जलान्दोलन के जरिए पाञ्चजन्य पानी के उपजते संकट को न केवल सामने रखता आया है बल्कि समय-समय पर विमर्श के जरिए उसके समाधान पर पहुंचने की कोशिश की है। ‘साबरमती संवाद’ में क्षिप्रा माथुर ने जलान्दोलन अभियान से जुड़ी कथाओं को लोगों से साझा किया
क्षिप्रा माथुर
पिछले हफ्ते राजस्थान के पाली जिले में, जो कि पानी के मायने में गर्त में जा चुका है, वहां किसानों का आंदोलन छिड़ा हुआ था। लेकिन यह राष्ट्रीय खबर नहीं थी। दरअसल बांध के पानी को लेकर किसान नेशनल हाईवे पर बैठे थे। इससे समझा जा सकता है कि आने वाले दिनों में पानी का संकट कैसी-कैसी स्थितियां पैदा कर सकता है। जब भी पानी का जिक्र आता है तो हम कहते हैं कि अगला युद्ध पानी के लिए होगा।
देखिए, हमारे यहां पानी का संकट रहा, परंतु हमने हमेशा विमर्श का रास्ता अपनाया। नए-नए रास्ते खोजे। बावड़ी की तकनीक का जिक्र वराह मिहिर तक ने किया है। इसमें उन्होंने इसकी पद्धति बताई कि कहां पर पानी के चिन्ह होंगे, ये सभी चीजें उसमें दर्ज हैं। हमारे देश में हर इलाके में इस तरह अलग-अलग नाम से बहुत सारी बावड़ियां हैं। उन्होंने धरती का जल इतना सहेज कर रखा। सारी धरोहर हमारी वास्तु के हिसाब से, समाज के हित के उपयोगी रही।
ध्यान देने वाली बात यह है कि भारतीय संस्कृति में मंदिर के पास तालाब या सरोवर होता ही था। इन सबका जो तालमेल था, वही हमारी धरोहर था। हमारा देश पूरी दुनिया के अग्रणी देशों में है, जहां सबसे ज्यादा वर्षा होती है। लेकिन इस मायने में भी हम अग्रणी हैं कि धरती से सबसे तेज गति से पानी निकाल रहे हैं।
पानी का संकट निश्चित रूप से चिंता का विषय है। जल विशेषज्ञ मानते हैं कि आज पानी को लेकर जो स्थिति है, अगर 2030 तक यही हालत रही तो आधी आबादी की प्यास बुझाने लायक पानी भी नहीं रह जाएगा। इसलिए हरेक व्यक्ति को पानी बचाने को एक अभियान के रूप में लेना होगा। तभी इसका समाधान निकलेगा।
हमारे यहां नदियों को पूजा जाता है, लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि सबसे ज्यादा प्रदूषित नदियां और पानी हमारे यहां ही है। एक बार पानी के सिलसिले में महाराष्ट्र के सोलापुर जाना हुआ। जिस इलाके में पानी की समस्या के चलते 2015 तक वहां के किसान आत्महत्या कर रहे थे, उस इलाके में पानी की समस्या को काफी हद तक हल किया गया। इसका श्रेय प्रसिद्ध अभिनेता नाना पाटेकर को है।
उन्होंने इस क्षेत्र में काफी काम किया। मैंने उनसे पूछा कि आपने अपने संगठन के बूते जो नदियों को बचाने का काम किया है, वह कहां तक संभव हो पाया। तो उन्होंने मुझसे कहा कि मैं अपने मुंह से अपने काम के बारे क्या कहूं।
आप खुद ही देखिए और गांव वालों से बात कीजिए। जब जानकारी ली तो जमीन पर काम का असर दिखाई दिया। पानी के सैकड़ों स्रोतों को पुन: मूल रूप में वापस लाया गया, पानी का जलस्तर बढ़ा, कई नदियों को जीवित किया। कुछ वर्ष पहले तक जहां पलायन की स्थिति थी, वहां के लोग आज खेती करके रोजगार पा रहे हैं। यह सब अगर संभव हुआ तो सामाजिक प्रयास और सदिच्छा से।
पानी का संकट निश्चित रूप से चिंता का विषय है। जल विशेषज्ञ मानते हैं कि आज पानी को लेकर जो स्थिति है, अगर 2030 तक यही हालत रही तो आधी आबादी की प्यास बुझाने लायक पानी भी नहीं रह जाएगा। इसलिए हरेक व्यक्ति को पानी बचाने को एक अभियान के रूप में लेना होगा। तभी इसका समाधान निकलेगा।
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