आम आदमी पार्टी गुजरात की जनता को झांसे में लेने के लिए झूठे दावे कर रही है, जिसकी कलई आरटीआई में खुल रही है। गुजरात को सिखाने की बजाए दिल्ली के मुख्यमंत्री गुजरात से बहुत कुछ सीख सकते हैं
गुजरात के कर्णावती में दो दिवसीय साबरमती संवाद के एक सत्र में भाजपा नेता कपिल मिश्रा जमकर आम दिल्ली के मुख्यमंत्री पर बरसे। इस सत्र का संचालन पाञ्चजन्य के संपादक हितेश शंकर ने किया। कपिल मिश्रा ने कहा कि एक राज्य जहां, जहां आबकारी विभाग ही नहीं है और एक राज्य जहां आबकारी मंत्री ही शिक्षा मंत्री है, उस आम आदमी पार्टी की सरकार के लोग गुजरात में कह रहे हैं कि हमसे सीखो। मुझे लगता है कि जिस दिन मनीष सिसोदिया जेल जाएंगे, उस दिन सबसे अधिक खुशी अरविंद केजरीवाल को होगी।
कपिल मिश्रा ने कहा, ‘‘मैं बार-बार कहता हूं कि आंदोलन का अपहरण किया गया।
भ्रष्टाचार मिटाने के नाम पर देश के लोगों को ठगा गया। उन्हें साबरमती के किनारे खड़े होकर यमुना को कैसे साफ करना है, यह सीखने आना चाहिए, न कि यह सिखाने कि यमुना के किनारे रोहिंग्याओं और बांग्लादेशी घुसपैठियों की बस्तियां कैसे बसाई जाती हैं। सहकारिता अमूल से, विकास गुजरात मॉडल और राष्ट्रवाद गुजरात के मतदाताओं से सीखो। 7 करोड़ की आबादी वाले गुजरात में बेरोजगारी दर मात्र 1.8 प्रतिशत है और 97 प्रतिशत घरों में पेयजल आपूर्ति होती है। वहीं, करीब 2 करोड़ की आबादी वाली दिल्ली में बेरोजगारी दर 9 प्रतिशत है और 40 प्रतिशत घरों में टैंकर से जलापूर्ति होती है। इसी तरह, गुजरात में प्रति लाख छात्रों पर 31 कॉलेज हैं, जबकि दिल्ली में 8 कॉलेज ही हैं।’’
दिल्ली के शिक्षा मॉडल पर तंज कसते हुए उन्होंने कहा कि जिनका काम शिक्षा के मंदिरों को ठीक करना था, उन्होंने शराब की दुकानें खोल दीं। देश और दिल्ली में 70 साल में जितने ठेके नहीं खुले, उतने एक साल में खोले गए। कोरोना काल में घरों में कैद लोग जब अपनी और दूसरों की सलामती के लिए प्रार्थना कर रहे थे, तब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया शराब के दलालों के साथ बैठकें कर रहे थे। कोरोना काल में जब दिल्ली सरकार का कथित स्वास्थ्य मॉडल ध्वस्त हो गया तो गुजरात से आक्सीजन मिली। इसके बावजूद इन्होंने शराब माफिया के 800 करोड़ रुपये माफ कर दिए। जब उपराज्यपाल ने सवाल उठाया तो हड़बड़ी में शराब नीति ही वापस लेने की कोशिश की।
दिल्ली और गुजरात में अंतर स्पष्ट करते हुए कपिल मिश्रा ने कहा कि केजरीवाल की पोल आरटीआई से खुली। गुजरात में आआपा ने कहा कि उसने दिल्ली में 12 लाख युवाओं को नौकरी दी, लेकिन सूचना के अधिकार के तहत गुजरात के आरपीएस ग्रुप को बताया गया कि 8 साल के दौरान दिल्ली ने सबसे कम 3,246 नौकरियां दीं। इसी तरह, अस्थाई कर्मचारियों को स्थायी करने का झांसा दिया, जबकि दिल्ली के मुख्यमंत्री कार्यालय में ही 8 साल से 17 कर्मचारी अस्थायी हैं
आज विजय नायर और समीर महेंद्रू जेल में क्यों हैं? मनीष सिसोदिया से सीबीआई ने पूछताछ क्यों की? सत्येंद्र जैन को जमानत क्यों नहीं मिल रही है? जितेंद्र तोमर और सोमनाथ भारती को क्यों दोषी ठहराया गया है? लेकिन आआपा इन्हें भगत सिंह बता कर क्या क्रांतिकारियों का अपमान नहीं कर रही है? स्वाधीनता और चोरी के लिए जेल जाने में अंतर है। इसीलिए अक्सर कहता हूं कि जहां पर भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था, वहीं केजरीवाल गिरोह का अंत होगा।
दिल्ली और गुजरात में अंतर स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि केजरीवाल की पोल आरटीआई से खुली। गुजरात में आआपा ने कहा कि उसने दिल्ली में 12 लाख युवाओं को नौकरी दी, लेकिन सूचना के अधिकार के तहत गुजरात के आरपीएस ग्रुप को बताया गया कि 8 साल के दौरान दिल्ली ने सबसे कम 3,246 नौकरियां दीं। इसी तरह, अस्थाई कर्मचारियों को स्थायी करने का झांसा दिया, जबकि दिल्ली के मुख्यमंत्री कार्यालय में ही 8 साल से 17 कर्मचारी अस्थायी हैं।
दिल्ली के 26 शिक्षा जोन में केवल एक जोन बदरपुर में 26 स्कूलों के 40 हजार बच्चे आज भी टीन के छप्पर के नीचे पढ़ रहे हैं। 70 प्रतिशत स्कूलों में विज्ञान शिक्षक नहीं हैं, जबकि 65 प्रतिशत स्कूल बिना प्रिंसिपल के हैं। दिल्ली के सरकारी स्कूलों के नतीजे 2011 में 99 प्रतिशत और 2019 में 71 प्रतिशत रहे। क्या शिक्षा क्रांति, स्वास्थ्य क्रांति यही है? दरअसल, इसे सफेद झूठ कहते हैं। केजरीवाल पंजाब में कर्मचारियों की नौकरी पक्की करके दिखाएं। दिल्ली-पंजाब में महिलाओं को हर माह 1000 रुपये देकर दिखाएं।
उन्होंने कहा कि इनका एजेंडा चुनाव और राजनीति नहीं है। इनका एजेंडा वही है, जो इनके मंत्री राजेंद्र पाल गौतम बोल रहे थे- 2025 तक 10 करोड़ हिंदुओं का कन्वर्जन। वड़ोदरा की जनता के आक्रोश के कारण गौतम से केवल मंत्री पद से इस्तीफा लिया गया, पार्टी से नहीं निकाला गया। दूसरी तरफ ताहिर हुसैन और अमानतुल्लाह खान हैं, जिनके घर से हथियार निकल रहे हैं। दिल्ली और गुजरात मॉडल पर यही कहा जा सकता है कि गुजरात में 2002 के बाद दंगे होने बंद हो गए, जबकि दिल्ली में 2015 के बाद दंगे होने शुरू हो गए। जहां अयोध्या में विवादित ढांचा ध्वंस के बाद भी कोई दंगा नहीं हुआ था।
हाल ही में शादीपुर में नीतेश की हत्या कर दी गई। इससे पहले मनीष, ध्रुव त्यागी, अंकित शर्मा, डॉ. नारंग, दिनेश खटीक, राहुल राजपूत दिल्ली में एक के बाद एक कितनी हत्याएं हो गई, लेकिन मुख्यमंत्री के मुंह से एक शब्द नहीं निकला, जबकि संवेदना जताने वे दादरी और हैदराबाद तक गए। इनकी आंखों में आंसू क्या मरने वाले का मजहब देखकर आते हैं? इनका असली रूप कालिया नाग का है, अमानतुल्लाह, राजेंद्र पाल गौतम, मनीष सिसोदिया, सत्येंद्र जैन जिसके फन हैं। लेकिन आज देश में ऐसे कालिया नाग का मर्दन काल चल रहा है।
इस पर नजर रखनी होगी कि व्यवस्था परिवर्तन का लबादा ओढ़कर कोई नक्सली, देशद्रोही, हमारी जड़ों में मट्ठा डालने वाला, देश की आंतरिक सुरक्षा व विकास, खासकर उत्तर कोरोना काल में जिस प्रकार से देश खड़ा हो रहा है, इसमें षड्यंत्र रचने वाला कोई विष बेल जड़ें जमाने की कोशिश तो नहीं कर रहा।
भ्रष्टाचार के खिलाफ एनआईए, सीबीआई, ईडी, एनबीसी जो काम कर रही है, वह 70 साल के इतिहास में नहीं हुआ। यही लोग पूछते थे कि अयोध्या में मंदिर कब बनाओगे? आज 50 मंदिर खड़े हो गए हैं। अयोध्या के बाद मथुरा की भी बारी आने वाली है।
आआपा राजनीति और वोट के लिए झूठ नहीं बोल रही है। झूठ इसलिए बोले जा रहे हैं कि पत्थर गुजरात पर मारो, चोट मोदी जी पर करो और शत्रुता भारतमाता से निकालो। इनके पास इतना पैसा, षड्यंत्र, फंडिंग और विज्ञापन की भरमार है, क्योंकि दुनिया में भारत को कमजोर करने की इच्छा रखने वाले इसी रास्ते से घुसपैठ करने की कोशिश कर रहे हैं।
कपिल मिश्रा ने कहा कि मैं पहले भी कहता था कि जो भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ेगा, भारतमाता की जय बोलेगा या व्यवस्था परिवर्तन की बात करेगा, उसके साथ खड़ा रहूंगा। अण्णा आंदोलन या इंडिया अगेन्स्ट करप्शन के मूल में तीन-चार चीजें थीं। उनमें एक था सत्ता का विकेंद्रीकरण। जिस दिन आआपा बनी, उसी दिन 51 नेताओं की सूची जारी हुई थी। इसमें सोनिया गांधी, शरद पवार, मुलायम सिंह यादव, देवगौड़ा और लालू यादव जैसे नेता शामिल थे। दावा था कि इन्हें राजनीति से बाहर करने के लिए हम राजनीति में प्रवेश करेंगे। लेकिन बाद में एक मंच पर उन्हीं नेताओं के साथ केजरीवाल खड़े दिखे। मतलब जिस उद्देश्य से पार्टी का जन्म हुआ, केजरीवाल उसके उलट काम कर रहे हैं।
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