स्वतंत्र और स्वाभिमानी देश ताइवान को चीन ने एक बार फिर अपनी धमक से धमकाने का प्रयास किया है। ताइवान के आसमान में लगातार अपने युद्धक विमानों को भेजकर अपना आक्रोश जाहिर कर रहे कम्युनिस्ट चीन ने एक बार फिर ताइवान की सीमा पर अपने शैताने मंसूबे प्रदर्शित किए हैं।
ताजा समाचार है कि चीन की वायुसेना के 36 हथियारबंद लड़ाकू विमान ताइवान की सरहद के पास मंडराए हैं। उधर बीजिंग की इस हरकत पर ताइवान का कहना है कि चीन की तरफ से स्वशासित द्वीप में लोकतंत्र के विरुद्ध जिस तरह का दबाव बनाया जाता रहा है, यह उसी की एक कड़ी है।
ताइवान का कहना है कि चीन युद्ध के लिए उकसा रहा है। इतना ही नहीं, ताइवान के रक्षा मंत्रालय के अनुसार, बीते शनिवार को ताइवान स्ट्रेट्स में मध्य रेखा के पास चीन के 10 लड़ाकू विमानों ने उड़ान भरी थी। यह वही स्थान है जो द्वीप को मुख्य भूमि से अलग करता है। मंत्रालय की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है कि छह शेनयांग जे-11 तथा चार जे-16 विमानों को सीमा के एकदम पास से उड़कर जाते देखा गया है।
आखिर चीन ताइवान के ‘अपने’ होने का दावा क्यों करता है? क्या इसके पीछे को ऐतिहासिक तथ्य है? क्या ताइवान एक स्वतंत्र देश नहीं है? इन सवालों के जवाब के लिए इतिहास में थोड़ा पीछे झांकने की जरूरत है। दरअसल 1949 में एक गृह युद्ध हुआ था जिसके बाद चीन की मुख्य भूमि से अलग होकर ताइवान एक स्वतंत्र देश बना था। मुख्य भूमि के नियंत्रण से बाहर होने की वजह से इस पर कम्युनिस्ट पार्टी का शिकंजा भी खत्म हो गया था। यह द्वीप कभी भी पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना का भाग नहीं रहा, परन्तु बीजिंग मानता है कि यदि जरूरत पड़ी तो उसे मुख्य भूमि के साथ जोड़ लिया जाएगा।
चीन के वर्तमान राष्ट्रपति शी जिनपिंग की सरकार ने स्पष्ट रूप से ताइवान को अपनी ताकत से भयभीत करने-धमकाने की हरकत इस साल कुछ ज्यादा ही बढ़ा दी है। बीजिंग के निर्देश पर उसके लड़ाकू विमान तथा बमवर्षक कई मौकों पर द्वीप के पास से उड़ान भरते देखे जा चुके हैं जिन्हें ताइवान के रक्षा तंत्र ने कई बार कड़ी चुनौती दी है। इतना ही नहीं, चीन द्वारा ताइवान के पास समुद्र में मिसाइलें छोड़ी गई हैं।
ताइवान के रक्षा मंत्रालय की वेबसाइट पर स्पष्ट उल्लेख है कि ताइवान की सेना ने चार चेंगदू जे-10 लड़ाकू विमान, एक वाई-8 एंटीसबमरीन लड़ाकू विमान तथा तीन एच-6 बमवर्षक को द्वीप के दक्षिण-पश्चिम में उड़ान भरते देखा। मंत्रालय के अनुसार, चीन के तीन ड्रोन भी देखे जाने की जानकारी मिली है।
उल्लेखनीय है कि अगस्त 2022 में अमेरिका में कांग्रेस की अध्यक्ष नैंसी पलोसी की ताइवान यात्रा से चीन बिफर गया था। विशेषज्ञों के अनुसार, उससे पहले भी अमेरिका, आस्ट्रेलिया और जापान द्वारा ताइवान को एक ‘स्वतंत्र देश’ बताने को लेकर चीन ने ‘सख्त कदम’ उठाने की धमकियां दी थीं। वन चाइना पॉलिसी के तहत चीन का एक ही मत है कि ‘ताइवान उसका हिस्सा है जिसे अंतत: मुख्य भूमि के साथ जोड़ लिया जाएगा’। राष्ट्रपति शी जिनपिंग चीन की हदें बढ़ाने के मंसूबे पाले ही हुए हैं।
यह कोई छिपी बात नहीं है कि चीन की सीमाएं जिस भी देश से मिलती हैं या सागर के रास्ते उसके निकट है, उन देशों पर चीन अपना दबदबा कायम करके उनकी भूमि हड़पने का विस्तारवादी मंशा रखता है। ताइवान ही नहीं, भारत, भूटान आदि को भी वह गाहे—बगाहे अपनी घुड़कियां दिखाता रहता है। लेकिन जून 2020 में गलवान में भारत से मुंहतोड़ जवाब मिलने के बाद अब वह प्रकट रूप से ‘कूटनीति के माध्यम से विवाद सुलझाना’ चाहता है। लेकिन रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि चीन की किसी भी बात का कोई भरोसा नहीं करना चाहिए क्योंकि वह भीतर ही भीतर शरारती नीतियों पर काम करता रहता है। इसलिए उसके संदर्भ में कदम फूंक—फूंककर ही रखना उचित है।
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