सिखो के नवें गुरु श्री तेग बहादुर साहिब जी महाराज का आगरा के साथ भी संबंध रहा है। वे यहां मुगल शासक औरंगजेब द्वारा नजरबंद किए गए थे और यहीं से उन्हें दिल्ली ले जाया गया, जहां उन्होंने हिंदू धर्म की खातिर अपना शीश बलिदान दिया।
आगरा में औरंगजेब का एक बादशाही बगीचा हुआ करता था। माना जाता है जब औरंगजेब की सेना उन्हें आनंदपुर साहिब से बंदी बनाकर लाई थी तो उन्हें यहां नजरबंद रखा गया था। गुरु साहिब को यहां दो हफ्तों की कैद में रखा गया और यहां से दिल्ली ले जाकर उन्हें यातना देकर शीश धड़ से अलग कर दिया। गुरु के इस बलिदान स्थल पर गुरुद्वारा शीश गंज है।
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बादशाही बगीचे को बाद में गुरु का घोषित कर सिख समाज ने गुरुद्वारा बना दिया। 1971 में हजूर साहिब से आए बाबा निरंजन सिंह ने गुरुताल के आसपास की 18 एकड़ जमीन को खरीद लिया और यहां भव्य गुरुद्वारे का निर्माण करवाया। गुरु ताल में हर समय 500 सेवादार रहते हैं और 24 घंटे लंगर सेवा करते हैं।
माना ये भी जाता है कि यहां आज भी वो बरगद का पेड़ है जिसके नीचे गुरु महाराज विश्राम किया करते थे। एक कुआं भी है जिसके मीठे जल को लोगों में प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। कहते हैं ये कुआं खारे पानी का था जिसे गुरु महाराज ने अपने आशीर्वाद से मीठे जल में परिवर्तित किया था। आज गुरु तेग बहादुर के बलिदानी दिवस के अवसर पर गुरु का ताल में श्री गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ करने के लिए दीवान सजाया गया। कीर्तन दरबार में शबद कीर्तन हो रहे हैं और गुरु का अटूट लंगर वितरित हो रहा है।
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