अश्विनी उपाध्याय ने अंग्रेजों और कांग्रेस द्वारा थोपे गए कई कानूनों को खत्म करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दाखिल की है। इनमें हिंदू पूजा स्थल कानू और वक्फ बोर्ड कानून प्रमुख हैं
साबरमती संवाद में सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि भारत में कानून का राज है। वर्षों बाद देश को अच्छा, त्यागी, ईमानदार और मेहनती प्रधानमंत्री मिला है। दूसरे देशों के प्रधानमंत्रियों से नरेंद्र मोदी की तुलना करते हुए उन्होंने कहा कि हमारे प्रधानमंत्री अमेरिका के प्रधानमंत्री से चार गुना अधिक मेहनत करते हैं। बाकी देशों के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति से वे अधिक मेहनती, ईमानदार और राष्ट्रभक्त हैं। लेकिन जो समस्या भारत में है, वह दुनिया के कई देशों में नहीं है। अंतर सिर्फ कानून का है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘मैं आम आदमी पार्टी का उसका संस्थापक सदस्य रहा। उस समय आआपा कार्यालय में गांधी जी और शास्त्री जी की तस्वीरें होती थीं। अरविंद केजरीवाल भी सफेद कपड़े पहने रहे। 2012 आआपा ने जातिवाद, क्षेत्रवाद, कट्टरवाद, नक्सलवाद खत्म करने और शराबबंदी की शपथ ली थी। लेकिन पांच साल में मोटा माल कमाने के बाद दोनों तस्वीरें बदल गर्इं, क्योंकि वे ईमानदारी के प्रतीक थे। कालेधन के आरोप में कई विधायकों और मंत्रियों के जेल जाने के बाद केजरीवाल दूसरा मॉडल लेकर आए, जिसमें एक तरफ बाबा साहब आंबेडकर और दूसरी तरफ भगत सिंह हैं, दोनों ही शराब विरोधी थे। केजरीवाल ने कमीज भी सफेद से नीली हो गई। उन्हें लगा कि बहुजन समाज पार्टी के झंडे का रंग भी नीला है, इसलिए नीली कमीज पहनूंगा तो शायद बसपा वाला वोट मिल जाएगा।’’
केजरीवाल की झूठ और पाखंड की राजनीति ने आंदोलन की विश्वसनीयता पर ही सवाल खड़ा कर दिया है। लगता नहीं कि इस व्यक्ति के कारण भविष्य में कोई आंदोलन हो पाएगा। लोग आंदोलन पर ही संदेह करेंगे। केजरीवाल आज झूठ और पाखंड का पर्यायवाची बन गए हैं।
उपाध्याय ने कहा कि बाबा साहब ने कहा था कि दलितों का उत्थान करना है तो शराबबंदी करनी होगी। इसलिए संविधान में अनुच्छेद-47 में शराबबंदी का प्रावधान किया गया। लेकिन सत्ता में आने के बाद केजरीवाल ने दिल्ली के 280 वार्ड में से 50 वार्ड, जहां एक भी शराब की दुकान नहीं थी, वहां शराब के 150 ठेके खोल दिए। दिल्ली के मुख्यमंत्री हर दो महीने में एक विशेष सत्र बुलाते हैं, जिसे निंदा सत्र कहना चाहिए, क्योंकि ये सत्र कभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो कभी किसी और को गाली देने के लिए बुलाए जाते हैं।
तीन बार मुख्यमंत्री बनने के बावजूद इन्होंने कभी भ्रष्टाचार के विरुद्ध कोई सत्र बुलाया? जमाखोरी और कालाबाजारी खत्म करने के लिए कभी विशेष सत्र बुलाया? न ही दिल्ली विधानसभा में कभी घूसखोरी, कट्टरवाद और नक्सलवाद पर चर्चा हुई। इस पर भी कभी चर्चा नहीं हुई कि देश की अंखडता को कैसे मजबूत किया जाए। दिल्ली में विश्वस्तरीय स्कूल इनका एक और पाखंड है।
दिल्ली की 70 सदस्यीय विधानसभा में 67 विधायक आआपा के हैं, लेकिन किसी विधायक या मंत्री का बच्चा सरकारी स्कूल में नहीं पढ़ता है, जबकि दिल्ली के स्कूलों का प्रचार लंदन के अखबारों में हो रहा है। इसी तरह, दिल्ली मोहल्ला क्लिनिक का भी दुनियाभर में प्रचार हो रहा है। न्यूयॉर्क टाइम्स में इसकी खबर छप रही है। सच्चाई यह है कि आज तक न तो आआपा के किसी नेता और न उनके परिवार ने ही मोहल्ला क्लिनिक इलाज कराया होगा।
उन्होंने कहा कि बीते एक वर्ष में प्रधानमंत्री मोदी ने पांच बार कहा कि औपनिवेशिक कानून खत्म होने चाहिए। मुगलों ने जितने काम तलवार के दम पर किए थे, वही काम अंग्रेजों ने कानून बनाकर किए। 1860 में भारतीय दंड संहिता नाम से जो पहला कानून बना, उसका उद्देश्य लोगों को अपराधी बनाना था। इसके बाद 1861 में दूसरा कानून बना- पुलिस एक्ट। चूंकि उत्तर भारत के मठ और मंदिर लूटे और तोड़े जा चुके थे। तब अंग्रेजों की निगाह दक्षिण के संपन्न मठ-मंदिरों पर पड़ी। उन्होंने मठ-मंदिरों को नियंत्रण में लेने के लिए 1863 में पहला कानून बनाया, फिर सभी मठ-मंदिर को नियंत्रण में ले लिया। पुजारियों को नौकर बना दिया और मठ-मंदिरों की संपत्ति ले ली और इसके मालिक को किरायेदार बना दिया।
इतना करने के बाद अंग्रेजों ने चर्च बनाने के लिए भूमि अधिग्रहण कानून बनाया। हालांकि एसपी और एसडीएम आफिस बनाने के लिए 5 एकड़ जमीन की जरूरत होती थी, लेकिन 50 एकड़ जमीन अधिग्रहीत किया जाने लगा। देशभर में जितनी भी सिविल लाइन हैं, वह अंग्रेजों के इसी कानून के तहत बनी हैं। वहां डीएम, एसपी कार्यालय के पास एक चर्च और चौड़ी-चौड़ी सड़कें अवश्य मिलेंगी। आज देश के सभी सिविल लाइन्स का 70 प्रतिशत मालिकाना हक चर्च के पास है।
उन्होंने आगे बताया कि 1937 आते-आते अंग्रेजों ने बांटो और राज करो की नीति के तहत शरिया कानून बना दिया। इससे पहले देश में हिंदू और मुसलमान के लिए एक ही कानून था। लेकिन आजादी के बाद सरकारों ने अंग्रेजों को भी पीछे छोड़ दिया। 1991 में पूजा स्थल कानून बना, जो हिंदू विरोधी कानून है। नरसिंह राव की अगुआई वाली कांग्रेस सरकार ने इस कानून के जरिए एक तरह से हिंदू, जैन और बौद्ध मतावलंबियों के लिए अदालत का दरवाजा ही बंद कर उनसे धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार छीन लिया गया। वास्तव में यह कानून बनाकर कांग्रेस ने लोकतंत्र को खत्म किया और भीड़ तंत्र को उकसाया है। मतलब यह कि जिन धार्मिक स्थानों का वर्णन वेद-पुराण या गीता-रामायण या किसी अन्य धार्मिक ग्रंथ में है। जिसे तोड़ने वाले ने खुद ही लिखा है, उस पर आप दावा नहीं कर सकते। इसलिए अश्विनी उपाध्याय ने इस कानून को चुनौती दी है।
संविधान के अनुसार, जैन, बौद्ध और सिख हिंदू हैं, लेकिन 1992 में कानून बना कर जैन, बौद्ध और सिख को भी अल्पसंख्यक घोषित कर दिया। फिर 2004 में अल्पसंख्यक शिक्षण कानून बनाकर मदरसों को अलग से छूट दे दी। हालांकि अल्पसंख्यक की परिभाषा संविधान में भी नहीं दी गई है। परिणाम 1-2 प्रतिशत आबादी वाले हिंदू बहुसंख्यक कहलाते हैं, जबकि 90-97 प्रतिशत वाले ईसाई और मुसलमान अल्पसंख्यक। इस कानून को भी उन्होंने शीर्ष अदालत में चुनौती दी है।
उपाध्याय ने कहा कि अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक की परिकल्पना पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देशों के लिए है, जहां सभी बराबर नहीं है। भारत में तो सभी को समान अवसर, समान विधान, समान धार्मिक-पांथिक अधिकार और समान जीने का अधिकार हासिल है। इसलिए अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक ही जरूरत ही नहीं है। लेकिन 1991 में पूजा स्थल कानून बनाने के अगले ही साल कांग्रेस ने अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम बनाने के बाद अल्पसंख्यक आयोग बना दिया। ऐसा करके कांगे्रेस ने मुसलमानों को विशेष दर्जा तो दिया ही, हिंदुओं को भी बांट दिया। संविधान के अनुसार, जैन, बौद्ध और सिख हिंदू हैं, लेकिन 1992 में कानून बना कर जैन, बौद्ध और सिख को भी अल्पसंख्यक घोषित कर दिया। फिर 2004 में अल्पसंख्यक शिक्षण कानून बनाकर मदरसों को अलग से छूट दे दी। हालांकि अल्पसंख्यक की परिभाषा संविधान में भी नहीं दी गई है। परिणाम 1-2 प्रतिशत आबादी वाले हिंदू बहुसंख्यक कहलाते हैं, जबकि 90-97 प्रतिशत वाले ईसाई और मुसलमान अल्पसंख्यक। इस कानून को भी उन्होंने शीर्ष अदालत में चुनौती दी है।
बकौल उपाध्याय, 1995 में वक्फ बोर्ड कानून बनाकर कांग्रेस ने तीसरा महापाप किया। वक्फ बोर्ड को असीमित शक्ति दे दी गई। आज स्थिति यह है कि वक्फ बोर्ड किसी संपत्ति पर दावा कर दे तो कोई अदानत नहीं जा सकता है। इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि रेलवे और रक्षा के बाद संपत्ति के मामले में वक्फ बोर्ड देश में तीसरे स्थान पर पहुंच गया है। दरअसल, वक्फ बोर्ड ट्रिब्यूनल राज्य की राजधानियों में ही है, इसलिए यदि वक्फ किसी संपत्ति पर दावा ठोक दे तो उसका निपटारा ट्रिब्यूनल में ही होगा, जहां नीचे लेकर ऊपर तक सभी मुसलमान होते हैं। इस तरह, ग्राम सभा, बंजर और गोचर जमीन पर वक्फ बोर्ड कब्जा करता जा रहा है। वक्फ बोर्ड वसूली, जमीन कब्जाने और धर्मातरण का बहुत बड़ा तरीका निकाला है। वह गरीबों को नोटिस भेजकर उनका कन्वर्जन कराता है और अमीरों से पैसे वसूलता है। यह इतना खतरनाक कानून है। इसको भी सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई है।
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