अब भारत की सीमाओं पर चीन की शरारतों के विरुद्ध अमेरिका ने एक बड़ा खाका तैयार किया है। इसके अनुसार, भारत और अमेरिका के बीच रणनीतिक साझेदारी में व्यापक विस्तार किया जाने वाला है। पता यह चला है कि भारत तथा अमेरिका के बीच आगामी 15 नवंबर से 2 दिसंबर के दौरान उत्तराखंड के औली में बटालियन स्तर का युद्ध अभ्यास किया जाएगा। यह क्षेत्र वास्तविक नियंत्रण रेखा से सिर्फ 100 किमी. के फासले पर है।
सीमाओं पर चीन की आक्रामकता से निपटने के लिए अमेरिका ने अब भारत की सुरक्षा को और पुख्ता करने में सहयोग की इच्छा दर्शाई है। बाइडन प्रशासन अब इस दृष्टि से तैयारियों में जुट भी गया है। ऐसे समाचार मिले हैं कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की सरकार भारत के साथ रक्षा साझेदारी को विस्तार देने की भी तैयारी कर रही है। यह खुलासा हुआ है कल जारी हुई यूएस नेशनल डिफेंस स्ट्रैटेजी 2022 की रिपोर्ट में। विशेषज्ञों के अनुसार, ऐसा करके अमेरिका चीन के विरुद्ध अपनी क्षमता में बढ़ोतरी करने की कोशिश में है।
प्राप्त समाचार के अनुसार, उक्त नीतिगत रिपोर्ट में लिखा है कि पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की बढ़ती आक्रामकता पर लगाम लगाने के लिए अपनी सामर्थ्य बढ़ाने तथा हिंद महासागर के इलाके में खुली पहुंच पक्की करने के लिए अमेरिका का रक्षा विभाग भारत के साथ साझेदारी को आगे बढ़ाएगा। इसमें यह भी लिखा है कि चीन एक सुनियोजित चुनौती पेश करता है।
उल्लेखनीय है कि इस दस्तावेज में अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा को सबसे बड़ा खतरा हिंद महासागर क्षेत्र को और अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को अपने हिसाब से बदलने की चीन की आक्रामक कोशिश को बताया गया है। हिंद-प्रशांत क्षेत्र के संदर्भ में लिखा है कि विभाग अमेरिका की नीति तथा अंतरराष्ट्रीय कानून के अंतर्गत पूर्वी चीन सागर, ताइवान स्ट्रेट, दक्षिण चीन सागर और विवादित सीमा के मामले में चीन की साजिशों से निपटने के लिए सहयोगियों तथा साझेदारों का भी साथ देगा।
उल्लेखनीय है कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी कहा है कि यदि 2024 में वह राष्ट्रपति चुनाव जीते तो भारत—अमेरिका के संबंधों को और आगे लेकर जाएंगे। गत दिनों फ्लोरिडा में रिपब्लिकन हिंदू कोएलिशन के दिवाली कार्यक्रम में 200 से ज्यादा भारतीय-अमेरिकियों के सामने उन्होंने कहा था कि हिंदू समुदाय, भारत तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उनके संबंध बहुत अच्छे हैं।
अमेरिका जानता है कि भारत ने अपनी विदेश नीति को लेकर कभी कोई समझौता नहीं किया है और यह राष्ट्रीय हित पर ही केन्द्रित रही है। बात चाहे रूस से भारत के संबंधों की हो तब भी कई पश्चिमी देशों की आपत्ति के बावजूद भारत रूस से अपने संबंधों पर कदम पीछे खींचने को तैयार नहीं हुआ है। अब तो भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर रूस का दौरा करने वाले हैं। 8 नवंबर को उनका रूस जाना तय है, जहां वे रूसी विदेश मंत्री सरगेई लावारोव से मिलेंगे। रूस की विदेश विभाग की प्रवक्ता मारिया जाखारोवा ने कल मॉस्को में बयान दिया कि अगले महीने लावारोव की जयशंकर से वार्ता होने जा रही है। इस वार्ता में दोनों नेता रूस तथा भारत के रिश्तों के अलावा अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर भी चर्चा करेंगे।
इस बीच खबर यह भी है कि राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन तथा भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आगामी नवंबर में इंडोनेशिया के बाली में होने जा रहे जी-20 सम्मेलन में फिर से वार्ता हो सकती है। इससे पूर्व दोनों समरकंद में एससीओ सम्मेलन के दौरान मिले थे।
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि चीन के ‘मित्र’ पाकिस्तान को लेकर विदेश मंत्री जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में साफ कहा है कि हम 26/11 को भूल नहीं सकते हैं। उनका इशारा पाकिस्तान द्वारा पाले जा रहे इस्लामी आतंकवादियों की तरफ था। इतना ही नहीं, जिहादियों को पाकिस्तानी सत्ता से मिलती आ रही कथित मदद के बारे में भी भारत कई अवसरों पर पाकिस्तान को कठघरे में खड़ा करता रहा है।
विशेषज्ञों का मानना है कि अब अमेरिका के साथ रक्षा समझौतों में और विस्तार तथा रक्षा सहयोग बढ़ने के बाद चीन और पाकिस्तान निश्चित रूप से दबाव में आएंगे। हो सकता है, एलएसी पर चल रहीं चीन की शरारतों पर कमोबेश लगाम लग जाए। लेकिन ऐसा होगा कि नहीं, यह तो वक्त ही बताएगा।
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