कार्तिक शुक्ल द्वितीया को भ्रातृ द्वितीया, भाई दूज या यम द्वितीया के दिन भविष्य पुराण (14118-73) भविष्योत्तर पुराण व पद्म पुराण के अनुसार यमुना ने अपने भाई यम को घर पर भोजन कराया था
धन्वन्तरी त्रयोदशी: कार्तिक कृष्ण तेरस तिथि को समुद्र मंथन से आयुर्वेद के प्रतिपादक धन्वन्तरि का प्राकट्य हुआ था। धन्वन्तरि त्रयोदशी के दिन आरोग्य के देवता धन्वन्तरि की पूजा की जाती है। इसके अतिरिक्त यम अर्थात् अकाल मृत्य से रक्षार्थ और धन प्रदाता कुबेर एवं महालक्ष्मी की प्रसन्नता हेतु भी दीपदान किया जाता है। यम के लिए किया दीपदान अकाल मृत्यु से बचाता है। धन्वन्तरि पूजा असाध्य रोगों व अकाल मृत्यु से बचाती है। कुबेर, विष्णु व लक्ष्मी पूजा उनके लिए दीपदान धन, सम्पदा में वृद्धि का कारक है।
रूप चतुर्दशी या नरक चतुर्दशी: कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध कर 16,000 राजकन्याओं को मुक्ति दिलाई थी। पुराणों के अनुसार, इस दिन सूर्योदय तक तेल में लक्ष्मी एवं सामान्य जल में गंगा का भी निवास होता है। इसलिए सूर्योदय के पूर्व शरीर पर तेल का अभ्यंग या मालिश एवं सूर्योदय से पहले ही जल से स्नान करने से आयु आरोग्य, रूप, बल, यश, धन व श्रीवृद्धि प्राप्त होती है। साथ ही, गंगा स्नान का पुण्य भी प्राप्त होता है।
सूर्योदय के पूर्व स्नान नहीं कर सके तो उसके बाद भी यथाशीघ्र स्नान का विधान है। मृत्यु के देवता यम की प्रसन्नता से नरक के भय से बचने के लिए भी इस दिवस के कई कृत्य हैं। इसमें तिल युक्त जल से यम के सात नाम लेकर तर्पण किया जाता है और यम के लिए दीपदान कर मंदिरों, राजपथों, कूपों व अन्य उद्यानों सार्वजनिक स्थानीय में भी दीपदान करना चाहिए। तिथि तत्व (पृ. 124) एवं कृत्य तत्व (पृ. 450-51) के अनुसार, चौदह प्रकार के शाक-पातों का सेवन करना चाहिए। यह दिन मास शिवरात्रि का भी है। इसलिए इस दिन रात्रि के शिव महापूजा भी की जाती है।
दीपावली: मुख्य पर्व कार्तिक अमावस्या के दिन कुल देवता और पितरों के तर्पण व पूजन सहित लक्ष्मी, कुबेर सहित गणपति, नव ग्रह, षोडष मातृकाओं का पूजन, परिजनों, परिवार के वृद्धजनों व अपने से बड़े परिजनों का सम्मान कर उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने की परंपरा रही है। मित्रों, परिजनों व आत्मीयजनों के साथ व परस्पर एक-दूसरे को बधाई-सम्मान व सामूहिक मिष्ठान सेवन भी इस पर्व के प्रमुख व्यवहार हैं। वैश्यों व व्यापारियों द्वारा बही-खातों की पूजा कर पुराने खाते बंद कर नए खाते खोले जाते हैं।
अमावस्या के कृत्यों में ब्रह्म मुहुर्त में जागरण, अभ्यंग स्नान (तेल से अभ्यंग व जल से सूर्योदय से पहले स्नान) देव, पितरों की पूजा, दही-दूध-घृत से पार्वण श्राद्ध, भांति-भांति के व्यंजन का परिजनों के साथ सेवन, नवीन वस्त्र धारण, विजय के लिए नीराजन (दीपक को घुमाना और अपने गृह में मंदिरों में, सार्वजनिक स्थानों, वीथियों व चौराहों पर दीपदान भी किया जाता है।
वर्ष क्रिया कौमुदी व धर्म सिंधु आदि ग्रंथों के अनुसार, आश्विन कृष्णपक्ष की चतुर्दशी और अमावस्या की संध्याओं को लोगों को मशाल लेकर अपने पितरों को दिखा इस मंत्र का पाठ करना चाहिए – ‘‘मेरे कुटुम्ब के वे पितर जिनका दाह-संस्कार हो चुका है, जिनका दाह संस्कार नहीं है और जिनका दाह संस्कार केवल प्रज्ज्वलित अग्नि से (बिना धार्मिक कृत्य के) हुआ है, परम गति को प्राप्त हों। ऐसे पितर लोग जो यमलोक से यहां महालया श्राद्ध पर आए हैं उन्हें इस प्रकाश से मार्गदर्शन प्राप्त हो और वे अपने लोकों को पहुंच जाएं।’’ आज भी पितरों के श्राद्ध व तर्पण का चलन है। इस दिन पितरों की दी जल की अंजली से उन्हें अनंत तृप्ति प्राप्त होती है और उनका अमोघ आशीर्वाद प्राप्त होता है।
गोवर्द्धन पूजा व बलि प्रतिपदा: दीपावली के दूसरे दिन कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को श्रीकृष्ण द्वारा गोवर्द्धन पूजा, प्रारंभ कर इंद्र के गर्व का हरण किया था। यह दिन गो व गोवत्स क्रीड़ा अर्थात् बछड़ों एवं बैलों के पूजन का भी दिन है। श्रीकृष्ण ने इस दिन गिरिराज पर्वत को अपनी छोटी अंगुली पर उठा कर इंद्र के कोप से ब्रजवासियों की रक्षा थी। अन्नकूट उत्सव में 56 व्यंजन व 33 प्रकार के शाक-पात से देवारा धनपूर्वक बस्ती व ग्राम के सभी लोगों के समरसतापूर्वक ऊंच-नीच के भाव से दूर प्रसाद रूप में सामूहिक भोजन की भी परंपरा रही है। इस दिन गोवंश के गोबर से गोवर्द्धन पर्वत बना कर उसकी भी पूजा की जाती है।
स्वाति नक्षत्र से संयुक्त यह दिन अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस दिन भी अभ्यंग स्नान (तेल-स्नान) व बलि पूजन प्रमुख कृत्य है। भविष्योत्तर पुराण (140-47-73) के अनुसार रात्रि में पांच प्रकार के रंगीन चूर्णों से भूमि पर एक वृत्त पर दो हाथों वाले बलि की आकृति और उसके पास विध्यावलि (बलि की पत्नी) और चारों ओर से कूष्माण्ड, बाण, मुर आदि असुर घेरे हुए हों। मूर्ति या आकृति पर कुकुट एवं कणार्भूषण हों। चन्दन, धूप, नैवेद्य दे भोजन देना चाहिए और यह मंत्र कहना चाहिए, ‘‘बलिराज नमस्तुभ्यं विरोचन सुत प्रभो। भविष्येन्द्र सुराराते पूजेयं प्रतिगृह्मताम्। अर्थात् विरोचन के पुत्र राजा बलि, तुम्हें प्रणाम। देवों के शत्रु एवं भविष्य के इंद्र यह पूजा लो।’’ इसके उपरांत उसे क्षत्रियों की गाथाओं पर आधारित नृत्यों, गीतों से प्रसन्न करते हुए कहते हैं, शत्रु एवं भविष्य के इंद्र, यह पूजा लो। इस अवसर पर दान अक्षय होता है और विष्णु को प्रसन्न करता है। कृत्यतत्त्व (पृ.453) के अनुसार बलि को तीन पुष्पांजलियां दी जानी चाहिए। स्नान एवं दान सौ गुना फल देते हैं।
भाई दूज: कार्तिक शुक्ल द्वितीया को भ्रातृ द्वितीया, भाई दूज या यम द्वितीया के दिन भविष्य पुराण (14118-73) भविष्योत्तर पुराण व पद्म पुराण के अनुसार यमुना ने अपने भाई यम को घर पर भोजन कराया था। इस दिन अपने घर में मध्याह्न का भोजन न करके अपनी बहन के घर में खाना चाहिए और बहनों को आदरपूर्वक स्वर्णाभूषण, वस्त्र के उपहार देने चाहिए। यदि बहन न हो तो अपने चाचा या मौसी की पुत्री या मित्र की बहन को बहन मानकर ऐसा करना चाहिए। (हेमाद्रि व्रत, भाग 1, पृ. 374, कार्य विवेक, पृ. 405, कृत्य रत्नाकर, पृ. 413, व. क्रिया कौमुदी पृ. 476-489, तिथि तत्व पृ 29, कृत्यतत्त्व, पृ. 453)। पद्मपुराण के अनुसार जो व्यक्ति अपनी विवाहिता बहनों को वस्त्रों एवं आभूषणों से सम्मानित करता है, वह वर्ष भर किसी झगड़े में नहीं पड़ता और उसे शत्रुओं का भय नहीं रहता है।
टिप्पणियाँ