वक्फ बोर्ड: हिंदू जमीन पर वक्फ का कब्जा

तमिनलाडु में त्रिची के पास स्थित तिरुचेंदुरई गांव में लगभग 95 प्रतिशत हिंदू हैं और वहां 1,500 वर्ष पुराना एक मंदिर भी है। वक्फ बोर्ड ने चुपके से गांव की जमीन और मंदिर को वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया है

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आलोक गोस्वामी

यह किसी आश्चर्य से कम नहीं है कि अब वक्फ बोर्ड उस उस मंदिर पर भी कब्जा करने लगा है, जिसका निर्माण इस्लाम के जन्म से पहले हुआ था। एक ऐसा ही उदाहरण तमिलनाडु में देखने को मिला है। प्रदेश के त्रिची जिले के तिरुचेंदुरई गांव में 1,500 वर्ष पुराना मानेदियावल्ली समीता चंद्रशेखर स्वामी मंदिर है।

तिरुचेंदुरई गांव में प्राचीन मानेदियावल्ली समीता चंद्रशेखर स्वामी मंदिर, जिसे वक्फ बोर्ड ने ‘अपनी संपत्ति’ घोषित कर दिया है

यह किसी आश्चर्य से कम नहीं है कि अब वक्फ बोर्ड उस उस मंदिर पर भी कब्जा करने लगा है, जिसका निर्माण इस्लाम के जन्म से पहले हुआ था। एक ऐसा ही उदाहरण तमिलनाडु में देखने को मिला है। प्रदेश के त्रिची जिले के तिरुचेंदुरई गांव में 1,500 वर्ष पुराना मानेदियावल्ली समीता चंद्रशेखर स्वामी मंदिर है। मंदिर के पास अपनी 369 एकड़ जमीन भी है।

तमिलनाडु वक्फ बोर्ड ने इसे वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया है। बता दें कि इस्लाम लगभग 1,400 वर्ष पहले ही इस दुनिया में आया है। इसके लगभग 600 वर्ष बाद भारत में ‘वक्फ संपत्ति’ का चलन शुरू हुआ। इसलिए आज पूरे देश में चर्चा है कि इस मंदिर को वक्फ संपत्ति कैसे घोषित किया जा सकता है? लेकिन यह सच है।

तमिलनाडु के त्रिची जिले के 18 गांवों की पूरी जमीन, वक्फ बोर्ड ने अपने अधीन कर ली है। इन्हीं में एक है तिरुचेंदुरई गांव। तिरुचेंदुरई गांव की पूरी जमीन वक्फ की संपत्ति हो चुकी है। इसका खुलासा तब हुआ जब यहां के एक निवासी राजगोपाल ने अपनी जमीन बेचने की कार्रवाई आगे बढ़ाई। बता दें कि राजगोपाल की करीब एक एकड़ जमीन है, जिसे वे किसी राजराजेश्वरी को बेच रहे थे। राजगोपाल रजिस्ट्रार के दफ्तर गए तो उन्हें कहा गया कि जिस जमीन को वे अपना मानकर बेचने का इंतजाम कर रहे हैं, दरअसल वह तो वक्फ के मालिकाना हक में जा चुकी है। हैरानी की बात है, तिरुचेंदुरई गांव में सिर्फ राजगोपाल की ही नहीं, बल्कि सारी जमीन वक्फ के हाथ में जा चुकी है।

राजगोपाल ने बताया कि वहां के रजिस्ट्रार मुरली ने उनसे कहा कि जिस जमीन को वे बेचने की सोच रहे हैं, उस जमीन का असली मालिक तो वक्फ बोर्ड है। वक्फ बोर्ड के निर्देश हैं कि यह जमीन बेची नहीं जा सकती। फिर भी अगर उन्हें ऐसा करना है तो चेन्नै जाकर वक्फ बोर्ड के दफ्तर से अनापत्ति प्रमाणपत्र (एनओसी) लेकर आना होगा।

राजगोपाल ने सवाल किया कि उन्होंने 1992 में यह जमीन खरीदी थी, अब उसे बेचता हूं तो उससे पहले वक्फ बोर्ड से इजाजत क्यों लेनी होगी? लेकिन रजिस्ट्रार के पास इसका कोई जवाब नहीं था। राजगोपाल के बार-बार सवाल करने पर, रजिस्ट्रार ने तमिलनाडु वक्फ बोर्ड से आई 250 पृष्ठ की एक चिट्ठी उन्हें दिखा दी। रजिस्ट्रार ने साफ बताया कि तिरुचेंदुरई गांव में किसी भी तरह की जमीन को बेचने से पहले प्रदेश के वक्फ बोर्ड से एनओसी लाना होता है।

दुखी होकर राजगोपाल ने गांव वालों को पूरी बात बताई तो सब यह सुनकर चौंक गए। उन्हें समझ नहीं आया कि बुजुर्गों के जमाने से वे जिस जमीन में रहते आए हैं वह वक्फ बोर्ड की कैसे हो गई! असमंजस में पड़े गांव के लोग पूरा मामला जिलाधिकारी के सामने ले गए। जिलाधिकारी का कहना है कि इस मामले की जांच करने के बाद ही कह पाएंगे कि इसमें क्या कार्रवाई की जा सकती है।

इस पूरे प्रकरण पर त्रिची के भाजपा नेता अल्लूर प्रकाश आक्रोश में कहते हैं, ‘‘तिरुचेंदुरई गांव हिंदू बहुल है, किसानों का इलाका है। आखिर वक्फ बोर्ड का तिरुचेंदुरई से कैसा भी सरोकार कैसे हो सकता है?’’ इस पूरे प्रकरण पर वकील विष्णुशंकर जैन कहते हैं, ‘‘वक्फ कानून-1995 ने वक्फ बोर्ड को इतनी ताकत दे दी है कि वह किसी भी संपत्ति को ‘अपनी’ घोषित कर सकता है। इसलिए इस कानून को जल्दी से जल्दी खत्म करने की जरूरत है।’’

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