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भगवान बिरसा के जनेऊधारी वंशजों ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का तिलक लगाकर किया स्वागत, दुनिया हुई हैरान

by रितेश कश्यप
Nov 16, 2022, 05:50 pm IST
in झारखण्‍ड
भगवान बिरसा मुंडा के वंशजों का अभिवादन स्वीकार करतीं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू

भगवान बिरसा मुंडा के वंशजों का अभिवादन स्वीकार करतीं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू

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राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू भगवान बिरसा की जन्मस्थली उलीहातू पहुंचीं तो उनके वंशजों ने उनका स्वागत सनातन तरीके से किया। जो लोग जनजातियों को हिंदू नहीं मानते हैं, वे इस पर चुप हैं।

जब श्रीमती द्रौपदी मुर्मू राष्ट्रपति निर्वाचित हुई थीं, तो अनेक विद्वानों ने यह कहा था कि उनके राष्ट्रपति बनने का बहुत ही सकारात्मक प्रभाव देश के जनमानस, विशेषकर जनजातियों पर पड़ेगा। यह भगवान बिरसा मुंडा की जयंती यानी 15 नवंबर को देखने को मिला। इस दिन श्रीमती द्रौपदी मुर्मू भगवान बिरसा की जन्मस्थली उलीहातू पहुंचीं। यह जगह झारखंड के खूंटी जिले में है। वहां उनके पहुंचने पर भगवान बिरसा के जनेऊधारी वंशजों ने उनका स्वागत तिलक लगाकर किया। भगवान बिरसा मुंडा के पोते सुखराम मुंडा ने अपने पूरे परिवार के साथ पारंपरिक रीति—रिवाज के साथ राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का स्वागत किया, उन्हें चंदन का तिलक लगाया और पारंपरिक विधि से पूजा पाठ किया। यह दृश्य जिसने भी देखा वह दंग रह गया। इस दृश्य से वे लोग ज्यादा परेशान हैं, जो जनजातियों को हिंदू ही नहीं मानते हैं।

दूसरी बात यह भी देश कि आजादी के बाद पहली बार भारत का कोई राष्ट्रपति भगवान बिरसा मुंडा की जन्मस्थली उलीहातू पहुंचा। इसलिए यह प्रसंग बहुत ही दूरगामी परिणाम वाला सिद्ध होगा। जनजातीय समाज के लोग द्रौपदी जी को अपने बीच पाकर फूले नहीं समा रहे थे। उनके वहां जाने से निश्चित रूप से जनजातियों में एक संदेश गया है कि अब ‘दिल्ली वाले’ भी उनकी बात सुनने लगे हैं।

राष्ट्रपति मुर्मू भी दिल खोलकर वहां के लोगों से मिलीं। उन्होंने भगवान बिरसा मुंडा की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उनके वंशजों का हालचाल लिया। उनके वंशजों ने उन्हें अपनी समस्याएं बताईं तो श्रीमती द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि सारी समस्याओं का समाधान जल्दी ही हो जाएगा।

बता दें कि भगवान बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर, 1875 को हुआ था। भगवान बिरसा ने ईसाइयों और अंग्रेजों से अपनी सांस्कृतिक विरासत को बचाने के लिए मरते दम तक संघर्ष किया। उस वक्त भी इन मिशनरियों का इतना प्रभाव था कि उनके भाई और पिता भी ईसाई बन चुके थे और पादरियों ने इन्हें भी ईसाई बनाने की भरपूर कोशिश की थी, लेकिन बिरसा ने कभी भी अपनी संस्कृति को नहीं छोड़ा।

Topics: JharkhandHindu CultureDraupadi Murmuulihatu
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