विजयदशमी पर्व पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री डॉ. मोहन भागवत ने बुधवार को नागपुर में अपना उद्बोधन दिया। इस दौरान उन्होंने कहा- प्राचीन समय से भूगोल, भाषा, पंथ, रहन सहन, सामाजिक तथा राजनीतिक व्यवस्थाओं की विविधताओं के बावजूद समाज के नाते, संस्कृति के नाते, राष्ट्र के नाते हमारा एक जीवन प्रवाह अक्षुण्ण चलता रहा है। इस में सभी विविधताओं का स्वीकार है, सम्मान है, सुरक्षा है, विकास है। किसी को अपनी संकुचितता, कट्टरता, आक्रामकता व अहंकार के अतिरिक्त कुछ भी छोड़ना नहीं पड़ता। सत्य, करुणा, अंतर्बाह्य शुचिता व इन तीनों की साधना के अतिरिक्त कुछ भी अनिवार्य नहीं। भारत भक्ति, हमारे समान पूर्वजों के उज्ज्वल आदर्श व भारत की सनातन संस्कृति इन तीन दीपस्तंभों के द्वारा प्रकाशित व प्रशस्त पथ पर मिलजुलकर प्रेम पूर्वक चलना यही अपना स्व, अपना राष्ट्रधर्म है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के समाज को आवाहन का प्रारंभ से यही आशय रहा है। आज यह अनुभव आता है कि उस पुकार को सुनने समझने को अब सब लोग तैयार हैं। अज्ञान, असत्य, द्वेष, भय, अथवा स्वार्थ के कारण संघ के विरुद्ध जो अपप्रचार चलता है उसका प्रभाव कम हो रहा है। क्योंकि संघ की व्याप्ति व समाज संपर्क में – यानी संघ की शक्ति में लक्षणीय वृद्धि हुई है। दुनिया में सुने जाने के लिए सत्य को भी शक्तिशाली होना पड़ता है, यह जीवन का विचित्र वास्तव है। दुनिया में दुष्ट शक्तियाँ भी हैं, उनसे बचने के लिए व अन्यों को बचाने के लिए भी सज्जनों की संगठित शक्ति चाहिए। संघ उपरोक्त राष्ट्र विचार का प्रचार – प्रसार करते हुए सम्पूर्ण समाज को संगठित शक्ति के रूप में खड़ा करने का काम कर रहा है। यही हिन्दू समाज के संगठन का काम है, क्योंकि उपरोक्त राष्ट्र विचार को हिन्दू राष्ट्र का विचार कहते हैं और वह है भी। इसलिए संघ उपरोक्त राष्ट्र विचार को मानने वाले सबका यानी हिन्दू समाज का संगठन, हिन्दू धर्म, संस्कृति व समाज का संरक्षण कर हिन्दू राष्ट्र की सर्वांगीण उन्नति के लिए, “सर्वेषां अविरोधेन” काम करता है।
अब जब संघ को समाज में कुछ स्नेह तथा विश्वास का लाभ हुआ है और उसकी शक्ति भी है तो हिन्दू राष्ट्र की बात को लोग गम्भीरता पूर्वक सुनते हैं। इसी आशय को मन में रखते हुए परन्तु हिन्दू शब्द का विरोध करते हुए अन्य शब्दों का उपयोग करने वाले लोग हैं। हमारा उनसे कोई विरोध नहीं। आशय की स्पष्टता के लिए हम हमारे लिए हिन्दू शब्द का आग्रह रखते रहेंगे।
तथाकथित अल्पसंख्यकों में बिना कारण एक भय का हौवा खड़ा किया जाता है कि हम से अथवा संगठित हिन्दू से खतरा है। ऐसा न कभी हुआ है, न होगा। न यह हिन्दू का, न ही संघ का स्वभाव या इतिहास रहा। अन्याय, अत्याचार, द्वेष का सहारा लेकर गुंडागर्दी करने वाले समाज की शत्रुता करते हैं तो आत्मरक्षा अथवा आप्तरक्षा तो सभी का कर्तव्य बन जाता है। “ना भय देत काहू को, ना भय जानत आप”, ऐसा हिन्दू समाज खड़ा हो यह समय की आवश्यकता है। यह किसी के विरुद्ध नहीं है। संघ पूरी दृढ़ता के साथ आपसी भाईचारा, भद्रता व शांति के पक्ष में खड़ा है।
ऐसी चिन्ताएँ मन में रखकर तथाकथित अल्पसंख्यकों में से कुछ सज्जन गत वर्षों में मिलने के लिए आते रहे हैं। उनसे संघ के कुछ अधिकारियों का संपर्क संवाद हुआ है, होते रहेगा। भारतवर्ष प्राचीन राष्ट्र है, एक राष्ट्र है। उसकी उस पहचान व परंपरा की धारा के साथ तन्मयतापूर्वक अपनी-अपनी विशिष्टता को रखते हुए हम सभी प्रेम सम्मान व शांति के साथ राष्ट्र की नि: स्वार्थ सेवा मिलकर करते चलें। एक दूसरे के सुख – दुःख में परस्पर साथी बनें, भारत को जानें, भारत को मानें, भारत के बनें, यही एकात्म, समरस राष्ट्र की कल्पना संघ करता है। संघ का और कोई उद्देश्य या स्वार्थ इसमें नहीं है।
अभी पिछले दिनों उदयपुर में एक अत्यंत ही जघन्य एवं दिल दहला देने वाली घटना घटी। सारा समाज स्तब्ध रह गया। अधिकांश समाज दु:खी एवं आक्रोशित था। ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो यह सुनिश्चित करना होगा। ऐसी घटनाओं के मूल में पूरा समाज नहीं होता। उदयपुर घटना के बाद मुस्लिम समाज में से भी कुछ प्रमुख व्यक्तियों ने अपना निषेध प्रगट किया। यह निषेध अपवाद बन कर ना रह जाए, अपितु अधिकांश मुस्लिम समाज का यह स्वभाव बनना चाहिए। हिन्दू समाज का एक बड़ा वर्ग ऐसी घटना घटने पर हिन्दू पर आरोप लगे तो भी मुखरता से विरोध और निषेध प्रगट करता है।
उकसाना कोई भी और कैसा भी हो, क़ानून एवं संविधान की मर्यादा में रहकर सदैव सबको अपना विरोध प्रगट करना चाहिए। समाज जुड़े – टूटे नहीं, झगड़े नहीं, बिखरे नहीं। मन-वचन-कर्म से यह प्रतिभाव मन में रखकर समाज के सभी सज्जनों को मुखर होना चाहिए। हम दिखते भिन्न और विशिष्ट हैं, इसलिए हम अलग हैं, हमें अलगाव चाहिए, इस देश के साथ, इस की मूल मुख्य जीवनधारा व पहचान के साथ हम नहीं चल सकते; इस असत्य के कारण “भाई टूटे धरती खोयी मिटे धर्मसंस्थान” यह विभाजन का ज़हरीला अनुभव लेकर कोई भी सुखी तो नहीं हुआ। हम भारत के हैं, भारतीय पूर्वजों के हैं, भारत की सनातन संस्कृति के हैं, समाज व राष्ट्रीयता के नाते एक हैं, यही हमारा तारक मंत्र है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री डॉ. मोहन भागवत ने बुधवार को नागपुर में आयोजित विजय दशमी कार्यक्रम में शक्ति की साधना का आह्वान किया। इस अवसर पर उन्होंने शस्त्र पूजा भी की इस दौरान उनके साथ पहली बार महिला मुख्य अतिथि संतोष यादव मौजूद रहीं। संतोष दो बार माउंट एवरेस्ट फतेह करने वाली दुनिया की एक मात्र महिला हैं।
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