अब गूगल में संस्कृत का अनुवाद होगा सरल

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WEB DESK

भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (आईसीसीआर) और गूगल के बीच एक समझौता हुआ है। इसके अनुसार गूगल संस्कृत की सामग्री को अन्य भाषाओं में अनुवाद करने के लिए अनुवाद की प्रक्रिया को सरल बनाएगा।

संस्कृत के श्लोकों और संस्कृत भाषा की अन्य सामग्री का अन्य भाषाओं में अनुवाद बहुत ही सरल होने जा रहा है। इसके लिए भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (आईसीसीआर) और गूगल के बीच एक समझौता हुआ है। आईसीसीआर के अध्यक्ष विनय सहस्रबुद्धे के अनुसार पहले चरण में आईसीसीआर ने गूगल को 1,00,000 श्लोक उपलब्ध कराए हैं। इससे गूगल को संस्कृत से अन्य भाषाओं में अनुवाद के लिए ‘आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस’ को और अच्छा बनाने में सहायता मिलेगी। उन्होंने यह भी कहा कि संस्कृत केवल एक भाषा नहीं है, बल्कि यह भारत की आत्मा और प्रज्ञा को समझने का मार्ग भी है। बता दें कि प्राचीन भारत का ज्ञान-विज्ञान और अन्य जानकारी संस्कृत साहित्य में ही है। उन दिनों संस्कृत समाज की व्यावहारिक भाषा थी। यही कारण है कि सभी प्राचीन साहित्य और धार्मिक पुस्तकें भी संस्कृत में हैं। आईसीसीआर की इच्छा है कि गूगल संस्कृत के अनुवाद को सरल से सरलतम बना दे, ताकि संस्कृत साहित्य में विद्यमान ज्ञान का लाभ विश्व के प्रत्येक व्यक्ति तक आसानी से पहुंचे।
उल्लेखनीय है कि भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद केंद्र सरकार का संगठन है। इसका कार्य है अन्य देशों के साथ भारत के सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ावा देने के लिए नीतियां तैयार करना और फिर उनके कार्यान्वयन के लिए आवश्यक कदम उठाना। चूंकि भाषा के बिना सांस्कृतिक संबंध नहीं बढ़ सकते हैं, इसलिए भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद अन्य देशों के छात्रें को हिंदी पढ़ने के लिए भारत बुलाती है। इसके साथ ही अन्य देशों की भाषाओं की पढ़ाई भारत में हो, इसके लिए भी नीतियां बनाती है।
अब इसी कड़ी में संस्कृत साहित्य में विद्यमान ज्ञान के प्रचार-प्रसार के लिए उपरोक्त समझौता किया गया है। संस्कृत के विद्वानों ने इस समझौते का स्वागत किया है, लेकिन कुछ आशंकाओं के साथ। ऐसे विद्वानों का मानना है कि गूगल के अनुवाद से संस्कृत साहित्य का ज्ञान लोगों तक पहुंचेगा अवश्य, लेकिन इसमें एक भय है। इन विद्वानों का कहना है कि गूगल में अनुवाद पूरी तरह सही नहीं होता है। इस कारण कई बार अर्थ का अनर्थ हो जाता है। संस्कृत भारती के अखिल भारतीय महामंत्री श्रीशदेव पुजारी ने भी ऐसी आशंका व्यक्त की है। इसके लिए उन्होंने एक उदाहरण के साथ बताया, ‘‘इतिहासकार श्रीमाली ने अपनी पुस्तक में लिखा कि वेदकालीन समाज में गोमांस खाया जाता था। जब इस संबंध में उनसे एक पत्रकार ने पूछा कि कहां से यह संदर्भ लिया है! इस पर उन्होंने कहा कि मुझे संस्कृत आती नहीं है। मैंने तो इसका अंग्रेजी अनुवाद पढ़ा है और वहीं से यह संदर्भ लिया है।’’ इसलिए उन्होंने लोगों से आग्रह किया कि लोग संस्कृत पढ़ें। संस्कृत भारती लोगों को संस्कृत पढ़ाने के लिए सदैव तैयार है। मूल संस्कृत साहित्य को पढ़ने से जो ज्ञान मिलेगा, वह प्रामाणिक होगा।

 

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