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कन्वर्जन : खेल में और भी बड़े खिलाड़ी

'ईसा मसीह को उन असंख्य भूखे लोगों के पास लाने की आवश्यकता है, जिन्होंने कभी ईसा मसीह के बारे में ही नहीं सुना। उन्हें पता ही नहीं है कि ईसा मसीह उन्हें शैतान के चंगुल से बचा सकते हैं।'

by ज्ञानेंद्र नाथ बरतरिया
Nov 23, 2022, 12:07 pm IST
in भारत
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कन्वर्जन के खेल में बहुत सी बहुराष्ट्रीय कंपनियां लगी हुई हैं। ये कंपनियां कन्वर्जन कराने वाली संस्थाओं को चंदा देती हैं और संस्थाएं इसका उपयोग प्रकारांतर से कन्वर्जन में करती हैं

‘आतंकवादी भाई’।
उस समय के केंद्रीय गृहमंत्री ने कहा।
‘आप किसे भाई कह रहे हैं? जो हत्याएं करते हैं, बहन-बेटियों से बलात्कार करते हैं?’ – प्रो. विजयकुमार मल्होत्रा ने लोकसभा में पूछा। शब्द कुछ भिन्न रहे हो सकते हैं।
प्रकारांतर से यह प्रश्न अभी भी बरकरार है, और उत्तर के नाम पर चुप्पी है।
इस बार यह प्रश्न एक डिजिटल दुकानदार से है, जो कुछ लोगों को चंदा-पैसा सुविधा मुहैया कराता है।
वह किन लोगों को चंदा-पैसा-सुविधा मुहैया कराता है? जो कन्वर्जन कराते हैं, जो अपने शिकार वर्गों पर बेहद असभ्य अत्याचार करते हैं, जो छोटी बच्चियों को यौन क्रीड़ा दास की तरह रखते हैं।

भारत केन्द्रित ईसाई मिशनरीज की वेबसाइटें देखें। अधिकांश कहती हैं- ‘ईसा मसीह को उन असंख्य भूखे लोगों के पास लाने की आवश्यकता है, जिन्होंने कभी ईसा मसीह के बारे में ही नहीं सुना। उन्हें पता ही नहीं है कि ईसा मसीह उन्हें शैतान के चंगुल से बचा सकते हैं।’

माने भारत की देसी संस्कृति तो शैतान के चंगुल में है, शैतानी है, और मिशनरीज उन्हें बचाने के लिए यहां आई हुई हैं। यह अलग बात है कि यही मिशनरियां यहां की संस्कृति के प्रतीकों को ही तोड़मरोड़ कर इस्तेमाल कर रही हैं।

दूसरा अर्थ यह हुआ कि ‘हमारे उद्धारकर्ता यीश’ सबसे पहले संस्कृति के विनाश पर पूरी ताकत केन्द्रित कर देते हैं। इसके लिए स्थानीय समुदायों की सामाजिक समस्याओं को बहुत बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाता है, ताकि ‘बचाव’ को सही ठहराया जा सके। उदाहरण के लिए, हमें ‘बचाने’ के लिए ईसाई मिशनरीज का एक प्रमुख तर्क है- अनुसूचित जाति-जनजाति की दुर्दशा।

कोई संदेह नहीं कि कुछ मामले खोजे जा सकते हैं। लेकिन उससे भी बड़ा सत्य यह भी है कि भारत इस तरह के वंचित वर्गों के उत्थान के लिए जो सकारात्मक कार्रवाई और कार्यक्रम चलाता है, वह विश्व भर में सबसे अधिक सक्रिय, सकारात्मक और आक्रामक हैं।

लेकिन इन विदेशी ‘बचावकर्ता’ ईसाई मिशनरियों का इरादा उसमें मदद या योगदान करने का जरा भी नहीं होता है। उनका लक्ष्य उन ‘अनुसूचित जाति-जनजातियों’ को उनकी अपनी संस्कृति, सहजता, सरलता, इतिहास और आध्यात्मिकता से वंचित कर देना होता है। अपनी संस्कृति से कट कर ऐसे लोग समाज में अमानवीय स्तर पर बेगाने हो जाते हैं। सभी कन्वर्जन वास्तव में कन्वर्टेड व्यक्ति को अलग-थलग स्थिति में कन्वर्ट कर देते हैं। और यह प्रक्रिया तब तक चलती रहती है, जब तक कि कन्वर्टेड व्यक्ति अपनी मूल परंपराओं, पूजा पद्धति, वेशभूषा, भाषा, त्यौहार, समुदाय से पूरी तरह कट नहीं जाता है। यह ‘आत्माओं की खेती’ नहीं, बल्कि संस्कृति से ‘नफरत की खेती’ है।

ईसाई मिशनरियों ने यही काम दुनिया भर में स्थानीय समुदायों के साथ किया है, यही कारण है कि महात्मा गांधी ने, बाबासाहेब अंबेडकर ने इन बचावकतार्ओं से लगातार सावधानी बरती है।

इंटरनेशनल मिशन बोर्ड का धंधा
एक आकलन के अनुसार ईसाइयत का वैश्विक कारोबार 250 अरब डॉलर से अधिक का है। माने इतना पैसा कन्वर्जन के धंधे के लिए मिशनरीज को मिलता है।

द कम्यूनमैग नामक पत्रिका की जनवरी 2021 की रिपोर्ट के अनुसार अमेरिकी ईसाई संगठन – ‘इंटरनेशनल मिशन बोर्ड (आईएमबी) ने भारत में लोगों को ईसाइयत में कन्वर्ट करने के लिए 175 अरब डॉलर आवंटित किए हैं। इस संगठन के सदस्य भारत में रहने वाले लगभग हर समुदाय के लोगों को कन्वर्ट कराते हैं, लेकिन उनका प्राथमिक लक्ष्य हिंदू हैं और उनका सबसे पहला कार्य हिंदू देवताओं के प्रति गहरी नफरत पैदा करवाना होता है। इंटरनेशनल मिशन बोर्ड की वेबसाइट पर दक्षिण एशिया को ‘विस्मयकारी’ और ‘दिल दहला देने वाला’ कहा गया, क्योंकि यहां गैर-ईसाइयों की सघनता सबसे अधिक है।’

इंटरनेशनल मिशन बोर्ड ने अपनी वेबसाइट पर खुले तौर पर कहा है कि वे अन्य हिंदुओं को कन्वर्ट कराने के लिए कन्वर्टेड हिंदुओं की भर्ती कर रहे हैं और लगभग 3 हजार 535 मिशनरी परिवार भारत में कन्वर्जन करने के लिए इंटरनेशनल मिशन बोर्ड के इशारे पर काम कर रहे हैं।

अपेक्षाकृत थोड़ा नया प्रकरण है- यॉर्क के आर्कबिशप स्टीफन कॉटरेल का 1 अगस्त, 2022 को लैम्बेथ सम्मेलन में भाषण। यह सम्मेलन दस वर्ष में एक बार होता है। कैंटरबरी में हुए इस सम्मेलन में दुनिया भर के 650 से अधिक एंग्लिकन बिशप मौजूद थे। आर्कबिशप स्टीफन कॉटरेल ने फरमाया- ‘मैकडॉनल्ड्स हैम्बर्गर बनाता है। कैडबरी चॉकलेट बनाती है।

स्टारबक्स कॉफी बनाता है। वेनेजुएला का साइमन बोलिवर यूथ आर्केस्ट्रा संगीत बनाता है। हेनेकेन बीयर बनाते हैं। टोयोटा कार बनाती है। रोलेक्स घड़ियां बनाता है। सफारीकॉम अधिकांश अफ्रीका में कनेक्शन बनाते हैं। और बहनों और भाइयों, ईसा मसीह का चर्च अनुयायी बनाता है। यही हमारा मुख्य धंधा है।’

अरबों डॉलर का चंदा
हिंदुओं को कन्वर्ट कराने के धंधे में लिप्त संगठनों में इंटरनेशनल मिशन बोर्ड अकेली मिशनरी संस्था नहीं है। बैपटिस्ट वर्ल्ड एलायंस (बीडब्ल्यूए) है, और भी बहुत हैं। सवाल यह है कि यह अरबों डॉलर आते कहां से हैं?

 

ओएसिस इंडिया के उपरोक्त ट्विट्स बता रहे हैं कि उसके संबंध चर्च से हैं।

वर्ष 2016-2017 में 25,000 एनजीओ को 18,065 करोड़ रुपये का विदेशी चंदा मिला। वर्ष 2015-2016 में कॉपोर्रेट मामलों के मंत्रालय के अनुसार सीएसआर गतिविधि के हिस्से के रूप में 2693 कंपनियों द्वारा 9,822 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे। विदेशी योगदान का एक हिस्सा भारत में स्थित कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों से आता है। बहुराष्ट्रीय कंपनियां कुछ गैर सरकारी संगठनों को धन देती हैं जिन्हें वे अपना कामकाजी भागीदार मानते हैं। चिंताजनक बात तब होती है जब वह एनजीओ चर्च से जुड़ा होता है और ईसाई धर्म में कन्वर्जन के काम में शामिल होता है।

ब्लू डार्ट की फंडिंग
यह चक्र कैसे चलता है, इसके कुछ उदाहरण देखिए। एक उदाहरण ब्लू डार्ट का है, जो कूरियर व्यवसाय की एक प्रमुख कंपनी है, जो विश्व भर में बड़े कंटेनरों से लेकर छोटे पैकेटों तक के परिवहन और वितरण का काम करती है। मार्च 2022 तक, ब्लू डार्ट एक्सप्रेस की भारत में वार्षिक आय 4,409.02 करोड़ रुपये थी। इसी प्रकार ब्लू डार्ट एविएशन की आय 500 करोड़ रुपये से अधिक थी। पिछले वर्षों के लिए औसत शुद्ध लाभ 239 करोड़ रुपये था।

सरकार के नियमों के अनुसार कंपनी का सीएसआर व्यय कर बाद लाभ का 2 प्रतिशत होना चाहिए। 2019 में ब्लू डार्ट ने विभिन्न सीएसआर गतिविधियों पर 4.8 करोड़ रुपये खर्च किए। ब्लू डार्ट ने अपनी सीएसआर गतिविधियों को तीन प्रमुख खंडों में विभाजित किया है। यह तीन खंड हैं – गो-ग्रीन, गो-टीच और गो-हेल्प। गो-ग्रीन गांवों में वृक्षारोपण से जुड़ा हुआ है, गो-टीच सरकारी स्कूलों में शिक्षा की मदद करता है और वंचित बच्चों की शिक्षा के लिए मदद करता है, जबकि गो-हेल्प स्वास्थ्य से संबंधित विभिन्न गतिविधियों में मदद करता है। गो-टीच को ब्लू एज और ब्लू टीच में विभाजित किया गया है। गो हेल्प को ब्लू होम्स और ब्लू हेल्प में विभाजित किया गया है।

अब ब्लू एज गतिविधियों को क्रियान्वित करने का काम ओएसिस इंडिया, नोएडा डेफ सोसाइटी (एनडीएस) और होप फाउंडेशन नाम के एनजीओ करते हैं। ब्लू टीच की गतिविधियां ई एंड एच, पीपुल, अगस्त्य फाउंडेशन, डीड्स नाम के एनजीओ चलाते रहे हैं। ब्लू होम्स की गतिविधियां एसओएस चिल्ड्रेन विलेजेज आफ इंडिया, सेंट जूड इंडिया चाइल्ड केयर सेंटर्स द्वारा चलाई जाती हैं। ब्लू हेल्प गतिविधियां हेल्पएज इंडिया, सोरोप्टिमिस्ट, ओशन फाउंडेशन, अक्षयपात्र, यूएचआरसी द्वारा चलाई जाती हैं। ब्लू ग्रीन्स गतिविधियों ग्रो ट्रीज द्वारा चलाई जाती हैं। 2019 के आंकड़ों के अनुसार, इन सभी में सबसे कम 36,000 रुपये अक्षयपात्र को दिए जाते हैं।

ओएसिस इंडिया का खेल
उधर ओएसिस इंडिया अपने आपमें एक बहुराष्ट्रीय एनजीओ है। इसके मूल संगठन हैं- ओएसिस इंटरनेशनल और ओएसिस मिनिस्ट्रीज (मिशनरीज का एक नाम), जो इसका वित्त पोषण करते हैं। भारत में, ओएसिस का घोषित उद्देश्य सशक्तिकरण और समावेशिता के लिए काम करना है।

वे महिलाओं की तस्करी के विरुद्ध काम करते हैं, जो निश्चित ही एक अच्छी बात है। ओएसिस इंडिया कहीं भी सीधे अपनी वेबसाइट पर यह संकेत नहीं देता है कि इसका ईसाई दर्शन, बाइबिल, चर्च या जीसस से कोई भी संबंध है। लेकिन अगर ध्यान से प्रेक्षण और विश्लेषण किया जाए तो हम आसानी से यह निष्कर्ष निकलता है कि ओएसिस एक विशुद्ध ईसाई एनजीओ है। 2019 में, ओएसिस इंडिया को ओएसिस इंटरनेशनल से 1.6 करोड़ रुपये और ओएसिस मिनिस्ट्रीज से 21.9 लाख रुपये मिले, क्रिस्टलिचे आस्टमिशन से 1.15 करोड़ रुपये मिले, और यह तीनों स्पष्ट रूप से ईसाई संगठन हैं।

ओएसिस इंडिया की कोर टीम में अधिकांश सदस्य ईसाई हैं। स्टीव चालके ओएसिस ट्रस्ट के संस्थापक और नेता हैं और ओएसिस चर्च, वाटरलू के सीनियर मिनिस्ट के तौर पर काम करते हैं। ओएसिस इंडिया भारत में चर्चों के साथ भी काम कर रहा है। ओएसिस इंडिया का एक लेख था – ‘क्या हम बच्चों के लिए समावेशी होने के लिए पर्याप्त कट्टरपंथी हैं?’ इस लेख में ओएसिस इंडिया बाइबिल को उद्धृत करता है और ईसा के जीवन का उदाहरण देता है। सोशल मीडिया में ओएसिस इंडिया के पिछले कुछ पोस्ट यह स्पष्ट करते हैं कि ओएसिस इंडिया एक ईसाई एनजीओ है जिसका दर्शन बाइबल और ईसा की शिक्षाओं पर आधारित है।

अब पैसे की चाल देखें। ओएसिस इंडिया जो कुछ ह्लसमावेशी और पर्याप्त कट्टरपंथीह्व कार्य करता है, उसे वह अधिकांशत: चर्चों के लिए करता है, और इसके ऐवज में चर्चों को भुगतान भी करता है। इसके कार्यक्रमों की शुरूआत भी चर्च से होती है, और अंत भी।
ओएसिस इंडिया ने एक ईसाई गायक ग्राहम केन्ड्रिक का एक संगीत कार्यक्रम आयोजित किया था, जो सशुल्क था। इस ईसाई गायक का लोकप्रिय गीत है – ‘शाइन जीसस शाइन’।

यह कार्यक्रम 2016 में भी आयोजित किया गया था और 2017 में भी। ग्राहम केन्ड्रिक ब्रिटेन के नागरिक हैं और बाइबिल पर आधारित गीत और ईसा की प्रशंसा में गीत गाते हैं। ग्राहम केन्ड्रिक ‘मार्च फॉर जीसस’ नामक संगठन के भी संस्थापक रहे हैं। इस प्रकार के ईवेंजिकल गायकों का मुख्य उद्देश्य संगीत के माध्यम से अधिक से अधिक लोगों को ईसाइयत की आकर्षित करना होता है। इन ईवेंजिकल ईसाई गायकों की तुलना भजन-कीर्तन करने वाले गायकों से नहीं की जा सकती है। भजन-कीर्तन करने वाले किसी का कन्वर्जन नहीं कराते हैं, और न कन्वर्जन कराने के लिए भजन-कीर्तन करते हैं।

ओएसिस इंटरनेशनल एक बहुत बड़ा एनजीओ है जिसकी कई देशों में शाखाएं हैं। ओएसिस इंटरनेशनल का उद्देश्य बहुत स्पष्ट रूप से कहा गया है कि ‘हम जो कुछ भी करते हैं वह यीशु के जीवन, शिक्षाओं और मंत्रालय से प्रेरित हैस। ओएसिस ग्लोबल की वेबसाइट में जो तस्वीर दिखाई गई, वह एक भारतीय लड़की की थी। ओएसिस ग्लोबल फाउंडेशन ङ्मस्रील्लूँ४१ूँ.ल्ली३६ङ्म१‘ नामक एक वेबसाइट भी चलाता है जिसका मुख्य उद्देश्य ‘समावेशी चर्च’ को बढ़ावा देना है।

भारत के लोगों के साथ व्यापार करके हजारों करोड़ की आमदनी करने वाली ब्लू डार्ट जैसी कंपनी ऐसे गैर सरकारी संगठनों की मदद करके अप्रत्यक्ष रूप से इस तरह के कन्वर्जन की मदद कर रही है। अगर अन्य एनजीओ और मल्टीनेशनल कंपनी का विश्लेषण किया जाए तो ऐसी ही कई और कहानियां सामने आ सकती हैं। अमेजन एक और उदाहरण है। 

ओएसिस इंटरनेशनल तो अपने मिशन के बारे में स्पष्ट तौर पर बताता है, लेकिन ओएसिस इंडिया अपनी ईसाई पहचान छुपाता है और अपने ईसाई मिशन का उल्लेख न करके धर्मनिरपेक्ष होने का ढोंग करना चाहता है।

भारत में विदेशी योगदान प्राप्त करने वाले कई ईसाई एनजीओ और चर्च हैं। उनका प्रबंधन भी चर्च के हाथों में है। लेकिन ओएसिस इंडिया को एक कंपनी से सीएसआर फंड मिलता रहा है, जो पंजीकृत और सार्वजनिक सूचीबद्ध कंपनी है।

ब्लू डार्ट सीएसआर का एक अन्य प्राप्तकर्ता होप फाउंडेशन है, जिसे 2019 के आंकड़ों के अनुसार 12 लाख रुपये मिले थे। इसके नेतृत्वकर्ता थे- जी.बी. डिसूजा, लिविन प्रकाश डीह्णसा और सीईओ थे जॉनसन अरोकियानाथन। ब्लू डार्ट का अन्य कार्यक्रम ब्लू होम्स है, जिसमें वह अपने सहयोगी – एसओएस चिल्ड्रेन्स विलेजेज के साथ अनाथों के लिए घरों की स्थापना करने का काम करता है। 2019 में इसे जम्मू, श्रीनगर, भुज, रायपुर, लातूर और कोचीन में किए गए कार्यों के लिए 77 लाख रुपये दिए गए। ब्लू डार्ट ने सेंट जूड इंडिया चाइल्ड केयर सेंटर्स को भी 53 लाख रुपये दिए हैं।

भारत के लोगों के साथ व्यापार करके हजारों करोड़ की आमदनी करने वाली ब्लू डार्ट जैसी कंपनी ऐसे गैर सरकारी संगठनों की मदद करके अप्रत्यक्ष रूप से इस तरह के कन्वर्जन की मदद कर रही है। अगर अन्य एनजीओ और मल्टीनेशनल कंपनी का विश्लेषण किया जाए तो ऐसी ही कई और कहानियां सामने आ सकती हैं। अमेजन एक और उदाहरण है।

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