पांच भोग की महत्ता-भोजन सामग्री की शुद्धता, उसकी विविधता, सभी पांच भोग में कोई भी अक्षत सालभर में दोहराया न जाए, उसके माध्यम से उस क्षेत्र की जैव विविधता, उसकी आपूर्ति। परंपओं को खोजना होगा… किताबों में नहीं, शायद, दिमाग में भी नहीं। बस, मन में, दिल में, स्वभाव में।
जगन्नाथ पुरी के महाप्रसाद में बनने वाले 56 भोग दो तरह के होते हैं- शंकुड़ी (गीला) महाप्रसाद और सुखीला (सूखा) महाप्रसाद। शंकुड़ी में खिचड़ी, शाक-भाजी, सब्जियां, घी-चावल, मीठी दाल व अन्य व्यंजन होते हैं, जबकि सूखे पकवान सुखीला कहलाते हैं। संक्षेप में यह भोग संतुलित आहार होते हैं, जिसमें काबोर्हाइड्रेट, प्रोटीन और खनिज मौजूद होते हैं।
पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा और काली पूजा के अवसर पर माता को बासमती चावल का पुलाव जिसमें काजू-किशमिश होते हैं या मूंग खिचड़ी, कई सब्जियों की कढ़ी, बैंगन, कद्दू आदि की सब्जियां, चटनी और मिठाइयां शामिल होती हैं। भोग में मसाले का प्रयोग बहुत कम होता है, फिर भी ये बहुत स्वादिष्ट होते हैं। ये कार्बोहाइड्रेट और खनिज से भरपूर होते हैं।
आंध्र प्रदेश के प्रसिद्ध तिरुपति बालाजी मंदिर में चढ़ाया जाने वाले लड्डू को श्री वारि लड्डू कहा जाता है। भगवान वेंकटेश्वर को लड्डू चढ़ाने की प्रथा 1715 से चली आ रही है। बेसन, घी, काजू, किशमिश, मक्खन और इलायची से बना लड्डू कई दिनों तक खराब नहीं होता। एक लड्डू 174 ग्राम का होता है।
वृंदावन में बांके बिहारी को जो पहला भोग लगता है, उसे बाल भोग कहा जाता है। इसमें भगवान को कचौड़ी, आलू की सब्जी और बेसन के लड्डू का भोग लगता है। इसके अलावा, श्रद्धालु भगवान को कुल्हड़ में मक्खन-मिस्री भी प्रसाद के रूप में चढ़ाते हैं। मक्खन गाय के दूध का बना होता है।
केरल के शबरीमला मंदिर में भगवान अयप्पा को चढ़ाया जाने वाला प्रसादम् अप्पम और अरावण पायसम कहलाता है। दोनों केरल के प्रसिद्ध व्यंजन हैं। अप्पम कच्चे चावल, सूखे खमीर, नारियल के दूध और चीनी का बना होता है, जबकि अरावण पायसम खीर होती है, जिसमें चावल, गुड़ और नारियल का प्रयोग होता है।
जम्मू में कटरा स्थित माता वैष्णो देवी मंदिर में तो प्रसाद जूट के दो थैले में मिलता है। एक थैले में मुरमुरे, सूखे सेब, सूखा नारियल, इलायची के बीज, जबकि दूसरे थैले में मिस्री, विशेष प्रकार के सिक्के होते हैं, जिन पर देवी-देवता अंकित होते हैं।
टिप्पणियाँ