखाई देते हैं। ऐसी प्रीमियम सेवाएं इंस्टाग्राम पर भी उपलब्ध हैं तो वन ड्राइव पर भी, बॉक्स पर भी उपलब्ध हैं तो कैनवा (ग्राफिक्स बनाने की वेबसाइट) पर भी। तो मर्म समझ गए न आप? जहां सामान्य सेवाएं नि:शुल्क हैं, वहीं विशिष्ट सेवाएं सशुल्क हैं।
(लेखक माइक्रोसॉफ़्ट में निदेशक- भारतीय भाषाएँ और सुगम्यता के पद पर कार्यरत हैं।)
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