बांग्लादेश में सेना और विद्रोही गुट कुकी-चिन नेशनल आर्मी (केएनए) के बीच जारी भीषण संघर्ष में जान बचाकर भारत के मिजोरम राज्य में आ रहे कुकी—चिन शरणार्थियों की तादाद लगातार बढ़ ही है। शरणार्थी पहली बार 20 नवंबर को बड़ी संख्या में मिजोरम के लवंगतलाई जिले में पहुंचे थे। बांग्लादेश में छिड़े उक्त सशस्त्र संघर्ष की वजह से इन शरणार्थियों की संख्या और बढ़ने के आसार हैं।
बांग्लादेश की सेना और विद्रोही गुट कुकी-चिन नेशनल आर्मी के बीच यह संघर्ष चटगांव पहाड़ी क्षेत्र में छिड़ा है। वहां आसपास कुकी-चिन जनजातीय समुदाय की अच्छी—खासी आबादी है। दोनों पक्षों के बीच चल रहे संघर्ष से अपनी सुरक्षा खतरे में पड़ती देख इस जनजातीय समुदाय के लोग शरण पाने के लिए मिजोरम का रुख कर रहे हैं। ताजा समाचार मिलने तक इन शरणार्थियों की सख्या 300 का आंकड़ा पार कर चुकी है।
इस पूरे प्रकरण पर शरणार्थियों की देखरेख के लिए बनाई गई एक स्थानीय समिति के प्रमुख हमांगईहजुआला का कहना है कि कुछ कुकी-चिन शरणार्थी दो दिन पहले बांग्लादेश के चटगांव हिल ट्रैक्ट से सीमा पार करके मिजोरम में आए हैं। इनकी संख्या करीब 21 बताई गई है। शरणार्थियों की मदद के लिए मिजोरम के लवंगतलाई जिले के गांव परवा के अधिकारियों तथा कुछ गैर सरकारी संगठनों ने मिलकर उक्त राहत समिति गठित की थी।
उल्लेखनीय है कि कुकी-चिन जनजातीय समुदाय बांग्लादेश, मिजोरम तथा म्यांमार के पहाड़ी क्षेत्रों में रहता है। हमांगईहजुआला के अनुसार, शक्रवार देर रात को पहुंचे 21 शरणार्थियों को सीमा सुरक्षा बल के जवान परवा गांव लेकर आए थे। उनकी जानकारी के अनुसार, अभी बांग्लादेश से आए कुल 294 कुकी—चिन लोगों ने परवा गांव में स्कूल, सामुदायिक हॉल, आंगनवाड़ी केंद्र जैसी जगहों में शरण ली हुई है। परवा गांव के ग्राम परिषद अध्यक्ष हमांगईहजुआला अपने साथियों के साथ कुकी-चिन शरणार्थियों को गैर सरकारी संगठनों के माध्यम से खाना, कपड़े तथा दूसरी राहत सामग्रियां उपलब्ध करा रहे हैं।
बताया जाता है कि बांग्लादेश में सेना और कुकी—चिन विद्रोही गुट के बीच चल रहे सशस्त्र संघर्ष की वजह से और शरणार्थी भारत में शरण ले सकते हैं। हालांकि मिजोरम सरकार के किसी जिम्मेदार अधिकारी की ओर से अभी इस प्रकरण पर कोई टिप्पणी देखने में नहीं आई है। लेकिन मिजोरम कैबिनेट ने उक्त शरणार्थियों के प्रति सहानुभूति जरूर व्यक्त की थी। कैबिनेट ने शराणार्थियों के लिए रहने को अस्थायी जगहों, खाने और अन्य बुनियादी जरूरतों की पूर्ति करने पर सहमति जातई थी। इधर ‘सेंट्रल यंग मिजोरम एसोसिएशन’ ने भी जनजातीय शरणार्थियों को हर तरह की मानवीय सहायता उपलब्ध कराने के प्रति आश्वासन दिया है।
मिजोरम में सेंट्रल यंग मिजोरम एसोसिएशन का काफी काम है, ये यहां का एक बड़ा सामाजिक संगठन माना जाता है। बताते हैं कि इसके पूरे राज्य में और बाहर भी करीब पांच लाख सक्रिय सदस्य हैं। बांग्लादेश से कुकी-चिन समुदाय के मुसीबत में घिरे लोग इसलिए मिजोरम आ रहे हैं क्योंकि उनका मिज़ो जनजातीय लोगों के साथ साझा जनजातीय नाता है। मिजोरम में उनके नातेदार रहते हैं। मणिपुर में इसी जनजाति के लोगों को कुकी के नाम से जाना जाता है। मणिपुर में भी इस समुदाय की अच्छी—खासी संख्या है।
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