उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जनपद में गंगा नदी में तैरता हुआ पत्थर मिला है। इस तैरते हुए पत्थर को देखकर सभी चमत्कृत हैं। कुछ लोग इस पत्थर को अलौकिक और त्रेता युग का पत्थर मानकर पूजन-अर्चन कर रहे हैं। रामायण काल का पत्थर सुनकर इस पत्थर को देखने के लिए लोगों की भीड़ सीखड़ गांव पहुंच रही है। प्रारंभिक जांच-पड़ताल में यह प्यूमिस प्रजाति का पत्थर निकला है।
पत्थर के सच की पुष्टि बीएचयू के वैज्ञानिकों ने जांच करने के बाद की गई। जियोलॉजी डिपार्टमेंट के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. प्रदीप कुमार और जियोलॉजी के विभागाध्यक्ष बीएचयू डॉ. बीपी सिंह की टीम ने शनिवार को पहुंचकर जांच के बाद पत्थर को प्यूमिस बताया है। विशेषज्ञों के अनुसार यह एक तरह का पत्थर है, क्योंकि इनमें छिद्र होने की वजह से हवा भर जाती है इसलिए पत्थर, हवा भरने की वजह से हल्का हो जाता है। इसी वजह से यह पत्थर पानी में तैरता है।
उल्लेखनीय है सीखड़ के करीब लालपुर गांव के निवासी बचऊ शर्मा शनिवार सुबह गंगा नदी पर पिंडदान में शामिल होने गए थे। इसी दौरान उन्हें गंगा नदी में एक तैरता हुआ पत्थर दिखाई दिया। जिसको ग्रामीणों ने नदी से निकालकर बार-बार पानी में डूबोने का प्रयास किया, लेकिन पत्थर पानी पर तैरता ही रहा। कुछ ग्रामीणों ने इस पत्थर को त्रेता युग और रामसेतु का मानकर वहीं पर पूजन भी शुरू कर दिया। जियोलाजी डिपार्टमेंट के प्रमुख डॉ बीपी सिंह के मुताबिक प्यूमिस मध्य भारत यानी दक्कन के पठार क्षेत्र में ज्यादा देखने को मिलता है।
संभावना है कि चंबल नदी के जरिए होते हुए यह पत्थर पहले यमुना नदी में पहुंचा होगा, इसके बाद गंगा में आया होगा। गंगा में उतराए मिले पत्थर का वजन लगभग ढाई किलो है और इसकी लंबाई 9 ईंच व चौड़ाई 8.5 इंच है। आगे और शोध किया जाएगा।
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