कोरोना महामारी के दौरान ईसाई मिशनरियों ने असम और पूर्वोत्तर के अन्य हिस्सों में कन्वर्जन गतिविधियां तेज कर दी थीं। ऊपरी असम के सुदूर गांवों में तो ये काफी सक्रिय हैं। कन्वर्जन के लिए इन्हें विदेश से चंदा मिलता है। हाल में राज्य पुलिस ने पर्यटक वीजा पर आए स्वीडन और जर्मनी के 10 ईसाई मिशनरियों को गिरफ्तार किया
यह कुछ हफ्तों या महीनों की घटना नहीं है। दशकों से असम और उत्तर-पूर्व के अन्य हिस्सों में ईसाई मिशनरियों द्वारा ईसाइयत के प्रचार और कन्वर्जन का चक्र चलाया जा रहा है। विदेशी धन के जोर पर मिशनरियां इस क्षेत्र के लाखों हिंदुओं और जनजातीय लोगों को ईसाई बना चुकी हैं। यह सिलसिला आज भी जारी है। परिणामस्वरूप, श्रीमंत शंकरदेव द्वारा शुरू किए गए वैष्णव और सतरिया सांस्कृतिक केंद्र तथा दुनिया के सबसे बड़े नदी द्वीप माजुली में अब 34 वैष्णव सत्रों के मुकाबले 66 चर्च हैं।
गत 25 अक्तूबर को असम पुलिस ने दो महिलाओं सहित स्वीडन के तीन ईसाई मिशनरी-हन्ना मिकाएला ब्लूम, मार्कस अर्ने हेनरिक ब्लूम और सुजेन एलिजाबेथ हाकासन—को गिरफ्तार किया है। ये सभी पर्यटक वीजा पर आए थे। लेकिन वीजा प्रावधानों का उल्लंघन कर राज्य में लोगों को कन्वर्ट करने के उद्देश्य से आयोजित की जाने वाली ईसाई प्रार्थना सभाओं में भाग लेते थे। इनके निशाने पर चाय बागान समुदाय के लोग थे। इस तीन दिवसीय प्रार्थना सभा का आयोजन डिब्रूगढ़ जिले के घिनई इलाके में विभिन्न चर्चों की संस्था यूनाइटेड चर्च फोरम द्वारा किया गया था।
स्थानीय लोगों का आरोप था कि मिशनरी उपचार के नाम पर मुख्य रूप से चाय जनजातियों व अन्य जनजातियों का कन्वर्जन कर रहे थे। नाहरकटिया से गिरफ्तार विदेशी ईसाइयों को स्थानीय अदालत में पेश किया गया और विदेशी अधिनियम के तहत दोषी पाए जाने के बाद उन्हें स्वीडन भेज दिया गया। विदेशी ईसाई मिशनरियां बीते कई दशकों से असम के चाय बागान क्षेत्रों में अपनी कन्वर्जन गतिविधियां चला रही हैं और अब तक चाय बागान समुदाय के हजारों लोगों को कन्वर्ट करने में सफल रही हैं।
जर्मन मिशन और चर्च से वित्तपोषण
स्वीडिश मिशनरियों की गिरफ्तारी के कुछ दिनों बाद काजीरंगा में सात जर्मन मिशनरियों को पुलिस ने वीजा नियमों का उल्लंघन करने के आरोप में हिरासत में ले लिया था। इन लोगों ने 28 अक्तूबर को लोगों को कन्वर्ट करने के उद्देश्य से कई प्रार्थना सभाओं में भाग लिया। जर्मनी के मिशनरी लंबे समय से असम और अरुणाचल प्रदेश में बड़े पैमाने पर कन्वर्जन गतिविधियां चला रहे हैं। जर्मनी और अन्य यूरोपीय देशों के चर्च, ईसाई संगठन कन्वर्जन के लिए इन्हें धन मुहैया करा रहे हैं।
तेजपुर से जर्मनी में चर्च के पादरी को भेजे गए प्रशंसा-पत्र से पता चलता है कि विदेशों से भेजे गए धन का उपयोग राज्य में कन्वर्जन के लिए कैसे किया जाता है। ‘पाञ्चजन्य’ के पास उस प्रशंसा-पत्र की प्रति है, जिसमें ‘डायसिस आफ तेजपुर’ ने जर्मनी के पादरी को 7500 यूरो यानी 6,55,000 रुपये दान देने के लिए धन्यवाद दिया है।
भारत में कोरोना महामारी के कारण लगाए गए प्रतिबंधों के बीच 18 जनवरी, 2021 को यह राशि हस्तांतरित की गई थी। जर्मनी के पादरी को धन्यवाद देते हुए ‘डायसिस आफ तेजपुर’ ने अपने पत्र में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया कि धन का उपयोग ईसाइयत के ‘प्रचार और विश्वास निर्माण’ में किया जाएगा। इसमें यह भी लिखा है कि महामारी प्रतिबंधों के दौरान वे शिक्षण, स्वास्थ्य देखभाल और अन्य सामाजिक कार्यों के माध्यम से कन्वर्जन सहित विभिन्न पांथिक क्रियाकलापों में व्यस्त थे।
भारत के वीजा कानून के अनुसार, पर्यटक वीजा पर आने वाले लोग पांथिक-मजहबी गतिविधियों में भाग नहीं ले सकते। उन्होंने बताया कि सभी जिला पुलिस अधीक्षकों को हर तरह के मजहबी-पांथिक कार्यक्रमों पर कड़ी निगाह रखने के लिए कहा गया है, जहां विदेशी नागरिक शामिल होते हैं। पर्यटक वीजा पर भारत आने वाले और कन्वर्जन की गतिविधियों में शामिल होने वाले मिशनरियों से देश के कानून के अनुसार निपटा जाएगा।
जो बच गए, उन पर कन्वर्जन का दबाव
ईसाई मिशनरियां महज कुछ एल्युमीनियम शीट और गर्म कपड़े देकर राज्य के भोले-भाले वनवासी ग्रामीणों का कन्वर्जन कर रही हैं। कुल मिलाकर जिस तरह कंपनियां ‘सीजन’ के अंत में अपना सामान बेचने के लिए ‘सेल’ लगाती हैं, ईसाई मिशनरियों ने भी लालच देकर लोगों को झांसे में लेने का यही तरीका अपनाया है। राजधानी दिसपुर से महज 30 किलोमीटर की दूरी पर अमसांग जंगल में पहले तीन हिंदू गांव थे। तीनों गांवों में वनवासी समुदाय के 130 हिंदू परिवार थे।
ये गांव सुदूर पहाड़ियों के बीच स्थित हैं और यहां तक आने-जाने के लिए कोई साधन नहीं है। ईसाई मिशनरियां कोरोना महामारी के दौरान मदद करने के बहाने ग्रामीणों के करीब आई और सर्दी के लिए कपड़ों का लालच देकर ग्रामीणों से कन्वर्ट होने के लिए कहा। धीरे-धीरे मिशनरियों ने संपाथर, लोंगडांगगुरी और सुवाली लुकुवा खल गांव के 128 परिवारों को ईसाई बना लिया। पूर्व ग्राम प्रधान भूपेंद्र चांगमा ने बताया कि कुछ साल पहले गांव में एक पादरी आया और उसने गरीब ग्रामीणों को कुछ मदद की पेशकश की। धीरे-धीरे तीनों गांव के गरीब लोग ईसाई मत अपनाने लगे। तीन गांवों में अब केवल दो ही हिंदू परिवार बचे हैं। चूंकि गांव में रहना है, इसलिए वे भी कन्वर्ट होने को मजबूर हैं।
ईसाई मत में कन्वर्ट हो चुके इन तीन गांवों का आलम यह है कि ग्रामीण अब किसी बाहरी व्यक्ति से बात तक करने से कतराते हैं। वर्ल्ड हिंदू फेडरेशन, असम प्रदेश के महासचिव बालेन बैश्य ने आरोप लगाया कि मिशनरी पूरे असम में, विशेष रूप से वनवासी क्षेत्रों में कन्वर्जन गतिविधियां चला रहे हैं। मिशनरी शुरू में मदद की पेशकश करती हैं, फिर धोखे से गरीब वनवासियों का कन्वर्जन करा देती हैं। बैश्य ने कहा कि महामारी के दौरान राज्य में कन्वर्जन की गतिविधियों में तेजी आई है। ईसाई मिशनरियां ऊपरी असम में बड़े पैमाने पर कन्वर्जन कर रही हैं।
सरकार ने की कार्रवाई
हाल ही में स्वीडन और जर्मनी के 10 ईसाई प्रचारकों की गिरफ्तारी के बाद राज्य सरकार ने ईसाई समूहों द्वारा चलाई जा रही अवैध पांथिक गतिविधियों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की है। विशेष डीजीपी जीपी सिंह ने बताया कि इन मामलों में दो आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं। साथ ही, राज्य पुलिस ने झारखंड के ईसाई प्रचारक मुकुट बोथरा और असम के बरनबास तेरांग को गिरफ्तार किया था। ये विदेशी मिशनरियों को राज्य के विभिन्न हिस्सों में आयोजित होने वाले कन्वर्जन सम्मेलनों में शामिल होने के लिए आमंत्रित करते थे और उनके आने-जाने के लिए सुविधाएं प्रदान करते थे। महत्वपूर्ण बात यह है कि सभी विदेशी मिशनरी पर्यटक वीजा पर आए थे। भारत के वीजा कानून के अनुसार, पर्यटक वीजा पर आने वाले लोग पांथिक-मजहबी गतिविधियों में भाग नहीं ले सकते। उन्होंने बताया कि सभी जिला पुलिस अधीक्षकों को हर तरह के मजहबी-पांथिक कार्यक्रमों पर कड़ी निगाह रखने के लिए कहा गया है, जहां विदेशी नागरिक शामिल होते हैं। पर्यटक वीजा पर भारत आने वाले और कन्वर्जन की गतिविधियों में शामिल होने वाले मिशनरियों से देश के कानून के अनुसार निपटा जाएगा।
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