उत्तराखंड में मतांतरण के खिलाफ सख्त कानून की जरूरत क्यों ? जानें सबकुछ

लव जिहाद के साथ-साथ राज्य में बिछा ईसाई मिशनरियों का जाल

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दिनेश मानसेरा

उत्तराखंड में पुष्कर सिंह धामी की सरकार कन्वर्जन को रोकने के लिए सख्त कानून बनाने जा रही है। कानून के मसौदे को धामी कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है और अब इसे विधानसभा पटल पर रखा जाएगा। जहां से पारित होने के बाद राज्यपाल फिर राष्ट्रपति को मंजूरी के लिए भेजा जाएगा। सवाल ये है कि आखिरकार इस कन्वर्जन कानून की राज्य को क्यों जरूरत पड़ रही है? जबकि इस उत्तराखंड को देवभूमि यानी हिंदू देवी-देवताओं का प्रवास वाला राज्य माना जाता है।

उत्तराखंड सरकार ने त्रिवेंद्र सिंह रावत के कार्यकाल में 2018 में कैबिनेट में मतांतरण विधेयक को प्रस्तुत करने के बाद विधानसभा में पारित किया था। सूत्र बताते हैं कि ये विधेयक कुछ तकनीकी खामियों की वजह से राष्ट्रपति तक नहीं जा सका। अब धामी सरकार ने इस मतांतरण विधेयक में विधि विशेषज्ञों की राय लेने के बाद, इसका ड्राफ्ट फिर से तैयार करवा कर कैबिनेट में पास किया है और अब इसे विधानसभा के अगले सत्र में लाया जाएगा।

इस विधेयक में मतांतरण की सजा दस साल करने का प्रावधान किया गया है। खास बात ये है कि यूपी में मतांतरण करने की सजा पांच साल है, जबकि यहां दस वर्ष करके ये संदेश दिया गया है कि उत्तराखंड का विधेयक ज्यादा कठोर होगा। विधेयक में मतांतरण करने वाला व्यक्ति अल्पसंख्यक बन जाता है तो उसे जनजाति श्रेणी की समस्त सरकारी सुविधाओं से वंचित किया जाएगा। मतांतरण में जुर्माने की राशि 50 हजार किए जाने का प्रावधान किया गया है। जानकारी के मुताबिक यदि कोई संस्था सामूहिक रूप से मतांतरण करवाती है तो पहले इसमें दो से सात साल की सजा रखी गई थी। नए बिल में इसे भी बढ़ा कर तीन से दस साल कर दिया गया है। पूर्व में आरोपियों को तत्काल जमानत का प्रावधान दिया गया था, परंतु अब इसे गैर जमानत की श्रेणी में रखा गया है।

सरकार ने मतांतरण करवाने वाले और करने वाले दोनों को इस कानून के शिकंजे में ले लिया है। यानी यदि इस कानून को राष्ट्रपति द्वारा मंजूर कर लिया जाता है तो ये हिंदू धर्म के संरक्षण और सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम माना जाएगा और देश के किसी भी राज्य में ऐसा सख्त कानून नहीं होगा। उत्तराखंड में ईसाई मिशनरियों ने सबसे ज्यादा मतांतरण का अभियान पिछले कई दशकों से चलाया हुआ है। इनके निशाने में जनजाति समुदाय और वंचित समुदाय ही रहता है।

राज्य के उधमसिंह नगर जिले में रहने वाली थारू बुक्सा जनजाति जिसे आज भी महाराणा प्रताप या राजपूत वंशज माना जाता है, उनकी 35 फीसदी आबादी ईसाई बन चुकी है। पहाड़ों में वंचित, अंबेडकर, वाल्मीकि समाज में भी ईसाई मिशनरियों ने अपना जाल फैलाया हुआ है और उन्हें ईसाई बनाया जा रहा है। ईसाई मिशनरियां बेहद चालाकी से वंचित हिंदू समुदाय को अपने साहित्य और संबोधनों के जरिए प्रभावित कर रही हैं। अब पादरी सफेद कपड़ों में नहीं आते, बल्कि यहीं के स्थानीय लोगों के बीच से निकले हुए मसीह पादरी होते हैं। चर्चो में अब सेंट की जगह संत लिखा हुआ मिलता है, साहित्य में भगवान कृष्ण को ईसा मसीह बता कर बरगला दिया जाता है।
टिहरी, नैनीताल, हरिद्वार, पिथोरागढ़, देहरादून, बागेश्वर जिले में ईसाई मिशनरियों द्वारा बेधड़क होकर मतांतरण किया है। सिखो में राय सिख समुदाय में भी मिशनरियों की सक्रियता बढ़ी है और बड़ी संख्या में सिखो ने गुरुद्वारे छोड़ कर चर्च की प्रार्थना सभाओं का रुख कर लिया है। हाल ही में जसपुर, भोगपुर, काशीपुर क्षेत्र में बौद्ध पंथ अपनाने के लिए बाकायदा बड़े- बड़े जलसे किए गए।

ईसाई मिशनरियों की हरकतों के अलावा उत्तराखंड में तेजी से लव जिहाद की घटनाएं फैली हैं। पहले मैदानी जिलों में ही हिंदू लड़कियों को मुस्लिम लड़कों द्वारा नाम बदल कर प्रेम जाल में फंसाने और उनका मतांतरण कराने की घटनाएं सामने आती थीं, अब पहाड़ी क्षेत्रों में पौड़ी, टिहरी, चमोली, चंपावत, बागेश्वर, नैनीताल जिले में ऐसे मामले दर्ज हुए हैं। जानकारी के मुताबिक केंद्रीय गृह मंत्रालय के पास उत्तराखंड में मतांतरण की खबरें आईबी के जरिए पहुंची हैं जिसके बाद से उत्तराखंड सरकार जागी और कैबिनेट में मतांतरण विधेयक लाए जाने को मंजूरी दी गई है।

विश्व हिंदू परिषद से जुड़े अधिवक्ता वैभव कांडपाल कहते हैं कि मतांतरण कानून की राज्य को जरूरत है सरकार का फैसला स्वागत योग्य है। देहरादून के एडवोकेट राजीव शर्मा कहते हैं कि मतांतरण कानून के साथ-साथ सशक्त भू कानून की भी जरूरत है।

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