पाकिस्तान का इस्लामीकरण होने के दौरान वहां से लुप्त साड़ी तकनीक
के माध्यम से एक बार फिर वहां के बाजारों में छाने लगी है
क्या आपने कभी ध्यान दिया है कि ईकॉमर्स और नवोद्यमों (स्टार्टअप) ने बहुत सी ऐसी चीजों को खरीदना बहुत आसान बना दिया है जो पहले अनुपलब्ध थीं या फिर अपवाद के रूप में ही मिलती थीं, खासकर विदेशी चीजें। इसकी एक मजेदार झलक पाकिस्तान में दिखती है जहां दशकों पहले लुप्त हो चुकी साड़ी फिर से दिखने लगी है, और इसकी वजह है तकनीक।
स्वाधीनता से पहले साड़ी पाकिस्तान में भी एक आम पहनावा थी। इंटरनेट पर जरा सा खोजने पर आपको मोहम्मद अली जिन्ना की ऐसी तस्वीरें मिल जाएंगी जिनमें उनके परिवार की महिलाएं साड़ी पहने हैं। एक चर्चित तस्वीर में जिन्ना चार महिलाओं और दो पुरुषों के साथ दिख रहे हैं और चारों महिलाओं ने साड़ियां पहनी हैं। इनमें से एक उनकी बहन फातिमा जिन्ना हैं और एक अन्य महिला हैं जनरल अयूब खान की बेटी बेगम नसीम औरंगजेब।
स्वाधीनता के बाद भी कम से कम दो दशक तक पाकिस्तान में साड़ी का प्रचलन बना रहा लेकिन जैसे-जैसे उस देश का इस्लामीकरण होता गया, साड़ी भी नजरों से ओझल होती चली गई। यूं साड़ी ही क्या, पीछे की तरफ चलने की पाकिस्तानी यात्रा में, दर्जनों ऐसे तत्व छूट गए हैं जिनका कभी उस भौगोलिक क्षेत्र की पहचान, इतिहास और संस्कृति से गहरा संबंध था। साड़ी, बिंदी, चूड़ी आदि को वहां एक हिंदू पहचान दे दी गई है।
यूं इस्लामीकरण तो बांग्लादेश में भी हुआ है और उसके असर भी साफ दिखते हैं लेकिन फिर भी वह संस्कृति और पहचान के मामले में पाकिस्तान की तुलना में ज्यादा सजग दिखता है, जहां की मौजूदा प्रधानमंत्री शेख हसीना और उनकी प्रतिद्वंद्वी बेगम खालिदा जिया, दोनों ही साड़ी पहनती हैं।
कट्टरपंथ में डूबते पाकिस्तान में साड़ियों का कारोबार करना आसान नहीं होगा। इन लोगों को भी ग्राहकों से ज्यादा आलोचकों और ट्रोलर्स से जूझना पड़ता है लेकिन युवा उद्यमी महिलाओं की यह जमात आज भी डटी है। यह सोचकर कि बदलाव मुश्किल भले ही हो, असंभव बिल्कुल नहीं है।
हालांकि युवा पीढ़ी में उत्सुकता और जोखिम लेने की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है, इसलिए आज भी कुछ पाकिस्तानी युवतियां, फैशन मॉडल और अभिनेत्रियां साड़ी में दिख जाती हैं। यह आकर्षक तो है ही, गरिमापूर्ण भी है। लेकिन साड़ियां मिलें कहां से, अब पाकिस्तान में न तो साड़ी बनाई जाती है और न ही बेची जाती है।
इक्का-दुक्का व्यापारी इसे विदेशों से आयात करके बेचते हैं लेकिन आयातित माल की कीमतें इतनी महंगी हो जाती हैं कि वे सामान्य लोगों की सीमा से बाहर निकल जाती हैं। यह एक और कारण है जिसकी वजह से पाकिस्तान में साड़ियां खरीदी और पहनी नहीं जातीं। बहरहाल, ईकॉमर्स कंपनियों और इंटरनेट के दौर में यही स्थिति बदल रही है।
आइजा हुसैन नाम की एक युवती नए युग के उन उद्यमियों में शामिल है जो साड़ियों की आपूर्ति में कमी को एक कारोबारी अवसर में बदल देना चाहती हैं। उन्होंने भारत, श्रीलंका और बांग्लादेश से साड़ियों का आयात करने वाले लाहौर के थोक व्यापारियों से संपर्क किया और फेसबुक के जरिए साड़ियां बेचने का सिलसिला शुरू किया।
शुरुआत में उन्होंने अपने कॉलेज की सहेलियों को लक्ष्य बनाया लेकिन जल्द ही उनकी लोकप्रियता ऐसी बढ़ी कि अपना ब्रांड बनाने की जरूरत महसूस हुई और बढ़ती मांग को संभालने के लिए एक वेबसाइट भी बनानी पड़ी। आइजा हुसैन के उद्यम का नाम है- ‘द सारी गर्ल।’ जो साड़ियां पाकिस्तान में दूसरे आवश्यक वस्त्रों के साथ 15 हजार से 20 हजार रुपये के बीच बिकती थीं, वहीं इस तरह के उद्यमों के जरिए पांच-साढ़े पांच हजार रुपये की दर में मिलने लगी हैं।
लेकिन बात ‘सारी गर्ल’ तक सीमित नहीं है। साड़ी के प्रति ललक, रुझान और बढ़ती मांग को देखते हुए दूसरे ब्रांड भी आनलाइन माध्यमों पर आ जुटे हैं। उदाहरण के लिए लाहौर की कंपनी, जिसका नाम है- ‘सारीका’। और इसी तरह से कराची की कंपनी, जिसका नाम है- ‘हसीन साड़ी।’ इन पर सस्ती और महंगी, तमाम तरह की साड़ियां उपलब्ध हैं- जरदोजी के काम वाली, बनारसी और रोजमर्रा के लिए इस्तेमाल की जाने वाली साड़ियां भी।
लाहौर में जरलस्त कादिर खान नामक युवती इन्स्टाग्राम पर ‘हिजाबी मामा इन सारीज’ नाम का पेज चलाती है और अपनी खरीदी साड़ियों के फोटो पोस्ट करती है। वह इन साड़ियों की खूबसूरती, कपड़े और डिजाइन आदि के बारे में विस्तार से लिखती है। सारी गर्ल भी इन्स्टाग्राम पर मौजूद है।
हालांकि आप अनुमान लगा सकते हैं कि कट्टरपंथ में डूबते पाकिस्तान में साड़ियों का कारोबार करना आसान नहीं होगा। इन लोगों को भी ग्राहकों से ज्यादा आलोचकों और ट्रोलर्स से जूझना पड़ता है लेकिन युवा उद्यमी महिलाओं की यह जमात आज भी डटी है। यह सोचकर कि बदलाव मुश्किल भले ही हो, असंभव बिल्कुल नहीं है।
(लेखक माइक्रोसॉफ़्ट इंडिया में निदेशक के पद पर कार्यरत हैं।)
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