प्रतिभा से गढ़ो प्रज्ञा
July 11, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम भारत

प्रतिभा से गढ़ो प्रज्ञा

लोकमंथन के सत्र में पद्मश्री सम्मान से सम्मानित और आदिवासी लोककला अकादमी, संस्कृति परिषद, मध्य प्रदेश के सेवानिवृत्त निदेशक डॉ. कपिल तिवारी ने भारतीय परम्परा के विविध प्रतीकों के माध्यम से भारत के लोक को स्पष्ट किया

by WEB DESK
Oct 6, 2022, 06:30 pm IST
in भारत, विश्लेषण, मत अभिमत, धर्म-संस्कृति
‘लोक परंपरा’ पर विचार व्यक्त करते हुए डॉ. कपिल तिवारी

‘लोक परंपरा’ पर विचार व्यक्त करते हुए डॉ. कपिल तिवारी

FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

वृक्ष जीवन की परम्परा और नदी निरंतरता की परम्परा के प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। जैसे वृक्ष विकसित होता है और अपने बीजों के माध्यम से विस्तारित होता है वैसे जीवन विकसित व विस्तारित होता है; और जैसे नदी निरंतर प्रवाहमान है, वैसे ही भारत की लोक परम्परा निरंतर प्रवाहमान है।

लोकमंथन के सत्र में पद्मश्री सम्मान से सम्मानित और आदिवासी लोककला अकादमी, संस्कृति परिषद, मध्य प्रदेश के सेवानिवृत्त निदेशक डॉ. कपिल तिवारी ने भारतीय परम्परा के विविध प्रतीकों के माध्यम से भारत के लोक को स्पष्ट किया। उन्होंने कहा कि वृक्ष जीवन की परम्परा और नदी निरंतरता की परम्परा के प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। जैसे वृक्ष विकसित होता है और अपने बीजों के माध्यम से विस्तारित होता है वैसे जीवन विकसित व विस्तारित होता है; और जैसे नदी निरंतर प्रवाहमान है, वैसे ही भारत की लोक परम्परा निरंतर प्रवाहमान है।

उन्होंने कहा कि कथित आधुनिक लोग भारत की लोक परम्परा पर आधुनिक न होने का आरोप लगाते हैं। ऐसे लोग मूलत: यूरंडपंथी हैं, जो न पूरी तरह से यूरोपीय हैं और न भारतीय। परंतु अब युग ने करवट बदली है, चिंतन का केंद्र धीरे-धीरे यूरोप से भारत की ओर परिवर्तित हो रहा है। उन्होंने यह कहा कि जीवन सम्पूर्ण समष्टि से जुड़ा हुआ है। शक्ति को बाहर खोजा नहीं जाता, यह अंतर्यात्रा है।

सत्य अपने आप में पूर्ण होता है, जिसमें कुछ जोड़ा नहीं जा सकता। सत्य नया नहीं होता, वह सनातन होता है। सत्य को नई तरह से कहा जा सकता है, नया नहीं कहा जाता। शब्द व विचार जब एक बिंदु की ओर केंद्रित होता है, तो वह विमर्श बनता है। उन्होंने कहा कि कोई प्रतिभा पर रुक गया तो वह उस क्षेत्र में सत्ता बन जाएगा। इसलिए हमारी परम्परा यह कहती है कि प्रतिभा को प्रज्ञा में बदलो।

सत्र
लोक परंपरा

शब्द व विचार जब एक बिंदु की ओर केंद्रित होता है, तो वह विमर्श बनता है। कोई प्रतिभा पर रुक गया तो वह उस क्षेत्र में सत्ता बन जाएगा। इसलिए हमारी परम्परा यह कहती है कि प्रतिभा को प्रज्ञा में बदलो।

डॉ. कपिल ने इस अवसर पर यह कहा कि लोक एक वाक् केंद्रित परम्परा का शब्द है। भारत की चेतना में जो लोक का विस्तार है वह षड्मातृकाओं में है। ये षड्मातृका धरती माता, पांच तत्व व तीन गुणों वाली अपरा प्रकृति के रूप में प्रकृति माता, नदी माता, स्त्री माता, गाय माता व मातृभाषा माता हैं।

भारत की इस लोक संस्कृति पर बर्बर लोगों के अनेकानेक आक्रमण हुए। परंतु ये संस्कृति की भौतिक परत को ही नष्ट कर पाए। उन्होंने लोगों के सर काटे परंतु उनकी चेतना को न मिटा पाए। भौतिक परत के बार-बार नष्ट होने पर भी यह संस्कृति फिर से खड़ी हो गई, क्योंकि इस संस्कृति में विविधता नहीं एकसूत्रता है; और वह सूत्र ज्ञान, बोध व चेतना है। यह संस्कृति इसलिए नष्ट नहीं हो पाई, क्योंकि इसके विरुद्ध संघर्ष हेतु आए समुदायों में कोई ज्ञान की परम्परा ही नहीं थी।

उन्होंने यह कहा कि भारत का लोक कभी भी राज्य के भरोसे नहीं रहा। जिस समाज में स्वानुशासन हो, उसे राज्य के विधानों व संहिताओं की आवश्यकता नहीं पड़ती। आज की नागर परम्परा में विधान के समाप्त होते ही राज्य की मर्यादा समाप्त हो जाती है। लेकिन भारत का लोक ऋत अर्थात् अस्तित्व को संचालित करने वाले महानियम पर आधारित है, इसकी मर्यादा स्वधर्म में है अत: यह समाप्त नहीं होती। मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम की मर्यादा किसी संहिता व विधान पर आधारित नहीं थी; वे समष्टि की मर्यादा के पुरुषोत्तम थे।

डॉ. तिवारी ने धर्म व धार्मिकता पर कहा कि धार्मिकता का संबंध रोज कर्मकांड करने से नहीं है। यदि किसान अपने खेत की मिट्टी को प्रणाम करता है तो वह उसी विराट की पूजा कर रहा है; वह यदि अपने खेत का अन्न किसी भूखे को खिलाता है तो वह धर्म का आचरण कर रहा है। उन्होंने कहा कि भारतीय लोक परम्परा यह बताती है कि धरती न जीतने के लिए होती है, न हारने के लिए; यह रहने के लिए होती है।

Topics: Culture CouncilFolk CultureMaryada Purushottam Shri Ram's dignitycode and legislationbuild wisdom with talentभारत की लोक परम्पराआदिवासी लोककला अकादमीलोकमंथनसंस्कृति परिषदFolk Manthanलोक संस्कृतिFolk Tradition of Indiaमर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम की मर्यादाTribal Folk Kala Academyसंहिता व विधान
ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

अयोध्या प्रसाद गुप्त ‘कुमुद’

कला और साहित्य को समर्पित जीवन

जे नंदकुमार

‘‘लोकमंथन केवल आयोजन नहीं, एक आंदोलन है’’ -जे नंदकुमार

महोत्सव में नृत्य करतीं छात्राएं

लोक संस्कृति की शानदार प्रस्तुति

एलियाह, गेलवाना, और या वा दिजपतिता लोकमंथन में अग्नि अनुष्ठान करते हुए

अग्नि उपासक हैं लिथुआनियावासी

केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण

‘वनवासी—नगरवासी और ग्रामवासी सब एक हैं’

लोकमंथन में प्रस्तुति देते कलाकार

भारतीयता का संगम

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

अर्थ जगत: कर्ज न बने मर्ज, लोन के दलदल में न फंस जाये आप; पढ़िये ये जरूरी लेख

जर्मनी में स्विमिंग पूल्स में महिलाओं और बच्चियों के साथ आप्रवासियों का दुर्व्यवहार : अब बाहरी लोगों पर लगी रोक

सेना में जासूसी और साइबर खतरे : कितना सुरक्षित है भारत..?

उत्तराखंड में ऑपरेशन कालनेमि शुरू : सीएम धामी ने कहा- ‘फर्जी छद्मी साधु भेष धारियों को करें बेनकाब’

जगदीप धनखड़, उपराष्ट्रपति

इस्लामिक आक्रमण और ब्रिटिश उपनिवेशवाद ने भारतीय शिक्षा व्यवस्था को नुकसान पहुंचाया : उपराष्ट्रपति धनखड़

Uttarakhand Illegal Madarsa

बिना पंजीकरण के नहीं चलेंगे मदरसे : उत्तराखंड हाईकोर्ट ने दिए निर्देश

देहरादून : भारतीय सेना की अग्निवीर ऑनलाइन भर्ती परीक्षा सम्पन्न

इस्लाम ने हिन्दू छात्रा को बेरहमी से पीटा : गला दबाया और जमीन पर कई बार पटका, फिर वीडियो बनवाकर किया वायरल

“45 साल के मुस्लिम युवक ने 6 वर्ष की बच्ची से किया तीसरा निकाह” : अफगानिस्तान में तालिबानी हुकूमत के खिलाफ आक्रोश

Hindu Attacked in Bangladesh: बीएनपी के हथियारबंद गुंडों ने तोड़ा मंदिर, हिंदुओं को दी देश छोड़ने की धमकी

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies