146 करोड़ रुपये की ठगी का अनावरण करते हुए एसटीएफ ने आकाश कुमार, भूपेन्द्र सिंह, ध्रुव कुमार श्रीवास्तव , सचिवालय के अनुभाग अधिकारी राम राज एवं उत्तर प्रदेश को-आपरेटिव बैंक लि. के सहायक प्रबन्धक, कर्मवीर सिंह को गिरफ्तार किया है। बैंक मुख्यालय के सहायक महाप्रबन्धक अजय कुमार त्रिपाठी ने गत 10 अक्टूबर को साइबर क्राइम पुलिस स्टेशन, लखनऊ में मुकदमा दर्ज कराया था, जिसमें उल्लेख किया गया कि दिनांक 15 अक्टूबर को अपराह्न 2ः45 से 3ः25 बजे के मध्य उत्तर प्रदेश को-ऑपरेटिव बैंक लि. के एनएडी अनुभाग में खुले जिला सहकारी बैंकों के 7 खातों से 8 लेन-देन के माध्यम से विकास पाण्डेय, सहायक कैशियर एवं मेवालाल प्रबन्धक की सीबीएस आईडी से अनाधिकृत तरीके से अन्य बैंक आईसीआईसीआई एवं एचडीएफसी के खातों में 146 करोड़ रुपये आरटीजीएस के माध्यम से ट्रान्सफर किए गए।
अभिसूचना संकलन के दौरान ज्ञात हुआ कि उत्तर प्रदेश को-ऑपरेटिव बैंक लि. लखनऊ के सर्वर को हैक कर डिवाइस व की-लागर का प्रयोग कर बैंक के प्रबन्धक व कैशियर की आईडी का लॉगिन आईडी, पासवर्ड प्राप्त कर रिमोट एक्सिस से भूमि सागर ग्रुप ऑफ कम्पनीज के आईसीआईसीआई एवं एचडीएफसी खातों में 146 करोड़ रुपये आरटीजीएस के माध्यम से ट्रान्सफर किये गये हैं। एसटीएफ टीम द्वारा उपरोक्त प्रकरण में तकनीकी विशेषज्ञता एवं मुखबिर के माध्यम से सूचना संकलित की गई। बांस मण्डी तिराहा निकट लखनऊ से साइबर अपराधियों के संगठित गिरोह के 2 मास्टर माइण्ड सहित 5 अभियुक्तों को गिरफ्तार किया गया।
मास्टर माइंड, ध्रुव कुमार श्रीवास्तव ने पूछताछ में बताया गया कि वह लखनऊ में अपने मित्र ज्ञानदेव पाल के साथ मई 2021 में आया था। वहां उसकी मुलाकात आकाश कुमार से हुई। आकाश कुमार के माध्यम से ही ध्रुव कुमार और ज्ञानदेव पाल, एक ठेकेदार से मिले। उस ठेकेदार ने बताया कि उसके पास एक हैकर है, यदि बैंक का कोई अधिकारी तैयार हो जाय तो बैंक के सिस्टम को रिमोट एक्सिस पर लेकर लगभग 300 करोड़ रुपये फर्जी खातों में ट्रांसफर कर लिया जाएगा। इसके बाद भूपेन्द्र सिंह के माध्यम से कर्मवीर सिंह सहायक प्रबन्धक, उत्तर प्रदेश को-ऑपरेटिव बैंक लि, महमूदाबाद से हुई। उसके बाद मुम्बई से एक हैकर बुलाया गया और उसे होटल कम्फर्ट जोन चारबाग में रुकवाया गया। उस हैकर द्वारा एक डिवाइस तैयार की गई। कर्मवीर सिंह व ज्ञानदेव पाल डिवाइस को बैंक के सिस्टम में लगाते रहे। 8 बार प्रयास किया गया पर सफलता नहीं मिली। इसी बीच लोक भवन में अनुभाग अधिकारी राम राज से मुलाक़ात हुई। इन्हीं की टीम में उमेश गिरी था जिसने आरएस दुबे (पूर्व बैंक प्रबन्धक) से सम्पर्क किया। गत 14 अक्टूबर को आरएस दुबे, रवि वर्मा व ज्ञानदेव पाल शाम 6 बजे बजे के बाद बैंक गए। की- लागर इन्सटॉल किया व डिवाइस लगाई। 15 अक्टूबर को सुबह 5 टीमों के लगभग 15-20 लोग के साथ केडी सिंह बाबू स्टेडियम के पास पहुंचे।
इसके बाद रवि वर्मा व आरएस दुबे बैंक के अन्दर गए क्योंकि जब बाहर से ट्रांजेक्शन होता तो वो लोग सिस्टम में इंस्टॉल साफ्टवेयर को अनइंस्टॉल कर देते व सिस्टम में लगे डिवाइस व बैंक में लगे डी.वी.आर को निकाल लेते, परन्तु गार्ड ने उनको अन्दर टोक दिया, जिसके पश्चात ये लोग वापस आ गए। इसके पश्चात लंच के समय पर ज्ञानदेव पाल, उमेश गिरी, बैंकर व साइबर एक्सपर्ट के साथ मिलकर 146 करोड़ रुपये गंगासागर सिंह की कम्पनियों के अलग अलग खातों में आरटीजीएस के माध्यम से ट्रांसफर कर दिया। इसके बाद सभी गैंग के सदस्य लखनऊ के अयोध्या रोड पर स्थित ब्रेक प्वाइन्ट ढाबा पर गए, इसी बीच गंगासागर का अकाउंट फ्रीज कर दिया गया था। 2-3 घंटे तक जब रुपये गंगासागर के अकाउंट से ट्रांसफर नहीं हुए तब ध्रुव कुमार भी अपनी टीम के साथ नैनीताल भाग गया व अन्य लोग भी फरार हो गए।
इस काम को करने के लिए 18 माह लगे, लगभग 1 वर्ष में करीब 1 करोड़ रुपये खर्च किये गये। अनुभाग अधिकारी रामराज ने बताया कि ‘मैंनें अपने साथी विनय गिरी के साथ मिलकर 120-130 बच्चों को विभिन्न सरकारी विभागों (रेलवे ग्रुप सी ग्रुप डी, हाइकोर्ट, एनटीपीसी, टीजीटी, पीजीटी, एएनएम आदि) में भर्ती करने के नाम पर पद के अनुसार रुपये ले रखे हैं और भर्ती होने के पश्चात् भी कुछ रुपये की बात की है। उनमें से कुछ बच्चे अपने आप भर्ती हो जाते हैं जिनसे बाद में रुपया लिया जाता है जिसकी सिक्योरिटी के तौर पर मैंने ये सारे कागजात ले रखे थे। मैं सचिवालय में अनुभाग अधिकारी हूं, जिससे मुझेे भर्ती सम्बन्धित जानकारी आसानी से मिल जाती है, जिसका लाभ उठाकर मैं लोगों का विश्वास हासिल कर लेता हूं।
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