प्रशासनिक तंत्र को इस घटना से सबक लेना चाहिए। सबसे पहले तो प्रधानमंत्री के आदेश की मंशा के अनुरूप दोषियों, चाहे वे कंपनी से जुड़े हों या सरकारी अमले से, को कतई बख्शा नहीं जाना चाहिए।
गुजरात के मोरबी में अत्यंत हृदयविदारक घटना घटी। घड़ी निर्माण और टाइल्स के लिए ख्यात मोरबी नगर मच्छू नदी के तट पर बसा है। इसी मच्छू नदी पर बना सस्पेंशन पुल 30 अक्तूबर को टूट गया जिसमें 130 से अधिक लोगों की मृत्यु हो गई। इस अत्यंत दुखद घटना ने देशभर को स्तब्ध कर दिया है। पूरे देश की संवेदनाएं पीड़ितों के साथ हैं।
दोषारोपण से बचें
हादसा होते ही स्थानीय राजनीतिक पक्षों ने प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से सोशल मीडिया के माध्यम से दोषारोपण करना प्रारंभ कर दिया। जब लोग किसी हादसे के बाद चरम पीड़ा से गुजर रहे हैं तो राजनीति से जुड़े व्यक्तियों की भूमिका क्या होनी चाहिए? यह बड़ा प्रश्न है।
वास्तव में ऐसे समय सामयिक आवश्यकता पीड़ितों को राहत पहुंचाने की, समाज के स्तर पर एकजुटता दिखाने की होती है।
आवश्यकता उस घटना-दुर्घटना की व्यापक जांच की होती है जिससे घटना की जड़ का पता चले और भविष्य के लिए सबक लिये जा सकें। राजनीति दोषारोपण में उलझती है तो दोषियों के बच निकलने की गुंजाइश बढ़ती है। ऐसे में दोषियों पर से ध्यान नहीं हटाना चाहिए।
मोरबी हादसे के लिए कोई न कोई तो जिम्मेदार अवश्य है। प्रधानमंत्री महोदय ने भी मोरबी दौरे के बाद उच्चस्तरीय बैठक की और अधिकारियों को हादसे की ‘गहन और व्यापक जांच’ के लिए कहा। उन्होंने कहा कि तथ्यों के आधार पर हादसे की जांच हो। जांच को पूरी तरह वैज्ञानिक और स्पष्ट रखने का आदेश दिया। साथ ही उन्होंने कहा- किसी तरह के राजनीतिक दबाव से जांच प्रभावित ना हो।
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समग्र-सूक्ष्मतम जांच की आवश्यकता
मोरबी में मच्छू नदी पर वर्ष 1887 में बने इस सस्पेंशन पुल की जिम्मेदारी मोरबी नगरपालिका की है। मोरबी नगरपालिका ने वर्ष 2008 से इस पुल के रखरखाव की जिम्मेदारी ओरेवा समूह की अजंता मैन्युफैक्चरिंग कंपनी को दी हुई थी। मार्च, 2022 में नगरपालिका और अजंता कंपनी के बीच चार पृष्ठों का ताजा समझौता हुआ जिसमें ‘आमदनी-खर्च’, रखरखाव, सुरक्षा, प्रबंधन समेत पुल की पूरी जिम्मेदारी अगले 15 वर्ष के लिए कंपनी को सौंपी गई। समझौता मोरबी के कलेक्टर की उपस्थिति में हुआ।
7 मार्च, 2022 को हुए ताजा समझौते के बाद इस पुल को व्यापक मरम्मत और नवीनीकरण के लिए बंद कर दिया गया। मरम्मत के लिए 10 महीने का समय दिया गया। अजंता मैन्युफैक्चरिंग ने नवीनीकरण का काम विशेषज्ञ कंपनी देवप्रकाश सॉल्यूशन को दिया।
अजंता कंपनी ने पुल को सातवें महीने में ही 26 अक्तूबर को जनता के लिए खोल दिया। कंपनी ने इसकी सूचना नगरपालिका को नहीं दी और सेफ्टी आडिट न होने के कारण अभी इस पुल को पालिका की ओर से फिटनेस प्रमाणपत्र नहीं दिया गया था। हादसा पुल खोले जाने के पांचवें दिन 30 अक्तूबर को हुआ।
हादसे के बाद गुजरात पुलिस ने न्यायालय को बताया कि नवीनीकरण के नाम पर ब्रिज में लगे लकड़ी के बेस को बदलकर एल्युमिनियम की चार स्तर की चादरें लगा दी गई थीं। इससे पुल का वजन बेहद बढ़ गया था। पुल के केबल पर ना कोई तेल लगाया गया, ना ही किसी तरह की ग्रीसिंग का काम किया गया। जहां से केबल टूटी है, वहां जंग लगी हुई थी। अगर केबल की मरम्मत की जाती तो यह हादसा नहीं होता।
कंपनी ने सात महीने मरम्मत एवं नवीनीकरण का काम किया। क्या इस दौरान नगरपालिका के अधिकारियों ने निरीक्षण किया? पुल की क्षमता 100 लोगों का भार उठाने की थी। घटना के समय टिकट लेकर 500 लोग पुल पर मौजूद थे। नगरपालिका और स्थानीय प्रशासन ने इस पर क्या कार्रवाई की?
पुल का बेस लकड़ी से हटाकर एल्युमीनियम का किए जाने से वजन पर क्या कितना प्रभाव रहा और पर पालिका के इंजीनियरों ने क्या रुख अपनाया? यह सब बिंदु सूक्ष्म समग्र जांच के विषय हैं।
भविष्य के लिए सबक
प्रशासनिक तंत्र को इस घटना से सबक लेना चाहिए। सबसे पहले तो प्रधानमंत्री के आदेश की मंशा के अनुरूप दोषियों, चाहे वे कंपनी से जुड़े हों या सरकारी अमले से, को कतई बख्शा नहीं जाना चाहिए।
इसलिए हादसे के सभी पहलुओं की बारीकी से जांच की जानी चाहिए ताकि भविष्य के लिए सबक मिल सकें और मोरबी समेत देश में स्थित ऐसे तमाम पुलों, पैदल पारपथ, फ्लाईओवर, अंडरपास जैसी जगहों पर भविष्य में ऐसे किसी हादसे की पुनरावृत्ति न हो। साथ ही, इस हादसे से सबक लेते हुए भविष्य में ऐसे पुलों के रखरखाव और सुरक्षा के लिए एक ‘मानक संचालन प्रक्रिया’ भी बनाई जानी चाहिए।
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