सत्र
लोक परंपरा में पर्यावरण और जैव विविधता
समारोह में ‘लोक परंपरा में पर्यावरण एवं जैव विविधता’ सत्र को पर्यावरणविद् अनंत हेगड़े आशिसार और प्रो. परिमल भट्टाचार्य ने संबोधित किया। हेगड़े कर्नाटक में पर्यावरण संरक्षण और सतत विकास के लिए करीब 40 साल से सक्रिय हैं। पर्यावरण संरक्षण के लिए वे ‘वृक्ष लक्ष आंदोलन’ नाम से अभियान चला रहे हैं। बतौर मुख्य वक्ता उन्होंने कहा कि तुलसी चौरा बनाकर पूजा करना हमारी संस्कृति है।
दक्षिण भारत में जैव विविधता को लेकर बहुत काम हो रहे हैं। इसके अलावा, उन्होंने अलग-अलग भाषा, वेश-भूषा और एक देश पर अपने विचार रखे। हेगड़े ने कहा कि पर्यावरण की रक्षा के लिए पौधरोपण का कोई विकल्प नहीं हो सकता। उन्होंने सभी से पर्यावरण रक्षा की अपील करते हुए कहा कि पर्यावरण को बचाए रखने के लिए पौधरोपण बहुत जरूरी है। पर्यावरण बचेगा, तभी हमारा देश बचेगा।
दक्षिण भारत में जैव विविधता को लेकर बहुत काम हो रहे हैं। पर्यावरण की रक्षा के लिए पौधरोपण का कोई विकल्प नहीं हो सकता। पर्यावरण बचेगा, तभी हमारा देश बचेगा।
— अनंत हेगड़े आशिसार, पर्यावरणविद्
स्टेटबोर्ड मेंटर वाइल्ड लाइफ, विवेकानंद केंद्र, इन्स्टीट्यूट आफ कल्चर के निदेशक परिमल भट्टाचार्य ने कहा कि उत्तर-पूर्वी भारत लघु भारत है। यह देश का सबसे धनी क्षेत्र है। यहां 55 प्रतिशत क्षेत्र में जंगल है। उन्होंने पूर्वोत्तर की जैव विविधता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इस क्षेत्र में नींबू की कई प्रजातियों के अलावा, केला, अन्नानास, धान और बांस की भी खेती होती है। उन्होंने यह भी बताया कि यह किस तरह पर्यावरण के लिए उपयोगी होते हैं।
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