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आभासी दुनिया में बिक रही जमीन, खुल रहे स्टोर

मेटावर्स को लेकर एलोन मस्क, सत्य नडेला, मार्क जुकरबर्ग और दूसरे अनेक तकनीकी दिग्गज रोमांचित हैं, उसकी अवधारणा पूरी तरह से नई नहीं है। सच कहें तो इसका कुछ हिस्सा आज भी घटित हो रहा है, भले ही आप इससे अनजान हों। अगर आपने सेकंड लाइफ नामक एक 3डी गेम देखा हो तो वह करीब-करीब मेटावर्स जैसा ही है

by बालेन्दु शर्मा दाधीच
Nov 3, 2022, 11:10 pm IST
in भारत, विज्ञान और तकनीक, सोशल मीडिया
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आभासी दुनिया का असल दुनिया से तारतम्य। ऐसे मेटावर्स को साकार करने के लिए तमाम बड़ी तकनीकी कंपनियां शोध में जुटीं

आज जिस मेटावर्स को लेकर एलोन मस्क, सत्य नडेला, मार्क जुकरबर्ग और दूसरे अनेक तकनीकी दिग्गज रोमांचित हैं, उसकी अवधारणा पूरी तरह से नई नहीं है। सच कहें तो इसका कुछ हिस्सा आज भी घटित हो रहा है, भले ही आप इससे अनजान हों। अगर आपने सेकंड लाइफ नामक एक 3डी गेम देखा हो तो वह करीब-करीब मेटावर्स जैसा ही है।

2003 में फिलिप रोजडेल और उनकी टीम ने इसकी शुरुआत की थी। इस गेम में आप एक आदमकद इनसान के रूप में प्रवेश करते हैं और अपने जैसे ही लाखों दूसरे खिलाड़ियों के साथ मेलजोल, खेलकूद या कोई भी दूसरी गतिविधि को जारी रख सकते हैं। अगर आपने पोकीमॉन गो नामक गेम के बारे में सुना होगा तो आप जानते ही होंगे कि इसे खेलते समय अगर आप यात्रा कर रहे हैं तो रास्ते में पड़ने वाले कई स्थान खुद गेम में भी दिखाई देते हैं।

आभासी और भौतिक दुनिया के साथ आने का यह एक बेहतरीन उदाहरण है। कुछ साल पहले फॉर्टनाइट नामक एक सोशल हब और मल्टीप्लेयर गेम को जारी किया गया था। इसमें कलाकारों, गायकों आदि के आभासी कार्यक्रम भी होते थे जैसे किसी गेम में विचरण करते हुए आप एक आॅडिटोरियम में जा पहुंचें जहां असल में अनूप जलोटा का कार्यक्रम चल रहा हो। मेटावर्स इन अनुभवों को बहुत बड़े पैमाने पर ले जाने वाला है और ज्यादा से ज्यादा वास्तविक बना देने वाला है।

1992 में नील स्टीफेन्सन के साइंस फिक्शन आधारित उपन्यास ‘स्नो क्रैश’ में मेटावर्स शब्द का पहली बार इस्तेमाल हुआ था। मेटावर्स, यानी कि असली दुनिया (यूनिवर्स) जैसी ही आभासी दुनिया। इसके तीन साल पहले दुनिया में वर्ल्ड वाइड वेब का आगमन हो चुका था जिसके जरिए मेटावर्स की कल्पना आज वास्तविकता में बदलने जा रही है।

2003 में सेकंड लाइफ नामक गेम ने मेटावर्स में निहित संभावनाओं की ओर सबका ध्यान खींचा। फिर 2006 में रोब्लॉक्स नाम के आनलाइन प्लेटफॉर्म की शुरुआत हुई जिसके तहत लोगों को खुद गेम बनाने और दूसरों से साझा करने की सुविधा मिली। मेटावर्स में डिजिटल करेंसी भी चाहिए और वह अंतराल बिटकॉइन (2009) और इथीरियम जैसी आभासी मुद्राओं से भर जाएगा।

नॉन फंजीबल टोकन (एनएफटी) यहां खरीदी-बेची जाने वाली चीजों पर प्रामाणिकता की मोहर लगाएंगे। इस बीच अत्यंत उन्नत किस्म के हैडसेट आ गए जैसे माइक्रोसॉफ़्ट का होलोलेन्स और आक्यूलस कंपनी का रिफ्ट। फेसबुक चूंकि मेटावर्स में बड़ी योजनाएं लागू करना चाहती है, इसलिए उसने 2014 में आक्यूलस कंपनी का अधिग्रहण कर लिया।

स्टोर्स के साथ-साथ मेटावर्स पर हॉबी क्लासेज और कॉलेज भी चल रहे होंगे। मेटावर्स की इमारतें बनाने के लिए लोग चाहिए तो घुमाने के लिए गाइड भी। नई फिल्में भी रिलीज होंगी जिन्हें आप आभासी आडिटोरियम में देख रहे होंगे। क्रिकेट, फुटबॉल और टेनिस जैसे खेल खेले जा रहे होंगे जिनके लिए बाकायदा टिकट लगे होंगे। सैकड़ों किस्म के सॉफ़्टवेयर और एप्लीकेशन होंगे जो मेटावर्स के लिए बनाए गए होंगे। लोग आभासी मॉल्स में जाकर शॉपिंग करेंगे, बिटकॉइन या एनएफटी में भुगतान करेंगे और डिलीवरी उनके असली घर में कर दी जाएगी। बड़ी-बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियां इसके भीतर चलेंगी जिनमें सैकड़ों लोग नौकरी कर रहे होंगे, हालांकि उन कंपनियों ने असली दुनिया में एक गज जमीन पर भी दफ्तर नहीं बनाया होगा

मेटावर्स के आने से कारोबार, मनोरंजन, शिक्षा, रोजगार, कलाओं तथा दर्जनों दूसरे क्षेत्रों में अनगिनत नए अवसर पैदा होंगे। आप पूछेंगे कि आभारी दुनिया में कारोबार कैसे होगा? तो जान लीजिए कि जिस तरह हमारी असली दुनिया में जमीन, दुकानें और दफ्तर बिकते हैं, वैसे ही इस आभासी दुनिया में भी बिकेंगे। हाल ही में फैशन जगत की बहुत बड़ी कंपनी गूची ने मेटावर्स के ही एक अभिरूपण सैंडबॉक्स नामक एक गेम में अघोषित मात्रा में आभासी भूमि खरीदी है जिस पर ‘गूची वाल्ट’ के नाम से आॅनलाइन कॉन्सेप्ट स्टोर खोला गया है। इसके भीतर आकर लोग गूची के डिजाइनरों द्वारा बनाए गए फैशन आइटम खरीद सकेंगे।

तमाम तरह के स्टोर्स के साथ-साथ मेटावर्स पर हॉबी क्लासेज और कॉलेज भी चल रहे होंगे। मेटावर्स की इमारतें बनाने के लिए लोग चाहिए तो घुमाने के लिए गाइड भी। नई फिल्में भी रिलीज होंगी जिन्हें आप आभासी आडिटोरियम में देख रहे होंगे। क्रिकेट, फुटबॉल और टेनिस जैसे खेल खेले जा रहे होंगे जिनके लिए बाकायदा टिकट लगे होंगे। सैकड़ों किस्म के सॉफ़्टवेयर और एप्लीकेशन होंगे जो मेटावर्स के लिए बनाए गए होंगे। लोग आभासी मॉल्स में जाकर शॉपिंग करेंगे, बिटकॉइन या एनएफटी में भुगतान करेंगे और डिलीवरी उनके असली घर में कर दी जाएगी। बड़ी-बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियां इसके भीतर चलेंगी जिनमें सैकड़ों लोग नौकरी कर रहे होंगे, हालांकि उन कंपनियों ने असली दुनिया में एक गज जमीन पर भी दफ्तर नहीं बनाया होगा।

माइक्रोसॉफ़्ट, फेसबुक, एपिक गेम्स, एनवीडियो, डिसेन्ट्रालैंड, यूनिटी, रोब्लॉक्स, ब्लॉकेड गेम्स, एलियनवर्ल्ड और स्नैप जैसी कंपनियां उन्नत शोध और विकास में जुटी हैं ताकि मेटावर्स को जल्दी से जल्दी साकार किया जा सके। वैसे मेटावर्स वहीं तक सीमित नहीं रहेगा, जितना कि यहाँ लिखा गया है। इसमें और भी बहुत कुछ नया और हैरतअंगेज जुड़ता चला जाएगा। शायद कुछ ऐसा हो कि हैडसेट की जरूरत ही खत्म हो जाए।
(लेखक माइक्रोसॉफ़्ट में निदेशक- भारतीय भाषाएं और
सुगम्यता के पद पर कार्यरत हैं)

Topics: एलियनवर्ल्डमाइक्रोसॉफ़्टस्नैपदुनिया में वर्ल्ड वाइड वेबफेसबुकआभासी दुनिया का असल दुनियामेटावर्स पर हॉबी क्लासेज और कॉलेजएपिक गेम्सएनवीडियोडिसेन्ट्रालैंडयूनिटीरोब्लॉक्सब्लॉकेड गेम्स
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