राष्ट्र मंदिर है श्रीराम मंदिर- चंपत राय

Published by
हितेश शंकर

श्रीराम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र के महासचिव श्री चंपत राय ने श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन को बड़े निकट से देखा है। फिलहाल वे मंदिर निर्माण के कार्य को देख रहे हैं। पाञ्चजन्य के ‘साबरमती संवाद’ में उन्होंने स्पष्ट कहा कि प्रभु श्रीराम देशभर के लोगों के हृदय में बसते हैं। इसलिए यह मंदिर राष्ट्र मंदिर है। श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन का विहंगम अवलोकन करते हुए उन्होंने आंदोलन के दौरान उन तमाम दबी-छिपी कहानियों से पर्दा उठाया, जिनकी इस आंदोलन को सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका थी। चंपत राय से पाञ्चजन्य के संपादक हितेश शंकर की बातचीत के अंश:-

अयोध्या आंदोलन, जो इस सदी के पूरे इतिहास का सबसे बड़ा घटनाक्रम है, उसे बताने के लिए आज आप से बड़ा कोई अधिकृत व्यक्ति नहीं है। पांच सौ साल पुरानी बात है। कैसे यह आंदोलन बढ़ा, कैसे लोग जुड़े, कैसे आकार लिया, इस पूरी यात्रा को संक्षेप में बताएं
कुछ बातें तो इतिहास की हैं। 1528 से लड़ाई का प्रारंभ होना, 75 लड़ाइयां, 1934 की लड़ाई, 1949 में उस ढांचे पर अधिकार कर लिया। ढांचे के अंदर रामलला स्थापित किए गए। शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए सरकार ने ताला डाल दिया, बाहर पूजा शुरू हो गई। अदालत की प्रक्रिया 1950 में शुरू हो गई और 1983 तक चलती रही। यह सामान्य बात है। महत्वपूर्ण बात है, बीसवीं शताब्दी के आखिरी दिनों में हिंदुस्थान के तीन लाख गांव, करोड़ों घर जुड़े। सारा हिंदू समाज अंगड़ाई लेकर खड़ा हो गया। ये कैसे हुआ? राष्ट्र जग गया।

उत्तर प्रदेश का मुजफ्फरनगर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कुछ कार्यकर्ताओं ने मिलकर हिंदू जागरण मंच नामक मंच खड़ा किया। जगह-जगह सम्मेलन करते थे। ऐसा ही एक सम्मेलन मुजफ्फरनगर में हुआ मार्च, 1983 में। सम्मेलन में ऐसे तमाम लोगों को बुलाया जाता था जो हिंदू समाज के सम्मान और स्वाभिमान की बात करते थे। उसमें संघ के तत्कालीन वरिष्ठ अधिकारी प्रो. राजेंद्र सिंह उर्फ रज्जू भैया आए थे।

मुलायम सिंह जी ने बोला था कि परिंदा भी पर नहीं मार पाएगा। मुख्यमंत्री का काम इस तरह की धमकी देना नहीं है। प्रशासन का काम है कड़ाई करना और कड़ाई का संदेश देना। उस समय के एक बहुत वरिष्ठ आईएएस ने मुख्यमंत्री मुलायम सिंह जी को सलाह दी थी कि आप इस तरह वक्तव्य मत दीजिए, ये काम प्रशासन का है।

मैं उन दिनों देहरादून में संघ कार्य देखता था। आयोजकों ने कांग्रेस के दो नेताओं, भारत के दो बार कार्यवाहक प्रधानमंत्री रहे गुलजारीलाल नंदा और दूसरे कांग्रेस के पांच बार के विधायक और मंत्री रहे मुरादाबाद के दाऊदयाल खन्ना को आमंत्रित किया था। दाऊदयाल खन्ना ने समाज का आह्वान कर दिया कि देश की आजादी को इतने साल हो गए हैं, अयोध्या, मथुरा, काशी मुक्त कराओ। सब सकपका गए। सम्मेलन खत्म हुआ तो अशोक सिंघल को कहा गया कि जाओ, देखो बाबूजी ने क्या कहा है। यहां से इस विषय का बीज पड़ा। अशोक सिंघल बाबूजी से मिलने गए और कहा कि आप कांग्रेस में हैं। इंदिरा जी कहेंगी, बस करो, तो आप पीछे हट जाएंगे। तब बाबूजी ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया। अब ये बात आई कि ये विषय पहले हिंदुस्थान के हजारों साधुओं को समझाना चाहिए।

दूसरी घटना। दिल्ली का विज्ञान भवन। यहां 7-8 अप्रैल, 1984 को संपूर्ण भारत, सभी भाषाओं, सभी राज्य, देश की हजारों आध्यात्मिक परंपराओं के लगभग एक हजार संत-महात्माओं को एकत्र किया गया। दाऊदयाल खन्ना को पुन: बुलाया गया। उन्होंने फिर से यह बात रखी, संतों ने विचार किया, जयघोष हुआ।

कर्णावती में पाञ्चजन्य द्वारा आयोजित साबरमती संवाद में श्री चंपत राय से आनलाइन बातचीत करते पाञ्चजन्य के संपादक हितेश शंकर

अब अशोक सिंघल जी अयोध्या आए। 40-50 साधुओं को एकत्र किया गया। ये विचार हुआ कि श्रीरामजन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति बने। इसकी अध्यक्षता के लिए गोरक्ष पीठ के महंत अवैद्यनाथ जी से निवेदन किया गया। दाऊदयाल खन्ना को महामंत्री बनाया गया। कालांतर में विचार हुआ कि मथुरा, काशी का क्या होगा? तो रामजन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति का नाम बदलकर धर्मस्थान मुक्ति यज्ञ समिति कर दिया गया।

फिर विचार हुआ कि जब उत्तर प्रदेश ही नहीं जानता कि अयोध्या में जन्मभूमि की क्या स्थिति है तो हिदुस्थान क्या जानेगा। तो चारपहिया गाड़ी की चेचिस पर लकड़ी का मंदिर बनाकर भगवान का राम का विग्रह स्थापित करके उसके बाद ताला डाल दिया गया। सीतामढ़ी, जहां माता सीता ने जन्म लिया, वहां पूजन हुआ। 7 अक्तूबर , 1984 को हजारों युवकों ने सरयू का जल हाथ में लेकर राम जन्मभूमि को मुक्त कराने का संकल्प लिया। वह रथ लखनऊ की ओर से चलता हुआ दिल्ली पहुंचना था। 30 अक्तूबर को जब वह गाजियाबाद ही पहुंचा था, देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हो गई। रथ भी एक साल के लिए रोक दिया गया।

अक्तूबर,1985 में संतों ने विचार किया कि एक रथ से देश नहीं चलेगा। संपूर्ण उत्तर प्रदेश में 6 रथ घुमाए गए। इतना जबरदस्त जनजागरण हुआ कि अयोध्या के एक वकील ने जिला अदालत में प्रार्थनापत्र दिया कि राम जन्मभूमि पर लगा ताला तत्काल खोला जाए। वीरबहादुर सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। कहा गया, अगर हम ताला तोड़ दें तो किन कानून में बंद करोगे। उन्होंने कहा, महाराज कानून हाथ में मत लेना। वीरबहादुर सिंह महंत अवैद्यनाथ की पीठ के शिष्य थे।

अशोक जी एक छोटी-सी गाड़ी पर बैठकर प्रयागराज से और आगे आ गए। सुलतानपुर में जिला प्रचारक रामदयाल जी ने मोटरसाइकिल चलाई। अशोक जी पीछे बैठे। जगह-जगह पुलिस ने चेक किया। ये बड़े लाचार होकर बोलते थे कि मैं अस्थियां प्रवाहित करने जा रहा हूं। और, सिपाही आगे बढ़ा देता था। इस प्रकार, तीन दिन पहले ही अशोक जी अयोध्या में प्रवेश कर गए।

जिला अदालत ने वकील के आवेदन को स्वीकार करते हुए यहां के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक सरदार कर्मवीर सिंह से पूछा था कि अगर हम ताला खुलवा दें कानून-व्यवस्था ठीक रह पाएगी? सरदार कर्मवीर सिंह ने उत्तर दिया, आप जो चाहें आदेश दें, कानून-व्यवस्था का पालन कराना हमारा काम है। इस प्रकार, जिला अदालत के आदेश से ताले खुल गए, देश में उत्साह आ गया। और यह विश्वास जग गया कि इस स्थान पर देश के अपमान का परिमार्जन करने वाला मंदिर बन सकता है। इस प्रकार से ये आंदोलन विश्व हिंदू परिषद के माध्यम से उन लोगों के हाथ में आ गया, जो देश और हिंदुओं के गौरव पर भरोसा रखते थे।

अभी आपने दाउदयाल खन्ना जी का नाम लिया। वे कांग्रेस में रहकर भी देश के, समाज के मन में क्या चल रहा है, उसके साथ खड़े हुए। मैं एक और नाम लूंगा, उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव जी का। उन्हें आप कैसे देखते हैं? साथ ही कांग्रेस की परंपरा और राजनीति के चरित्र को आप किस तरह देखते हैं?
लोकतंत्र में राजनीति जनता के आधार पर चलती है। किसी को कल्पना ही नहीं रही होगी कि राम लोगों के हृदय में निवास कर रहे हैं। और इसलिए ताला खोलने के लिए जब लड़कों ने घूमना शुरू किया, तो उत्तर प्रदेश में सबके हृदय में अग्नि फैली, और ये जोश के रूप में प्रकट हुई। सरदार बूटा सिंह का बहुत बड़ा योगदान है। सब बोलते थे कि इतने वर्षों से मुकदमा चल रहा है, कदमताल हो रहा है। बूटा सिंह जी ने संदेश भिजवाया था कि हिंदू समाज के मुकदमे कमजोर हैं। श्रीमती गांधी के प्रधानमंत्री रहते पटना के लाभनारायण सिन्हा उनके संवैधानिक सलाहकार हुआ करते थे। उनसे मिलने का संकेत हुआ। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश देवकीनंदन अग्रवाल, सिविल के वरिष्ठ अधिवक्ता बीरेंद्र कुमार सिंह चौधरी, ऐसे तीन-चार लोग लाभनारायण सिन्हा के पास पटना गए। ये सब कांग्रेस के लोग थे। इन्होंने तमाम पुराने अदालती मामलों का अध्ययन कर एक नया केस बनाया और 1987 में यह अदालत में दाखिल हुआ। उच्चतम न्यायालय ने इस केस को अंत तक स्वीकार किया है। इतनी महीन सलाह देने वाले तो कांग्रेस के ही लोग थे और नए केस की रचना करने वाले भी लाभनारायण सिन्हा थे। लोगों के अंदर भगवान छुपे रहते हैं लेकिन बाहर शायद कुछ मजबूरियां रहती हैं। द्वंद्व है, यह मेरा अनुभव है।

मैं मुलायम सिंह जी से अशोक जी के साथ एक अवसर पर मिला। मुलायम सिंह जी ने अशोक जी के कंधे पर हाथ रखकर कहा- अशोक जी, मंदिर मैं ही बनवाऊंगा। मेरे कार्यकाल में ही बनेगा। मैं इस बात का चश्मदीद गवाह हूं।

 

यह भी कहा गया कि अयोध्या में कोई परिंदा पर नहीं मार सकता। आपकी कभी मुलायम सिंह जी से कोई बात हुई क्या? ऊपर से जैसे थे, भीतर से भी वैसे ही थे या वहां भी राजनीति का दो तरह का चरित्र आपको दिखा?
मुलायम सिंह जी ने बोला था कि परिंदा भी पर नहीं मार पाएगा। मुख्यमंत्री का काम इस तरह की धमकी देना नहीं है। प्रशासन का काम है कड़ाई करना और कड़ाई का संदेश देना। उस समय के एक बहुत वरिष्ठ आईएएस ने मुख्यमंत्री मुलायम सिंह जी को सलाह दी थी कि आप इस तरह वक्तव्य मत दीजिए, ये काम प्रशासन का है। मुलायम सिंह जी जिद्दी थे, पीछे नहीं हटे। पत्रकारों ने अशोक जी से कहा था कि हेलीकॉप्टर से अगर फावड़ा भी गिर जाएगा तो हम मान लेंगे कि कारसेवा हो गई। मैं मुलायम सिंह जी से अशोक जी के साथ एक अवसर पर मिला। मुलायम सिंह जी ने अशोक जी के कंधे पर हाथ रखकर कहा- अशोक जी, मंदिर मैं ही बनवाऊंगा। मेरे कार्यकाल में ही बनेगा। मैं इस बात का चश्मदीद गवाह हूं। मनुष्य के अंदर राज्यसत्ता प्राप्त करने की इच्छा और अंदर के विचार में द्वंद्व चलता है, पता नहीं, किस समय, कौन जीत जाए।

साबरमती संवाद के दौरान ‘विभाजन की विभीषिका’ पुस्तक का विमोचन करते केंद्रीय विधि मंत्री किरेन रीजीजू,भारतीय शिक्षण मंडल के अखिल भारतीय संगठन मंत्री मुकुल कानिटकर, पाञ्चजन्य के संपादक हितेश शंकर, आर्गनाइजर के सम्पादक प्रफुल्ल केतकर, अरुण कुमार सिंह एवं अश्वनी मिश्र

आपने इतिहास का दबा हुआ ऐसा सत्य आज उद्घाटित किया है, जिसके विषय में शायद राजनीति जानेगी तो चौंक जाएगी और समाज देखेगा तो शायद उसे संतुष्टि होगी। हम चाहते हैं कि एक और दबी हुई कहानी आज इस मंच से आए। श्रीराम जन्मभूमि के स्थान पर जो ढांचा था, उसके पीछे के गड्ढे भरने और उससे जुड़ी एक भविष्यवाणी की कहानी क्या थी?
कुंभ का अवसर था और साधु-संतों ने विचार किया कि अयोध्या में छह महीने का अनुष्ठान रखेंगे और देश में जितनी श्रद्धाएं हैं, उन सब श्रद्धाओं के अनुसार होना तय हुआ। नामकरण किया गया – सर्वदेव अनुष्ठान। उसमें भाग लेने आंध्र प्रदेश के कुछ वास्तुशास्त्री भी आए थे। जन्मभूमि पर, तीन गुंबद वाले ढांचे के ठीक पीछे, यानी पश्चिम में दूर-दूर तक पचास फुट गहरा गड्ढा था। वास्तुशास्त्रियों ने कहा कि ये तो बड़ा अपशकुन है। पश्चिम में गहराई का गड्ढा और पूरब में ऊंचा? वास्तुशास्त्र कहता है, इसका उल्टा होना चाहिए। दक्षिण, पश्चिम ऊंचा होना चाहिए। बहुत विचार के बाद ये तय हुआ कि भगवान जब वनवास में थे, तो लक्ष्मण ने राम की रक्षा की थी।

रक्षक थोड़ा ऊंचाई पर बैठता है। तो यहां एक शेषावतार मंदिर बनाया जाए और वो दक्षिणी-पश्चिमी नैऋत्य कोण में बने। वहां गड्ढा था। वास्तुशास्त्रियों से एक नए मंदिर की ड्राइंग बनवाई गई। हर दस फुट पर 40 खंभे आपस में एक-दूसरे से बंधे थे। धीरे-धीरे नीचे से खड़े किये गए और उस गड्ढे में मिट्टी भर दी। चूंकि एक निश्चित लेवल देख लिया गया कि भगवान राम किस आसन पर, कितनी ऊंचाई पर विराजित होंगे। समुद्र तल से थोडे ऊंचे स्तर तक शेषावतार मंदिर के स्थान को ऊंचा किया गया। अब क्या करें, समय नहीं था। एक टिन की प्लेट पर पेंटिंग कराई गई और पेंटिंग ऊपर रख कर बालू की बोरियों से सीढ़ी बनाकर ऊपर चढ़े और आरती उतारी गई। ये घटना है नवंबर के आखिर की।

अब जनता रोज आ रही थी अनगिनत। जनता की भीड़ ने हमारी सारी व्यवस्थाओं को चरमरा दिया था। आसपास के दो सौ किलोमीटर तक के जिलों से भोजन मंगाया गया। शहर में अलग-अलग मोड़ों पर 16 स्थानों पर रसोईघर चलाए गए। अयोध्या-फैजाबाद में 40 से 50 स्थानों पर लोगों ने स्वयं की प्रेरणा से भोजन कराया। उस वास्तुशास्त्री की बात कैसी सटीक निकली, दक्षिणी-पश्चिमी कोना भगवान के आसन से एक फुट ऊंचा हुआ, 6 दिसंबर को तीन गुंबदों वाला ढांचा उड़ गया। आज भी वह स्थान सुरक्षित है। भगवान शेषावतार मंदिर बनेगा।

एक और अनसुनी घटना अशोक सिंघल जी की। जब पुलिस का सारा पहरा था और अयोध्या में वह कैसे अस्थियों के नाम पर मोटर साइकिल से पहुंच गए थे?
अयोध्या में प्रवेश करने के लिए छह दिशाओं से सड़कें आती हैं। अयोध्या से दो सौ किलोमीटर दूर तीन-तीन, चार-चार स्थानों पर बैरिकेडिंग, चेकिंग। सब ट्रेनों में चेकिंग हो रही थी। अशोक जी को खोजा जा रहा था लेकिन दूसरी तरफ जनता प्रवेश कर गई। लीडर को तो पहले जाना चाहिए। अशोक जी आत्मोत्सर्ग के लिए सदैव तैयार रहते थे। अशोक जी सबसे आगे खड़े रहकर पीछे जनता को चलाते थे।

तो कैसे अयोध्या आया जाए? वे प्रयागराज आए। अशोक जी एक छोटी सी गाड़ी पर बैठकर प्रयागराज से और आगे आ गए। सुल्तानपुर में रामदयाल जी जिला प्रचारक थे। उनका परिवार आज अयोध्या में रहता है। रामदयाल जी जीवित नहीं हैं। रामदयाल जी ने मोटरसाइकिल चलाई। अशोक जी पीछे बैठे। आज अयोध्या में जो बाईपास है, उसकी मार्किंग हो गई थी। नई सड़क बनाने के लिए मिट्टी डाली जा रही थी। जगह-जगह पुलिस की चेकिंग हो रही थी। जब पुलिस ने चेक किया तो बड़े लाचार होकर बोलते थे कि ऐसे-ऐसे मेरे घर में हो गया है और मैं अस्थियां प्रवाहित करने जा रहा हूं। और, सिपाही आगे बढ़ा देता था। इस प्रकार, तीन दिन पहले ही अशोक जी अयोध्या में प्रवेश कर गए। सौ किलोमीटर आगे जाते थे, तो सौ किलोमीटर पीछे की स्थिति अखबारों में आती थी। तीन दिन तक अशोक जी जिस मकान में रहे, वो आज भी है। ये 1990 की घटना है। 1992 में ढांचा गिर जाने के बाद जब पुलिस ने उनको गिरफ्तार किया, तब आईजी पुलिस समझ पाए कि अशोक जी किस मकान में ठहरे।

रामजन्मभूमि के मंदिर निर्माण से दुनिया में रहने वाले हिंदुओं का उन देशों में सम्मान बढ़ा है। हिंदुस्थान के अंदर हिंदू समाज में आत्मविश्वास पैदा हुआ है। 1528 में हिंदुस्थान का जो मस्तक नीचा हुआ था, अब उस अपमान का परिमार्जन करके हिंदुस्थान का मस्तक ऊंचा हुआ है

गुजरात के साबरमती के किनारे यह संवाद हो रहा है। इसी गुजरात में गोधरा है। अयोध्या जी में भी कारसेवकों का बलिदान हुआ। गोधरा और अयोध्या, इसे आप कैसे स्मरण करते हैं?
अशोक जी के मन में विचार आया कि हिंदुस्थान के लाखों व्यक्तियों को श्रीराम जय राम जय-जय राम का विजय मंत्र तेरह बार जपना चाहिए। ये विजय मंत्र समर्थ गुरु स्वामी रामदास का है। अशोक जी ने कहा, कागज के ऊपर इस देश की भौगोलिक ईकाइयां बनाओ। और एक-एक ईकाई में तेरह करोड़ बार मंत्र का उच्चारण करो। ये घटना 2001 की है। आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के परमपूज्नीय सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत 2001 के प्रारंभ में अयोध्या आए थे और तब हमने उनको तुलसी जी की माला भेंट की। मोहन जी ने माला से स्वयं श्रीराम जय राम जय-जय राम जपना प्रारम्भ किया था। एक अवधि तय की गई थी। उस अवधि में देश के अंदर लाखों लोगों ने उस मंत्र से शक्तियां अर्जित कीं।

वर्ष,2002 में अयोध्या में साठ दिन का एक अनुष्ठान तय हुआ। उस अनुष्ठान को शुरू हुए दो या तीन दिन मात्र हुए थे। गुजरात के लोग जब साबरमती ट्रेन से अयोध्या से वापस जा रहे थे, तभी गोधरा रेलवे स्टेशन पर ये दुर्घटना हो गई। इसकी गुजरात में प्रतिक्रिया किस प्रकार हुई, यह चर्चा करने की आवश्यकता नहीं है। अशोक जी ने कहा था, ये श्रीराम, जय राम, जय-जय राम के मंत्र की शक्ति का परिणाम है कि एक मंत्र से सारा हिंदुस्थान जाग गया। ये गोधरा, साबरमती ट्रेन और अयोध्या, ये श्रीराम, जय राम, जय-जय राम मंत्र का परिणाम है।

लोहे के बने ढांचे में आयरन रीइन्फोर्समेंट है, तो उसकी आयु सौ साल। और अगर कंक्रीट है, लोहा नहीं है तो उसकी आयु डेढ़ सौ साल। और पत्थर की आयु एक हजार साल। इसका संयोजन कैसे करेंगे, तो कंक्रीट जमीन के नीचे और जमीन के ऊपर केवल पत्थर। इसने मंदिर की लागत तो बहुत बढ़ाई लेकिन एक हजार साल की आयु सुनिश्चित कर दी

 

पाञ्चजन्य की टीम को संवाद में जनक भाई पांचाल से मिलने का मौका मिला। जनक भाई उस एस-6 बोगी में थे और 58 जले शवों के बीच वह जीवित बचे। खुद उनके भाई के इसमें प्राण भी गए। आज तक वो सदमे से उबर नहीं पाए हैं। एक प्रश्न उठता है कि कारसेवकों का जो बलिदान है, अभी जो मंदिर बन रहा है, उसमें इस बलिदान को भी स्मरण रखने की कुछ व्यवस्था है?
ये बड़ा ही संवेदनशील विषय है। हिंदुस्थान की तो अनादि काल से परंपरा ही रही है बलिदान देने की। भारत में सैनिक बलिदान देते हैं और सेना यथाशक्ति कोई न कोई स्मारक खड़ा करती है। ऐसा कुछ न कुछ अवश्य होगा। समाज कोलकाता के दो सगे भाइयों को जानता है। उनको बड़ी निर्दयता के साथ मारा गया था। राजस्थान के दो लोग, प्रो. महेंद्र अरोड़ा, वो नेतृत्व करते हुए दिगंबर अखाड़े की ओर से आते जा रहे थे, उनको सामने से सीने पर गोली लगी। उनके साथ एक छोटा सा नौजवान लड़का था। शायद नई-नई शादी हो चुकी थी। वो मरा था। वासुदेव गुप्ता, राजेंद्र घटाग, ऐसे बहुत नाम हैं। यथाशक्ति जितने नाम आएंगे, फोटो आएंगे, लिखा जाएगा, ये होगा।

 

कुछ लोगों ने कहा कि राम मंदिर का मुद्दा पुराना हो गया है। अब वह जनता में जुड़ाव, आध्यात्मिकता, भावनात्मकता, पैदा नहीं करता। शिलापूजन का समय भी याद है और अभी निधि समर्पण का भी एक अभियान था। दोनों के बीच की श्रद्धा को कैसे देखते हंै? राम इस राष्ट्र के लिए क्या स्थान रखते हैं?
अग्नि छिपी रहती है, कई बार इस पर राख पड़ जाती है। ये हिंदू समाज ऐसा ही है। अमुक समय में जागरण बहुत था, अब कम है, ऐसा नहीं है। जागरण उत्तरोत्तर बढ़ा है। और 1992 के बाद 2019, इतने वर्षों की अदालती प्रक्रिया, देश में संभ्रम, अंधेरा, अविश्वास भी पैदा हो रहा था। 1992 के बाद कोई वैसा बड़ा जनांदोलन हुआ नहीं। हां, समाज में अंदर की भावनाएं बाहर प्रकट होने का अवसर नहीं मिला। और इस निधि समर्पण अभियान ने वो अवसर दे दिया। मैं व्यक्तिगत रूप से महसूस करता था, अगर एक हजार करोड़ रुपया भी आ गया तो मैं मान लूंगा कि बहुत बड़ी राशि आ गई। समाज के अंदर एक उमंग और उत्साह पैदा हो गया। 10 करोड़ से अधिक लोगों ने योगदान दिया है। इसलिए मैं कहता हूं कि ये मंदिर राष्ट्र का मंदिर है, ये व्यक्ति या व्यक्ति समूह का मंदिर नहीं है। कम से कम पांच लाख गांव, मोहल्ले, कॉलोनी, बड़े-बड़े शहरों के टॉवर्स का योगदान है। कोई भाषा नहीं बची, कोई जाति नहीं बची, कोई क्षेत्र नहीं बचा। सबका समर्पण। ये समाज के जागरण का परिणाम है।

 

अयोध्या जी में आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या प्रतिदिन बढ़ रही है। आधारभूत ढांचा पुराना है। बढ़ती संख्या का प्रबंधन कैसे होगा? दूसरा, आपने कहा राष्ट्र मंदिर है तो इस राष्ट्र मंदिर की संकल्पना कैसी है और इसका एक फैलाव तो भौगोलिक है मगर इसका जुड़ाव वैश्विक कैसे होगा, इसे आप कैसे देखते हैं?
मैं अयोध्या 1986 से आता रहा हूं और यहीं मेरा जीवन बीता है 31 साल। आज 20 से 25 हजार आदमी गैर-त्योहारी दिनों में आ रहे हैं। त्योहारों में तो आते ही हैं। भगवान राम का जन्मोत्सव मनाया जाता है। दो से तीन दिन के लिए 10 से 15 लाख लोग आते हैं। इसी तरह रक्षाबंधन से तीन-चार दिन पहले 10-15 लाख श्रद्धालु आते हैं। वाल्मीकि जयंती, गुरुनानक जयंती, गंगास्नान, हमेशा लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते ही हैं। मैं एक और तिथि का उल्लेख कर रहा हूं एक जनवरी। हिंदुस्थान में इस तिथि को कौन-सा त्यौहार होता? 1 जनवरी, 2021 और 1 जनवरी, 2022 को एक लाख से भी अधिक वैवाहिक जोड़ों और नौजवानों ने अयोध्या में भगवान के दर्शन किए। ये क्या संकेत करता है?

अयोध्या में आज पैदल चलना कठिन है। विभिन्न सड़कों की चौड़ाई बढ़ाई जा रही है। हजारों दुकानें विस्थापित होंगी। कल्पना यह है कि मंदिर में दर्शन के लिए गैर-त्योहारी दिनों में प्रतिदिन 50 हजार आदमी आएंगे। त्योहारी दिनों में 2 लाख आदमी प्रतिदिन आएंगे। इसी हिसाब से हम संख्या प्रबंधन, दर्शन की व्यवस्था पर विचार कर रहे हैं। यहां पर सीआरपी, उत्तर प्रदेश पुलिस, पीएसी पहले से ही है। भविष्य में संपूर्ण प्रबंधन के लिए सीआईएसएफ को कहा गया। इतना बड़ा संख्या प्रबंधन कैसे होगा और सुरक्षा कैसे बनी रहेगी, ये सरकार भी सोच रही है। मैं भारत सरकार के रेल मंत्रालय को नमन करता हूं। इतने वर्ष पहले से आकलन कर लिया कि अयोध्या का रेलवे स्टेशन बहुत छोटा है।

आज केवल दो ट्रैक हैं, ट्रैक बढ़ेंगे तो प्लेटफॉर्म बढ़ेंगे। जनता आएगी तो बहुत बड़ी इमारत की जरूरत होगी। वह तैयार हो रही है। लोग उस इमारत को देख कर आश्चर्य करेंगे कि इतने छोटे से स्टेशन में इतनी विशाल इमारत। अंतरराष्ट्रीय स्तर के हवाईअड्डे का निर्माण हो रहा है। चार-छह महीने में उड़ान शुरू हो जाएगी। अयोध्या की चारों दिशाओं की छह सड़कें फोरलेन। अयोध्या का बाईपास सिक्स लेन। पंद्रह सौ एकड़ जमीन में नई अयोध्या की परिकल्पना। ऐसा अनुमान है कि आने वाले पांच वर्ष में अयोध्या में सरकार का कम से कम पांच लाख करोड़ रुपया निवेश होगा। आज 25 हजार लोग आते हैं। एक आदमी अगर एक दिन में एक हजार रुपये भी खर्च करता है, तो यह सारा पैसा कहां जा रहा है? यह इस क्षेत्र के आर्थिक विकास में बड़ा योगदान है।

मैं सोचता हूं कि देश के अर्थशास्त्री जब जीडीपी निकालते हैं तो उसमें ये तीर्थस्थानों के पैसे का लेन-देन सम्मिलित रहता है क्या? अगर तीर्थयात्रियों का पूरे देशभर का आवागमन हमारी अर्थव्यवस्था का हिस्सा बन जाए तो दुनिया में कितनी बड़ी अर्थव्यवस्था होगी? अभी तो मंदिर बन ही रहा है, हिंदुस्थान के हर राज्य ने यहां प्रतिनिधि नियुक्त कर दिए हैं। सभी राज्यों की धर्मशालाएं यहां बनेंगी। रामजन्मभूमि के मंदिर निर्माण से दुनिया में रहने वाले हिंदुओं का उन देशों में सम्मान बढ़ा है। हिंदुस्थान के अंदर हिंदू समाज में आत्मविश्वास पैदा हुआ है। 1528 में हिंदुस्थान का जो मस्तक नीचा हुआ था, अब उस अपमान का परिमार्जन करके हिंदुस्थान का मस्तक ऊंचा हुआ है। उसका नाम है राष्ट्र के गौरव का मंदिर, उसका नाम है राष्ट्र का मंदिर।

 

आने वाले पांच वर्षो में अयोध्या में सरकार का कम से कम पांच लाख करोड़ रुपया निवेश होगा। आज 25 हजार लोग आते हैं। एक आदमी अगर एक दिन में एक हजार रुपये भी खर्च करता है, तो यह सारा पैसा कहां जा रहा है? यह इस क्षेत्र के आर्थिक विकास में बड़ा योगदान है

मंदिर के पास सरयू के किनारे बलुई धसकती हुई जमीन है। यह भव्य मंदिर क्या तात्कालिक मंदिरों जैसा ही है या सदियों तक रहेगा? उसके लिए क्या कुछ विशेष प्रयत्न हुए हैं और कोई चुनौती आई तो उससे कैसे निबटा गया?
अशोक जी के मुंह से सुनता था, एक हजार साल। अब एक हजार का क्या अर्थ है? मंदिर पत्थर का बनेगा, उस पर धूप, हवा, पानी का असर पड़ेगा, तो पत्थर का धीरे-धीरे क्षरण होगा तो एक हजार साल तक वह खराब न हो। अगली बात आई, हर चीज हजार साल का विचार करके होनी चाहिए। जब रचना शुरू हुई, पहली बात आई नींव, तो नींव में खंभे रहते हैं, खंभों में लोहा रहता है। पहले दिन से इंजीनियरों के मुख से मैंने सुन लिया, कि लोहे के बने किसी ढांचे में आयरन का रीइन्फोर्समेंट है, तो उसकी आयु सौ साल। और अगर प्लेन कंक्रीट है, लोहा नहीं है तो उसकी आयु डेढ़ सौ साल। और पत्थर की आयु एक हजार साल। इसका संयोजन कैसे करेंगे, तो कंक्रीट जमीन के नीचे और जमीन के ऊपर केवल पत्थर। प्रत्येक इंजीनियर ने सुझाव को अंगीकार किया। इसने मंदिर की लागत तो बहुत बढ़ाई लेकिन एक हजार साल की आयु सुनिश्चित कर दी।

यहां एक चुनौती है, मंदिर की पश्चिम दिशा में सरयू का प्रवाह। वो भी पांच सौ मीटर की दूरी पर है। यहां कभी भी सरयू महारानी नाराज हो सकती हैं। दूसरी बात, अत्यधिक वर्षा से मिट्टी का कटान ढलान की ओर जाएगा। और ढलान है पश्चिम की ओर जहां गड्ढा है। पश्चिम दिशा की सड़क पूरब की सड़क से दस मीटर नीचे है। मिट्टी बह जाएगी। इन दोनों बातों की चिंता इंजीनियरों को हुई। और इसीलिए, दक्षिण, पश्चिम और उत्तर, इन तीनों दिशाओं में बहुत गहराई से रिटेनिंग वॉल की कल्पना की गई। अयोध्या में जून के महीने में सरयू का लेवल समुद्र तल से 91 मीटर ऊंचा माना जाता है। रिटेनिंग वाल समुद्र तल से 93 मीटर ऊंचा और उसका आधार 12 मीटर चौड़ा। ये रिटेनिंग वॉल सरयू नदी के आक्रमण को रोकने और भीतर की मिट्टी के कटाव को रोकने में सहायक बनेगी। शेष, हरि इच्छा।

Share
Leave a Comment
Published by
हितेश शंकर

Recent News