डीयू के अंतर्गत आने वाले दिल्ली सरकार के 12 कॉलेजों में वेतन संकट को लेकर दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ के अध्यक्ष ए.के. भागी से आशीष कुमार अंशु ने बातचीत की। प्रस्तुत हैं, बातचीत के अंश-
दिल्ली सरकार के कॉलेजों में चल रहा वेतन का संकट क्या है?
यह पूरा मामला पैसे की कमी से जुड़ा है। दिल्ली सरकार ने कई कॉलेजों में प्राध्यापकों और कर्मचारियों को 6 महीने तक वेतन नहीं दिया। कॉलेज चलाने का खर्च 80-90 करोड़ रुपये है और देंगे 60-65 करोड़ रुपये तो कॉलेज कैसे चलेगा? तीन माह बाद दो माह का वेतन और 6 माह बाद चार माह का वेतन दिया जाएगा तो दो महीने का वेतन बाकी ही रहेगा। इसी कारण बकाया राशि बढ़ती जा रही है। आवंटित राशि में कटौती कॉलेज के लिए एक तरह से संकेत होता है कि वह निजी हाथों की कठपुतली बन जाए।
मतलब, कॉलेज ऐसे पाठ्यक्रम शुरू करें, जिसे बाजार की शक्तियां नियंत्रित कर रही हैं। उन पाठ्यक्रमों में नामांकन से ही कॉलेज के पास मोटी रकम आ जाएगी। यदि यह नहीं हो पा रहा तो कॉलेज अपनी फीस बढ़ा दे। डीयू में जिस पाठ्यक्रम के 10 हजार रुपये लिए जा रहे हैं, नए कॉलेज उसके तीन-तीन लाख रुपये तक ले रहे हैं। साफ है कि दिल्ली सरकार अपने कॉलेजों को स्ववित्त पोषण पर ले जाना चाहती है, जहां तीन हजार रुपये की फीस, तीस हजार रुपये हो जाए।
यह कैसा शिक्षा मॉडल है? एक तरफ कोरोना काल में प्राध्यापकों को 6-6 महीने तक वेतन नहीं दिया गया और दूसरी तरफ शुल्क बढ़ाने की भी तैयारी है?
देखिए, अपनी पीठ थपथपाने से बात नहीं बनेगी। कक्षा में अच्छी लाइट, पंखा, एसी लगा हो। दीवारें चमक रही हों, लेकिन उसमें शिक्षक और विद्यार्थी ही न हों, तो क्या उसे कक्षा कहेंगे? कक्षा क्या ब्लैकबोर्ड से बनती है? या शिक्षक विद्यार्थी मिलकर किसी भी कक्ष को कक्षा बना सकते हैं। दिल्ली सरकार को बिल्डिंग गिनाने की जगह यह बताना चाहिए कि उसने कितने नए शिक्षकों की भर्ती की, कितने शिक्षकों को स्थायी किया। कई कॉलेजों में तो प्राचार्य, सह प्राचार्य और कॉलेज प्रबंधक तक नहीं हैं।
शिक्षा से जुड़ी कोई एक प्रामाणिक संस्था का नाम बता दीजिए, जिसने दिल्ली सरकार के शिक्षा मॉडल की प्रशंसा की हो। डीयू में देशभर के सभी क्षेत्र, जाति, वर्ग, समुदाय, विभिन्न आर्थिक पृष्ठभूमि से छात्र आते हैं। दिल्ली सरकार के कॉलेज में एक ऐसा मॉडल तो चाहिए जो सभी छात्रों के लिए कारगर हो।
स्कूल हो या कॉलेज, उसकी साफ-सफाई, रख-रखाव पर खर्च करना एक बात है। लेकिन वहां शिक्षकों के प्रशिक्षण और शिक्षा स्तर बढ़ाने के लिए जिस तरह का प्रशिक्षण चाहिए, वह दिखाई नहीं देता। पैसा बचाकर दिल्ली सरकार देश को शिक्षा का कौन-सा मॉडल दे रही है। उसे बताना चाहिए।
आपने एक साक्षात्कार में कहा है कि दिल्ली सरकार से कॉलेज संभल नहीं रहे तो वह डीयू को वापस कर दे। इसकी प्रक्रिया क्या होगी?
प्रक्रिया तो यही हो सकती है कि दिल्ली सरकार लिखकर डीयू को दे कि वह इन कॉलेजों को चलाने में सक्षम नहीं है। उसके पास पैसों की कमी है। यदि ऐसा होता है तो हम शिक्षकों के सवालों को लेकर केंद्र सरकार से बातचीत तो कर सकते हैं। अभी हम दिल्ली सरकार के कॉलेजों का मामला लेकर जाते हैं तो हमें जवाब मिलता है कि यह विषय हमारे अधिकार क्षेत्र से बाहर है। दिल्ली सरकार बातचीत करने को राजी नहीं है। हमने कई बार बात करने की कोशिश की, पर कोई लाभ नहीं हुआ। डीयू इतने सारे कॉलेजों की व्यवस्था देख रहा है। उसमें 12 कॉलेज और जुड़ जाएंगे। यह बेहतर शिक्षा के पक्ष में होगा, लेकिन इसके बाद राजनीति की गुंजाइश नहीं बचेगी। डीयू को इन कॉलेजों को अपने अधिकार में ले लेना चाहिए।
आपको एक उदाहरण से समझाता हूं। किरोड़ीमल कॉलेज ट्रस्ट से चलता था। इसमें 95 प्रतिशत हिस्सा यूजीसी और 5 प्रतिशत ट्रस्ट का था। जब ट्रस्ट सहयोग देने में असमर्थ हो गया तो वह डीयू के अंतर्गत आ गया। इसी तरह, देशबंधु कॉलेज, राम लाल आनंद कॉलेज, दयाल सिंह कॉलेज ट्रस्ट द्वारा संचालित थे। लेकिन आज डीयू उनकी व्यवस्था देख रहा है न। उनका 100 प्रतिशत अनुदान यूजीसी दे रहा है। शिक्षक संघ के अध्यक्ष के नाते हमारी मुश्किल यह है कि 12 कॉलेजों के लिए दिल्ली सरकार के पास जाना पड़ता है, बाकि कॉलेजों के लिए यूजीसी के पास।
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