विकास भी और विरासत भी इस भाव और स्वभाव से निरंतर अपने कार्यपथ पर अग्रसर है हमारे प्रधानसेवक।
जहां एक ओर भारत की अर्थव्यवस्था की गति में वृद्धि होने एवं ब्रिटेन को पीछे छोड़ते हुए विश्व की 5 वें स्थान पर क़ाबिज़ होने से लेकर देश के हर क्षेत्रों में चौहमुखी विकास देखने को मिलता है वहीं इसके साथ दूसरी ओर भारत की सांस्कृतिक विरासत को लेकर भी आगे बढ़ रहे और इसके साक्षात्कार हम सभी हो रहे हैं। और इसके प्रमाण स्वरूप बीते 8 वर्षों में
प्रधान सेवक के द्वारा सनातन संस्कृति के प्रति अप्रतिम लगाव और प्रसिद्ध स्थलों के पुनर्निर्माण को कुछ इस प्रकार से देखा जा सकता है
सोमनाथ, केदारनाथ धाम, अयोध्या, काशी विश्वनाथ, बद्रीनाथ धाम, आदि शंकराचार्य, रामानुज चार्य, हनुमान जी मंदिर, बैधनाथ, अंबाजी मंदिर, सूर्य मंदिर, और अब उज्जैन महाकाल लोक के पुनर्निर्माण एवं सौंदर्यीकरण का कार्य करवाना एवं लोकार्पण करना अपने आप में उनका आस्था के प्रति उत्कृष्ट उदाहरण को प्रदर्शित करता है
यहाँ पर ये बात भी ध्यान रखना चाहिए कि 2014 में प्रधानमंत्री बनने के पूर्व भी जब मोदी जी गुजरात में मुख्यमंत्री पद पर कार्यरत थे तो उस समय केदारनाथ स्थली का पुनर्निर्माण में मदद करने की इच्छा जताई जो 2013 में आई भारी आपदा के कारण क्षतिग्रस्त हो गया था, लेकिन तब मौजूदा यूपीए केन्द्र सरकार और उत्तराखंड कांग्रेस सरकार ने इसकी अनुमति नहीं दी थी। लेकिन अंततः बाबा केदारनाथ की यही इच्छा थी कि माननीय मोदी जी के हाथों ही यह शुभ कार्य संपन्न किया जाएगा
यदि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी को सनातन संस्कृति के संवाहक कहा जाए तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। क्योंकि जहां एक ओर अपने कर्तव्य पथ पर विकास की ओर अग्रसर होते हुए वो 130 करोड़ देशवासियों की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति एवं उम्मीदों पर खरे उतर रहे हैं वही दूसरी ओर उनकी सनातन संस्कृति के प्रति असीम श्रद्धा एवं पूर्ण जुड़ाव देखने को भी मिलता है। जिस उज्जैन नगरी में महाकाल लोक के लोकार्पण समारोह में उनकी भूमिका रही वह स्थल अपने आप में प्राचीन काल से ही सांस्कृतिक विरासत का धनी रहा है।
अपने धर्म ग्रंथों के मूल तत्वों का अध्ययन करने पर यह प्रमाण स्पष्ट होता है कि उज्जैन की यह नगरी धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत का जीवंत उदाहरण है। 16 महाजनपदों में से एक अवंति जिसकी राजधानी उज्जैन थी, जिस भूमि पर महान राजा विक्रमादित्य एवं महान भारतीय गणितज्ञ एवं खगोलज्ञ वराहमिहिर ने जन्म लिया उसी नगरी में बना है यह दिव्य एवं भव्य महाकाल लोक एक मनमोहक शक्ति पूंज एवं अद्वितीय सौंदर्यीकरण का जीवंत उदाहरण है।
हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि आज़ादी के इस अमृतकाल में उज्जैन भारत के सांस्कृतिक अमरत्व की उद्घोषणा कर रही है जो हज़ारों साल से भारतीय काल गणना का केन्द्र बिन्दु भी रहा और आज उज्जैन ने फिर से भारत की भव्यता का एक नए कालखंड का पुनः उद्घोष किया है।
महाकाल के इस क्षेत्र के भव्य आकार लेने का समय शायद स्वयं महादेव ने ही इस स्वतंत्रता के अमृत काल में नरेंद्र मोदी जी के कर कमलों द्वारा एवं उनके कार्यकाल को ही चुना है। यह अलौकिक महाकाल लोक का सृजन और दर्शन सांस्कृतिक चेतना के प्रसार के नवीन युग के शुभारंभ का भी एक शंखनाद है। महादेव के विभिन्न स्वरूपों का वर्णन कुछ इस शब्दों में किया जा सकता है।
जो साधारण में असाधारण है वही शिव है
जो साधक भी है संवाहक भी है वही शिव है
जो आदि भी है अनंत भी है वही शिव है
जो शक्ति भी है संत भी है वही शिव है
जो ध्यान और ज्ञान का प्रतीक है वही शिव है
वास्तव में उज्जैन शहर आज भी अपनी उसी सनातन संस्कृति को जीवंत रखता है।इस स्थली का निर्माण वास्तव में हमारी सर्वकालिक परंपरा की ही अभिव्यक्ति है। मानिए यह कहना उचित होगा कि इस स्थान का निर्माण सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, सभी दृष्टियों से पूरक और अद्वितीय महत्त्व रखता है
ऐसे सांस्कृतिक विरासत का सृजन इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि जहां एक ओर आस्था के इन सांस्कृतिक केन्द्रों के पुनर्निर्माण और सौंदर्यीकरण का कार्य होता है तो वही अतीत में जो इतिहास बनकर पन्नों में गायब होने की स्थिति में होता है उसको पुनः पढ़ने और समझने का समय भी इसके साथ शुरू हो जाएगा क्योंकि आनेवाले पीढ़ियों में इसके प्रति जागरूकता और जुड़ाव लाने के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि आप अपने सनातन संस्कृति के विरासत को ना केवल पन्नों में समाहित कर छोड़ दे बल्कि उन्हें जीवंत उदाहरण एवं स्थापत्य कला के रूप में भी अवश्य देखें
उदाहरण के तौर पर यदि बृहदीश्वर मंदिर या मीनाक्षी मंदिर को केवल पन्नों में पढ़ने तक सीमित रखा जाता तो आज उस भव्य सुंदर अलौकिक कलाकृति को देखने का सौभाग्य कैसे प्राप्त होता।
आस्था केन्द्र के अतिरिक्त इस स्थलों को एक अलग स्वरूप में भी देखना उचित होगा जो कि धार्मिक पर्यटन के रूप में भी देखा जा सकता है। जिस स्थान का स्वभाविक पुनर्विकास होने में गति मिलती है। जहां लोगों को सुगमता से पहुँचने के यातायात की उत्तम सुविधा को प्रदान करने की कोशिश की जाती है जिसमें हवाईअड्डे, ट्रेन लाइन, बेहतरीन हाइवे,सड़कों, एवं वाहनों की व्यवस्था को प्राथमिकता दी जाती है। यही सांस्कृतिक केन्द्र आगामी वर्षों में उस क्षेत्र का विकास करने के साथ ही नए रोज़गार व स्वरोज़गार के अवसर प्रदान करने का एक महत्वपूर्ण स्थल बनकर उभरता है और उस प्रदेश के विकास के साथ ही राज्य, देश एवं विश्व में इसकी एक अलग पहचान बनकर भी उभरती है। तकनीकी की इस दुनिया में वैश्विक स्तर पर नक़्शे में ऐसे सांस्कृतिक स्थलों का ना केवल नाम ढूँढा जाता है, बल्कि यही क्षेत्र भारतीय टूरिज़्म की मुख्य धारा से जोड़ने में एक कड़ी का काम भी करती है, क्षेत्रीय संवृद्धि एवं विकास के साथ ही रोजगार एवं आय में वृद्धि होने के मार्ग भी गुणात्मक रूप से अग्रसर होते हैं।
अत: यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि धार्मिक एवं सांस्कृतिक स्थल देश के पर्यटन, व्यापारिक, औद्योगिक जगत एवं ऐसे विभिन्न क्षेत्रों को सकारात्मक रूप से प्रभावित करती है और उज्जैन में बने इस नए महाकाल लोक की वजह से इस क्षेत्र की संवृद्धि एवं अन्य कई नई गतिविधियों में परिवर्तन एवं तेज़ी देखने को मिलेगी तथा इस क्षेत्र के विकास का एक नवीनतम मार्ग प्रस्तुत करेगा
लेखक – विभूति सिंह
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