कानून यदि किसी एक मजहबी संस्था को इतना मजबूत बना दे कि अन्य पंथों के लोग उसके सामने मजबूर होने लगें तो क्या उस कानून को पंथनिरपेक्ष कहेंगे? तमिलनाडु के त्रिची जिले के हिंदू बहुल गांव तिरुचेंदुरई के लोग इंसाफ मांग रहे हैं परंतु कानून आड़े आ रहा है।
कोई कानून यदि किसी एक मजहबी संस्था को इतना मजबूत बना दे कि अन्य पंथों के लोग उसके सामने मजबूर होने लगें तो क्या उस कानून को पंथनिरपेक्ष कहेंगे? तमिलनाडु के त्रिची जिले के हिंदू बहुल गांव तिरुचेंदुरई के लोग इंसाफ मांग रहे हैं परंतु कानून आड़े आ रहा है। इस गांव की सारी जमीन तमिलनाडु वक्फ बोर्ड ने अपने नाम कर ली है और असल जमीन मालिकों को पता भी नहीं। इतना ही नहीं, इस गांव में स्थित 1500 वर्ष पुराने मंदिर की जमीन भी वक्फ बोर्ड के नाम हो गई है।
दरअसल इसकी जड़ में कांग्रेस सरकार द्वारा 22 नवंबर, 1995 में लागू एक कानून है- वक्फ कानून। इस कानून के जरिए वक्फ बोर्ड को असीमित अधिकार मिल गए। बोर्ड जिस जमीन को अधिसूचित कर दे कि वह जमीन वक्फ की है तो उस जमीन के असल मालिक को साबित करना पड़ेगा कि वह जमीन वक्फ की नहीं है। और, जमीन के असल मालिक को यह साबित करने के लिए वक्फ बोर्ड के ही ट्रिब्यूनल में जाना होगा, वह सिविल कोर्ट में नहीं जा सकता। वक्फ ट्रिब्यूनल का फैसला आखिरी होगा। इसी कानून के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने याचिका दायर की है जिस पर सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई चल रही है।
मनमोहन सरकार ने बोर्ड को सौंपी थीं 123 संपत्तियां
कांग्रेस ने अपनी तुष्टीकरण नीति और मुस्लिम वोटबैंक हथियाने के लिए न सिर्फ 1995 में वक्फ कानून में संशोधन कर वक्फ बोर्डों को असीमित अधिकार दिए बल्कि बड़ी मात्रा में सरकारी जमीन भी वक्फ बोर्ड के हवाले करने में भी कोई कोताही नहीं की। डॉ. मनमोहन सिंह नीत यूपीए सरकार ने 2014 के लोकसभा चुनाव से ऐन पहले दिल्ली भू एवं विकास विभाग और दिल्ली विकास प्राधिकरण की 123 सरकारी संपत्तियों को वक्फ बोर्ड के हवाले कर दिया।
चुनाव से ठीक पहले मनमोहन सरकार ने 5 मार्च, 2014 को एक सरकारी गजट निकाला। इस गजट में कहा गया कि दिल्ली में भू एवं विकास कार्यालय की 61 और दिल्ली विकास प्राधिकरण की 62 संपत्तियां वक्फ बोर्ड को सौंप दी जाएंगी। यह गजट तब निकला, जब देश में चुनाव आचार संहिता लागू थी।
इस अधिसूचना के पहले बिंदु में कहा गया कि इन संपत्तियों के संदर्भ में सरकार, या डीडीए या किसी अन्य सरकारी विभाग की ओर से कोई मुआवजा नहीं दिया जाएगा।
दूसरे बिंदु में कहा गया कि सरकार या दिल्ली विकास प्राधिकरण के विरुद्ध दिल्ली वक्फ बोर्ड द्वारा किसी भी न्यायालय में दाखिल उक्त संपत्तियों से संबंधित वाद को पहले वापस लिया जाएगा।
यानी दिल्ली वक्फ बोर्ड ने सरकार पर संपत्तियों के लिए मुकदमा किया और मुकदमा वापस लेने के नाम पर सरकार वे संपत्तियां वक्फ बोर्ड को सौंप देती है। देश की जनता को दिखाने के लिए कहती है सरकार कोई मुआवजा नहीं देगी।
सरकारी जमीनों को वक्फ बोर्ड को सौंपने के फैसले के खिलाफ विहिप ने ने दिल्ली उच्च न्यायालय में अपील की थी, लेकिन उसकी अपील ये कहकर ठुकरायी गई थी कि सभी संबंधित पक्षों से बातचीत कर केंद्र सरकार फैसला करे। 2016 में डीडीए ने इस पर एक सदस्यीय समिति भी बनाई थी। अब ये मामला सर्वोच्च न्यायालय में है और सरकार का पक्ष मांगा गया है। इन 123 संपत्तियों में 29/1, जे पी हॉस्पिटल के भीतर पक्का मजार, 49/1, मस्जिद और कब्रिस्तान, तुर्कमान गेट, रामलीला ग्राउंड, इंडिया गेट के पास मान सिंह रोड पर 7/1 जपटा गंज मस्जिद, 4/1, इरविन रोड पर हनुमान मंदिर के पास मस्जिद, संसद भवन के पास 60/1 शामिल है।
अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि अंग्रेजों ने इस देश को लूटने और बांटने के लिए बहुत से कानून बनाए थे। स्वतंत्रता के पश्चात कांग्रेस ने भी राज करने, लूटने और बांटने के लिए बहुत से कानून बनाए। ऐसा ही एक कानून है 1995 में बना वक्फ कानून। वक्फ बोर्ड में सारे के सारे सदस्य मुस्लिम होते हैं। इस बोर्ड को इतने असीमित अधिकार दे दिए गए हैं कि अगर बोर्ड किसी भू स्वामी को एक आदेश या नोटिस दे दे तो वह उसके विरुद्ध नजदीकी न्यायालय में भी नहीं जा सकता। उसके विरुद्ध वक्फ के ट्रिब्यूनल में ही जाना होगा और अपनी सफाई उसी वक्फ को देनी होगी जिसने कहा कि जमीन उनकी है। यानी बोर्ड ही चोर, बोर्ड ही जांचकर्ता, बोर्ड ही वकील, बोर्ड ही जज। कांग्रेस सरकार ने अन्य किसी पंथ के लिए ऐसा कानून नहीं बनाया।
अपनी असीमित शक्तियों की आड़ में वक्फ बोर्ड कैसे भूमि जिहाद कर रहा है, यह बताने के लिए एक छोटा सा आंकड़ा पर्याप्त होगा। वर्ष 2009 में वक्फ बोर्ड की संपत्तियां चार लाख एकड़ जमीन पर फैली थीं। वक्फ मैनेजमेंट सिस्टम आफ इंडिया के आंकड़ों के मुताबिक इस वक्त वक्फ बोर्डों पास कुल 8 लाख 54 हजार 509 संपत्तियां हैं जो आठ लाख एकड़ से ज्यादा जमीन पर फैली हैं। यानी 13 वर्षों में वक्फ बोर्ड की संपत्तियां दोगुनी हो गई। कैसे?
वकील अश्विनी उपाध्याय बताते हैं कि वक्फ बोर्ड को इतना अधिकार दे दिया गया कि नोटिस जारी करने से पूर्व उसे जांच करने की भी आवश्यकता नहीं है। वक्फ बोर्ड देशभर में जहां भी कब्रिस्तान की घेरेबंदी करवाता है, उसके आसपास की जमीन को भी अपनी संपत्ति करार दे देता है। अवैध मजारों, नई-नई मस्जिदों की भी बाढ़ सी आ रही है। इन मजारों और आसपास की जमीनों पर वक्फ बोर्ड का कब्जा हो जाता है। उसे जिससे उगाही करनी होती है, उसे धमकाता है कि उसकी जमीन को वक्फ संपत्ति घोषित कर दी जाएगी।
डर के मारे वह व्यक्ति वक्फ अधिकारियों की जी-हुजूरी करने लगता है और फिर मनमाने शर्त मानने को मजबूर होता है। उन्होंने कहा कि वक्फ बोर्ड अपने असीमित अधिकारों के दुरुपयोग से गरीबों का कन्वर्जन करवा रहा है। वह आदिवासी इलाकों में लोगों की जमीन पर नोटिस देता है और जब व्यक्ति परेशान होता है तो उसे कहा जाता है कि अगर वह इस्लाम अपना ले तो जमीन बच जाएगी।
सेना और रेलवे के बाद सबसे ज्यादा जमीन वक्फ बोर्ड्स के पास है। सेना के पास करीब 18 लाख एकड़ जमीन पर संपत्तियां हैं जबकि देश में रेलवे की चल-अचल संपत्तियां करीब 12 लाख एकड़ में फैली हैं। इसे और अच्छे से समझना है तो मनन कीजिए इस बात पर कि वक्फ की संपत्तियों का फैलाव उत्तर प्रदेश के 17 जिलों जितना है।
उत्तर प्रदेश में मनमानी पर रोक
विहिप के विनोद बंसल कहते हैं कि भारत में हमारे अनगिनत मंदिर, मठ, गुरुद्वारे, गांव, घर, खेत-खलिहान को कब्जाने के लिए विभिन्न प्रकार के षड्यंत्र के तहत वक्फ बोर्ड काम कर रहा है। यदि इस कानून को ध्यान से अध्ययन करेंगे तो पता चलेगा कि वक्फ बोर्ड को असीमित अधिकार हैं। यह ऐसा षड्यंत्र है जिसके आड़ में भारत को पुन: कब्जाने का हथियार दिया हुआ है।
अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने कहा कि 1995 के कानून में बड़ी चालाकी से संशोधन करके पर्सन इंटेरेस्टेड को 2013 में पर्सन एग्रीड कर दिया गया। पर्सन इंटेरेस्टेड में शिया और सुन्नी आते हैं जबकि पर्सन एग्रीड में हिंदू एवं अन्य गैर मुस्लिम भी आते हैं। सेक्शन 40 में यह कहता है कि वक्फ बोर्ड किसी ट्रस्ट की संपत्ति को वक्फ संपत्ति घोषित कर सकता है। यह शक्ति सर्वोच्च न्यायालय के बराबर है।
सेक्शन 55 और 56 के तहत किसी की भी संपत्ति को अवैध घोषित कर सकता है। सेक्शन 89 में लिखा है कि वक्फ बोर्ड के खिलाफ कोई मामला दायर करना है तो आपको दो महीने पहले नोटिस देनी पड़ेगी। जो ब्रिटिश सरकार के समय कानून था वही वक्फ कानून में है। वक्फ कानून के सेक्शन 104 में कहा गया है कि जो इस्लाम नहीं मानता, वो भी वक्फ कर सकता है और यह कन्वर्जन को बढ़ावा देता है। इस समय पूरा पंजाब और हरियाणा वक्फ की समस्या से जूझ रहा है।
अंकुर शर्मा ने कहा कि वक्फ कानून जमीनों को हथियाने का हथियार है। यह भारतवर्ष के इस्लामीकरण का एक तंत्र है। जम्मू संभाग में वक्फ बोर्ड के जरिए हिन्दुओं की जमीन हथियाने का काम किया गया। 31 अगस्त 1985 में सरकार के साथ मिलकर यहां के वक्फ बोर्ड ने पुंछ में कुछ जगहों पर नोटिफाई कर दिया था। आप मान कर चलें कि पुंछ की आधा शहर वक्फ की संपत्ति घोषित कर दिया।
असल में वक्फ अधिनियम, 1995 जैसे काले कानून के रूप में न सिर्फ भू जिहाद को बढ़ावा दिया जा रहा है बल्कि इस संस्था को एकाधिकार प्रदान कर भारत भू संसाधन पर मुस्लिमों का वर्चस्व स्थापित किया जा रहा है। इसके साथ साथ इस अधिनियम के बहुतेरे प्रावधान ऐसे भी हैं, जिनका धर्मनिरपेक्ष भारत में कोई स्थान नहीं है।
वक्फ कानून 1995
सेक्शन 40 : अगर वक्फ बोर्ड को लगता है कि कोई संपत्ति उसकी है तो वो उसकी जांच कर सकता है और अगर बोर्ड ये मान ले कि ये संपत्ति उसकी है तो वो उस संपत्ति को वक्फ की संपत्ति घोषित कर सकता है ।
सेक्शन 54 : वक्फ बोर्ड सिर्फ किसी संपत्ति को वक्फ संपत्ति ही नहीं घोषित कर सकता, बल्कि वो उस संपत्ति पर अतिक्रमण को हटाने के लिए डीएम को भी कह सकता है। डीएम को ऐसी संपत्ति को खाली करवाना होगा।
सेक्शन 83 : वक्फ ट्रिब्यूनल के पास वैसे ही शक्तियां होंगी जैसे सिविल कोर्ट के पास होती है। ट्रिब्यूनल का फैसला फाइनल होगा। उसे सभी पक्षों को मानना होगा। ट्रिब्यूनल के फैसले के खिलाफ कोई अपील नहीं की जा सकती। सिर्फ उच्च न्यायालय को यह शक्ति होगी कि अगर कोई अपील करे या खुद से वो ट्रिब्यूनल के फैसले की वैधता जांच सकता है।
सेक्शन 85 : इसके तहत अगर कोई मामला वक्फ से जुड़ा हुआ है तो उसे किसी सिविल, राजस्व कोर्ट या किसी अन्य प्राधिकरण में चुनौती नहीं दे सकते। अगर आपकी संपत्ति को वक्फ घोषित कर दिया जाए तो आपको वक्फ ट्रिब्यूनल में जाना होगा।
सेक्शन 85 : अगर वक्फ बोर्ड ट्रिब्यूनल को आप संतुष्ट नहीं कर पाते कि ये आपकी ही जमीन है तो आपको जमीन खाली करने का आदेश दे दिया जाएगा। ट्रिब्यूनल का फैसला ही अंतिम होगा। कोई सिविल कोर्ट, वक्फ ट्रिब्यूनल कोर्ट के फैसले को बदल नहीं सकती है।
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