गुरु दास अग्रवाल का जन्म 20 जुलाई सन 1932 को कांधला, शामली, उत्तर प्रदेश में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा के बाद रुड़की विश्वविद्यालय वर्तमान आईआईटी रुड़की से सिविल इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन किया। तत्पश्चात कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय आदि से शिक्षा प्राप्त की। महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय में पर्यावरण विज्ञान, आईआईटी कानपुर में 17 वर्ष तक सिविल और पर्यावरण इंजीनियरिंग के मानद प्राध्यापक पद पर अपनी सेवाएं दी। भारत सरकार के केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के प्रथम सदस्य सचिव और राष्ट्रीय नदी संरक्षण निदेशालय के सलाहकार भी रहे।
भारतीय जनमानस अपने जीवन के एक छोर पर आध्यात्म की तरफ जाता ही है, प्रोफेसर जीडी अग्रवाल ने भी कालांतर में सन्यास लिया और स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद बन गए। प्रोफेसर जीडी अग्रवाल ने वैराग्य तो लिया, किन्तु इतने वर्षों के अध्ययन, अध्यापन, प्रशासनिक व धरातलीय कार्य से जो ज्ञान, अनुभव मिला था, उसको वह कैसे व्यर्थ जाने देते। उनका समस्त जीवन पर्यावरण संबंधी विषयों के चिन्तन पर ही बीता था। मां गंगा की बदहाल अवस्था से वे परिचित थे ही, एक पल के लिए गंगा आम समाज के लिये नदी हो सकती है, पर संत-समाज के लिए गंगा मात्र नदी नहीं वरन एक पुण्य पवित्र मोक्षदायिनी गंगा मां हैं। एक पर्यावरणविद होने के नाते भी और एक संत हो जाने पर मां गंगा ही उनकी प्राथमिकता में थी। पहले प्रोफेसर जीडी अग्रवाल और सन्यास के पश्चात स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद गंगा के अविरलता और निर्मलता के लिए विगत लगभग 40 वर्षों से अनवरत प्रयासरत रहे हैं। स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद द्वारा सन 2009 में भागीरथी नदी पर बांध के निर्माण रोकें जाने पर देश में व्यक्ति इनके बारे में जान पाए।
भारत सरकार द्वारा प्रस्तावित अनेक जल-विद्युत परियोजनाएं, जो गंगा की सहायक नदियों पर बनाई जानी हैं, उनके विरोध में स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद ने आमरण अनशन की शुरुआत की थी। बांध बिजली परियोजनाएं, हमें बिजली तो देती है, पर बांध नदियों के पूरी संरचना और भौतिक स्वरुप को ही बिगाड़ देते हैं। गंगा के विषय में यह क्षति अभूतपूर्व हो रही थी, भौतिक तौर पर भी और आध्यात्मिक तौर पर भी। स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद नें सरकार से गंगा की अविरलता और निर्मलता के लिए गंगा एक्ट लागू करने की अपील की थी, जो अपरिहार्य कारणों से पूरी नहीं हो पायी थी।
मां गंगा की अविरलता और निर्मलता के लिए स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद ने आमरण अनशन किया। आमरण अनशन पर स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद ने घोषणा की थी कि सरकार उनके प्राण रहते हुए मां गंगा के गंगत्व को बनाये रखने के लिए भागीरथी, अलकनंदा, मन्दाकिनी, नंदाकिनी, धौलीगंगा और पिंडर पर निर्माणाधीन और प्रस्तावित समस्त बांध परियोजनाओं को निरस्त करने के साथ ही गंगा के उच्चतम बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में खनन तथा वन कटान प्रतिबंधित करने का नोटिफिकेशन ले आएंगे तो वह अपने उपवास को विराम देंगे। 112 दिन चले अविरत अनशन के दौरान कई उतार चढ़ाव के पश्चात अन्ततः 11 अक्टूबर सन 2018 को 86 वर्षीय कर्म से गुरु मन से दास, सानंद ने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, ऋषिकेश में अपनी आखिरी सांस ली। वे अपने विषय में और वर्तमान परिस्थिति को बेहद अच्छी तरह जानते भी थे, इसीलिए वे पहले ही अपना शरीर अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ऋषिकेश को दान करने की व्यवस्था कर चुके थे।
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