बिहार में एक अदभुत रहस्य सामने आया है। इस्लाम मत प्रारंभ होने के लगभग 600 वर्ष पहले के अशोक शिलालेख को जिहादियों ने मजार घोषित कर दिया है। अशोक शिलालेख को चून से पोत कर उसे मजार की शक्ल दी गई है। अब उस पर हरी चादर डालकर गत 15 वर्ष से सालाना उर्स मेला लगता है। यही नहीं, वहां एक बड़ी इमारत भी बना दी गई है। इस संबंध में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण और जिलाधिकारी के प्रयास भी विफल कर दिए गए।
भले ही कुछ लोग मानें या न मानें, लेकिन यह तथ्य सही है कि बिहार जिहाद की प्रयोग भूमि बन चुका है। लव जिहाद, जमीन जिहाद, ड्रग्स जिहाद और अब ऐतिहासिक विरासतों का जिहाद भी सामने आया है। एक सोची-समझी साजिश के तहत ऐतिहासिक विरासतों का इस्लामीकरण किया जा रहा है। यह मध्यकालीन युग की बात नहीं, बल्कि गत 15 वर्ष की बात है। बिहार के रोहतास जिले की चंदन पहाड़ी की कंदरा में महान मौर्य सम्राट अशोक के ऐतिहासिक शिलालेख पर मजार बना दी गई है। यह स्थान भले ही भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के पास हो लेकिन इससे जिहादियों को कहां फर्क पड़ने वाला है। उनकी नजर में तो हर स्थान और हर व्यक्ति को आज या कल इस्लाम की शरण में ही लाना है।
इतिहासकारों के अनुसार महान सम्राट अशोक का कार्यकाल ईसा पूर्व 272-232 तक माना जाता है। कलिंग युद्ध में हुए रक्तपात से विचलित होकर सम्राट अशोक ने शस्त्र का परित्याग कर दिया था और बौद्ध मत के संदेशों के प्रचार-प्रसार के लिए उन्होंने जगह-जगह पर ऐसे शिलालेख खुदवाये थे। देशभर में 8 स्थानों पर मौर्य सम्राट अशोक ने लघु शिलालेख लगवाये थे। इसमें एक शिलालेख सासाराम के पूरब चंदन पहाड़ी की एक गुफा में भी स्थित है। उस समय सामान्य व्यक्ति ब्राह्मी लिपि का प्रयोग करते थे। अधिक से अधिक लोग बुद्ध के संदेशों को आत्मसात कर सकें, इस कारण ये संदेश ब्राह्मी लिपि में उतकीर्ण करवाये गये। लेकिन अक्ल के अंधों को ऐतिहासिक और पुरातात्विक विरासत से क्या लेना-देना ? उन्होंने मात्र 23 साल में इस विरासत को मिटा दिया।
शिलालेख की घेराबंदी कर गेट में ताला लगा दिया। शिलालेख पर हरी चादर रखकर इसे किसी सूफी संत की मजार घोषित कर दिया गया। लगे हाथ सालाना उर्स का आयोजन भी शुरू हो गया। मामला मुस्लिम का था इसलिए बिहार के ‘सेक्युलर’ सरकार ने इस पर कुछ भी बोलना उचित नही समझा। इस शिलालेख की पहली पंक्ति थी- “एलेन च अंतलेन जंबुदीपसि” अर्थात जंबु द्वीप भारत में सभी संप्रदाय के लोग सहिष्णुता से रहें। लेकिन जिहादियों को इस संदेश से क्या लेना-देना ? उन्हें तो बस तलवार, प्रलोभन या धीमे जहर के माध्यम से सबको इस्लाम मतावलंबी बनाना है।
इस महत्वपूर्ण शिलालेख को वर्ष 1917 में संरक्षित किया गया। ए.एस.आई ने इस शिलालेख को वर्ष 2008 में संरक्षित स्मारक के रूप में अधिसूचित किया। वर्ष 2010 में जिहादियों ने इस बोर्ड को उखाड़कर फेंक दिया। एक बार फिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने संरक्षित स्मारक के रूप में अधिसूचित करने के संबंध में अनुशंसा भेजी परंतु कोई निष्कर्ष नहीं आया। उस समय एएसआई के तत्कालीन संरक्षक सहायक नीरज कुमार सिंह ने 2010-14 तक कई पत्र राज्य और केंद्र सरकार को लिखे। 2003 बैच के युवा आईएएस पदाधिकारी अनुपम कुमार जिलाधिकारी के तौर पर 2009 में सासाराम आए थे। उनका कार्यकाल साढ़े तीन वर्ष का रहा। अपने कार्यकाल में उन्होंने भी अथक कोशिश की कि यह अतिक्रमण मुक्त हो जाए। उन्होंने एसडीएम सासाराम को अतिक्रमण हटाने के लिए निर्देशित किया। तत्कालीन एसडीएम ने मरकजी दरगाह कमिटि से मजार की चाभी तत्काल प्रशासन को सौंपने का निर्देश भी दिया। लेकिन वोट बैंक की राजनीति के कारण ऐसा नहीं हुआ। शिलालेख पर उर्स मेला चलता रहा। अब वहां एक बड़ी इमारत बन गई है। एएसआई ने इस दौरान 20 से अधिक पत्र जिला प्रशासन को लिखे कि वहां किया जा रहा निर्माण कार्य अवैध और गैर कानूनी है। लेकिन पटना में बैठे आकाओं ने जिला प्रशासन के हाथ बांध दिए।
स्थानीय लोगों ने इस मामले में लगातार लड़ाई लड़ी। सासाराम के कोठा टोली मुहल्ले के रहने वाले 35 वर्षीय संतोष कुमार ने इस संबंध में पटना उच्च न्यायालय में केस भी किया है। सामाजिक कार्यकर्त्ता एवं त्रिनेत्र गुफा मंदिर समिति के अध्यक्ष शिवनाथ चौधरी इस मामले में लगातार सक्रिय हैं। वर्ष 2011 से ही वे इस मामले में संघर्ष कर रहे हैं। उन्होंने कहा, ” बिहार के मुख्यमंत्री को सिर्फ अपनी छवि की चिंता है। उन्हें ऐतिहासिक विरासतों से कोई लेना-देना नहीं है। तुष्टिकरण के कारण उन्होंने जिलाधिकारियों को सख्त कदम उठाने से रोक दिया। इसमें वर्तमान मुख्य सचिव भी कम दोषी नहीं हैं। छठ पूजा के बाद व्यापक संघर्ष की रणनीति स्थानीय लोग बना रहे हैं।”
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