1984 के सिख नरसंहार में कांग्रेस और उसके नेताओं के हाथ खून में सने हैं। 9 राज्यों में दंगे हुए, लेकिन 38 साल के बाद भी पीड़ित सिखों को न्याय नहीं मिला, क्योंकि पुलिस और दूसरी जांच एजेंसी ने संवेदनशीलता नहीं दिखाई। अब एसआईटी बनने के बाद डरे-सहमे लोग सामने आकर सच बता रहे हैं
1984 का नरसंहार सिखों के ऊपर बहुत बड़ा प्रहार था। 38 साल तक जांच चली, लेकिन पीड़ित सिखों को आज तक न्याय नहीं मिला। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित एसआईटी की रिपोर्ट से उनमें न्याय की उम्मीद जगी है। जस्टिस ढींगरा की अगुआई वाली एसआईटी रिपोर्ट में कहा गया है कि मामले की जांच में पुलिस और अन्य तंत्र ने संवेदनशीलता नहीं दिखाई।
जब भी कोई अपराध होता है तो तीन विकल्प होते हैं- शिकायतकर्ता पुलिस के पास जाए, पुलिस संज्ञान लेकर कार्रवाई करे या अदालत स्वत: संज्ञान ले। लेकिन 31 अक्तूबर, 1984 के बाद जो नरसंहार हुआ, उसमें तीनों ने कोई कदम नहीं उठाया। अभी तक जिन 13 मामलों में फैसले आए हैं, उनमें सभी पुलिस अधिकारी थे, जो बरी हो गए। सवाल है कि जब पुलिस ही अपराधी के साथ सिखों को मारने में शामिल थी, तो इंसाफ कहां से मिलता। उस समय एक अजीब-सा माहौल था। जिन्होंने भी यह सब देखा, वे इतने डरे हुए थे कि गवाही देने के लिए आगे नहीं आए। बाकी लोग तो उन्हें बचाने में लगे हुए थे।
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद जब भावी प्रधानमंत्री राजीव गांधी हवाई अड्डे पर आए तो उन्होंने कहा था कि मुझे एक भी पगड़ी वाला दिखाई नहीं देना चाहिए। एक करीबी ने मुझे यह बात बताई थी, जो उस समय हवाई अड्डे पर मौजूद थे। बाद में वे सज्जन राष्ट्रपति से मिले और उन्हें बताया कि ऐसा नरसंहार होने वाला है।
आप इस पर विचार कीजिए और सेना को बुलाइए या किसी को अंतरिम प्रधानमंत्री बना दीजिए। लेकिन तत्कालीन राष्ट्रपति जी ने भी इस पर कोई कार्रवाई नहीं की। बाकी बयान तो दुनिया के सामने है कि ‘‘जब बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती कांपती है।’’ धरती तो कांपेगी। भारत में सिखों की आबादी 1.6 प्रतिशत है। 9 राज्यों में दंगे हुए, लेकिन न तो किसी को मुआवजा मिला और न ही किसी आरोपी को सजा हुई।
अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 5 लाख रुपये मुआवजा तय करने के साथ सर्वोच्च न्यायालय द्वारा एसआईटी का गठन किया गया है। इससे पूर्व जब मदन लाल खुराना दिल्ली के मुख्यमंत्री बने थे, केवल तभी इस दिशा में काम हुआ था। फिर अटल बिहारी वाजपेयी के सत्ता में आने के बाद मुआवजा देकर सिखों के जख्म पर मरहम लगाने के प्रयास हुए। हालांकि कांग्रेस सरकार के समय जो अपराध हुआ था, उस लेकर बाद में संसद में एक सिख प्रधानमंत्री ने तो माफी मांगी, लेकिन कांग्रेस पार्टी ने कभी माफी नहीं मांगी। ऐसी स्थिति में इंसाफ कहां मिलता?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी केंद्र की सत्ता में आने के बाद पहले दिन से सिखों की चिंता करते आ रहे हैं। सिख उनकी प्राथमिकता में हैं। मेरे पास ऐसे 25 कामों की सूची है, जो उन्होंने सिखों के लिए किए हैं। चाहे करतारपुर गलियारा खोलने की बात हो या सिख गुरुओं गुरुनानक, गुरु तेगबहादुर और गुरु गोविंद सिंह की जयंती मनाना। आज दुनिया में सिख पंथ के प्रचार की बात हो रही है। वीर बाल दिवस मनाया जा रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने सिखों के हित में कर माफी, हरमिंदर साहिब का जीएसटी माफ करने जैसे कई काम किए हैं
इंदिरा गांधी की हत्या दो पुलिसवालों ने की और दोनों ही उनकी सुरक्षा में तैनात थे। इस हत्याकांड के लिए सुरक्षा एजेंसियां और पुलिस तंत्र जिम्मेदार है। इसकी जांच होनी चाहिए। सिखों पर हमला क्यों हुआ और किसने ऐसा करने का निर्देश दिया? अब एसआईटी बनी है तो लोग भी सामने आ रहे हैं। अभी सज्जन कुमार जैसे और अपराधी जेल जाएंगे। इसके लिए बहुत काम करना बाकी है।
जांच में स्पष्ट हो रहा है कि यह एक ऐसी सोचा-समझा अपराध था, जो सिखों के विरोध में किया गया। कांग्रेस ने हमेशा तोड़ने का काम किया है। देश विभाजन के बाद से लेकर अब तक पंजाब में जो समस्याएं हैं, उसके लिए कांग्रेस ही जिम्मेदार है। विभाजन के बाद कांग्रेस ने सिखों से जो वादे किए थे, उन्हें पूरा नहीं किया। कांग्रेस पार्टी ने भाई को भाई से लड़ाया और लोगों को धर्म-पंथ के आधार पर बांटा। आज भी पंजाब में यही काम हो रहा है।
1984 के सिख नरसंहार के लिए माहौल भले ही नवंबर में बना, लेकिन इसकी पृष्ठभूमि पहले से तैयार हो रही थी। 1982 में भाई अमरीश सिंह और अटारा सिंह की रिहाई के लिए मोर्चाबंदी हुई। उसके बाद अमृतसर जाने वाली ट्रेन का नाम ‘गोल्डन टेंपल्स’ रखने की राजनीतिक मांग लेकर अकाली दल आ गया। अमृतसर को पवित्र करार देने की भी मांग उठी जो न तो बड़ी थी और न ही इसमें कोई खर्च होना था। हालांकि बाद में भाई अमरीक सिंह और अटारा सिंह अदालत से बरी हो गए। उन्होंने अपनी जमानत भी नहीं कराई। लेकिन उसके बाद की योजना देखिए।
भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री ने इंग्लैंड की प्रधानमंत्री मार्गे्रट थैचर को लिखा, ‘‘हमें दरबार साहिब पर कार्रवाई करनी है, हमारा मार्गदर्शन कीजिए।’’ इसका प्रमाण भी मौजूद है। मैंने वह दिन भी देखा है, जब 13 सितंबर, 1981 को जब जरनैल सिंह भिंडरांवाले ने गिरफ्तारी देनी चाही, तो इन्होंने कहा कि हम 20 सितंबर को गिरफ्तार करेंगे। लेकिन 20 सितंबर को 15 लोग मारे गए। ऐसा पहली बार हुआ कि अभियुक्त तय कर रहा था कि उसे कब गिरफ्तारी देनी है!
अगर कोई साक्ष्य नहीं था तो उसे गिरफ्तार क्यों किया? फिर उसी साल 17 अक्तूबर को यह कहते हुए भिंडरांवाले को रिहा भी कर दिया गया कि उसके खिलाफ कोई आरोप नहीं था। फिर जो लोग मारे गए उसके लिए जिम्मेदार कौन था? उसकी जांच आज तक नहीं हुई। उस समय सरकार ने ऐसा माहौल बनाया कि जनवरी 1985 में चुनाव के पहले जो बंगलादेशियों के सामने दुर्गा बनकर आई थी, वह अब भी लोगों के लिए देवी है।
आज पंजाब को एक बार फिर से सुलगाने के लिए विदेशी षड्यंत्र रचे जा रहे हैं। गुरपतवंत सिंह पन्नू के साथ मिलकर अवतार सिंह पन्नू ने ‘सिख फॉर जस्टिस’ नाम से एक संगठन बनाया। इसी अवतार सिंह पन्नू के साथ पंजाब विधानसभा के अध्यक्ष कनाडा में खाना खाते हैं और उसके साथ फोटो खिंचवाते हैं।
पंजाब में आज ‘खालिस्तान जिंदाबाद’ के नारे लग रहे हैं और पाकिस्तान का झंडा लहराया जा रहा है, इसके लिए कौन जिम्मेदार है? इन्हें गिरफ्तार क्यों नहीं करते? पुलिस में अपने सेवाकाल के दौरान मैंने ऐसा कभी नहीं देखा कि कोई खालिस्तानी झंडे लेकर रोड शो कर रहा हो और पुलिस उसे सुरक्षा प्रदान कर रही हो।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी केंद्र की सत्ता में आने के बाद पहले दिन से सिखों की चिंता करते आ रहे हैं। सिख उनकी प्राथमिकता में हैं। मेरे पास ऐसे 25 कामों की सूची है, जो उन्होंने सिखों के लिए किए हैं। चाहे करतारपुर गलियारा खोलने की बात हो या सिख गुरुओं गुरुनानक, गुरु तेगबहादुर और गुरु गोविंद सिंह की जयंती मनाना।
आज दुनिया में सिख पंथ के प्रचार की बात हो रही है। वीर बाल दिवस मनाया जा रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने सिखों के हित में कर माफी, हरमिंदर साहिब का जीएसटी माफ करने जैसे कई काम किए हैं। यही नहीं, बिना मांगे उन्होंने हेमकुंड साहिब के लिए 12 हजार करोड़ रुपये की परियोजना दे दी। सिखों नेजो भी मांगा प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें दिया और आगे भी देने को तैयार हैं।
अंत में अपने भाइयों से यही कहना चाहूंगा कि वे सच को समझें, स्वीकार करें और उस पर चलें। यह देश हमारा है। इसके लिए हमारे बुजुर्गों ने कुर्बानियां दी हैं। हम जहां चाहते हैं, वहां पर प्रधानमंत्री खड़े होते हैं। इससे बड़ी बात और नहीं हो सकती।
(राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आ योग के अध्यक्ष इकबाल सिंहलालपुरा से राज चावला की बातचीत पर आधारित)
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