उइगरों के उत्पीड़न के मुद्दे पर चीन दुनिया भर में घिरता जा रहा है। कम से कम पश्चिमी देश तो चीन की बर्बरता से अनजान नहीं ही रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद मानवाधिकार उल्लंघन का खुलासा करने वाली गत 31 अगस्त को जारी हुई रिपोर्ट ने सिलसिलेवार तरीके और दस्तावेजी सबूतों के आधार पर बताया ही है कि कैसे सिंक्यांग में चीन की कम्युनिस्ट सत्ता उइगरों पर दमन चक्र चलाए हुए है। इसलिए अब विभिन्न मंचों से यह मांग उठनी तेज हो गई है कि बीजिंग को सही राह पर लाने के लिए कड़े कदम उठाने का वक्त आ पहुंचा है।
न्यूयार्क में इन दिनों संयुक्त राष्ट्र की महासभा चल रही है। इस मौके पर एक अलग स्थान पर अनेक राजनयिकों और मानवाधिकारी एक्टिविस्ट की एक बैठक हुई है। इसमें चर्चा चीन में उइगर मुस्लिम व अन्य अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न पर केन्द्रित रही। सभी नेताओं और कार्यकर्ताओं ने इस बात पर सहमति जताई कि चीन चाहे जितना अपने पर लगे इस दाग को नकारता रहे लेकिन सच यही है कि अगर उसे यह सब करने से अभी नहीं रोका जाता तो कहीं देर न हो जाए।
न्यूयार्क में राजनयिकों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की इस बैठक में स्पष्टतः चीन के विरुद्ध इस मुद्दे को लेकर कोई कड़ा कदम उठाए जाने की मांग की गई। 19 सितम्बर को इस अटलांटिक काउंसिल एंड ह्यूमनराइट वाच की तरफ से आयोजित की गई इस बैठक में चर्चा में संयुक्त राष्ट्र में अल्पसंख्यक वर्गों के अधिकारों से संबंधित अधिकारी फर्नांड वरेनेस का कहना था कि चीन में मानवाधिकार उल्लंघन को लेकर अगर अब भी ढिलाई दिखाई जाती रही तो यह ठीक नहीं होगा।
उनका कहना था कि अगर हमने इस मामले पर कोई कार्रवाई नहीं की और इसे अनदेखा रहने दिया तो इसका गलत संदेश जाएगा। बैठक में शामिल हुए संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका के उप राजदूत जेफरी प्रेसकोट का कहना था कि अगर इस संबंध में कोई ठोस निर्णय न लिया गया, तो इससे इस अंतरराष्ट्रीय मंच की साख को धक्का लगेगा।
जैसा पहले बताया, चीन के सिंक्यांग प्रांत में पिछले अनेक वर्षों से उस देश में अल्पसंख्यक उइगर मुसलमानों के साथ ही दूसरे अल्पसंख्यक समुदायों को बर्बरता का शिकार बनाए जाने को लेकर विश्व भर में अनेक संगठन, मंच, फोरम और राजनीतिक दल आवाज उठाते आ रहे हैं। उइगर मुस्लिमों को यातना शिविरों में रखा जाता है, उनसे बंधुआ मजदूरी कराई जाती है, उइगर महिलाओं की नसबंदी की जाती है, उन्हें यौन दुर्व्यवहार का शिकार बनाया जाता है।
उल्लेखनीय है कि संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार परिषद की तत्कालीन अध्यक्ष मिशेल बचलेट खुद सिंक्यांग के दौरे पर गई थीं, वहां के हाल देखे थे, उसके बाद उन्होंने ही अपने कार्यकाल के आखिरी दिन 31 अगस्त को यह चीन के प्रति बेहद कड़ी रिपोर्ट जारी की थी। हालांकि, चीन ने इस रिपोर्ट को बेबुनियाद बताया था और इसकी प्रामाणिकता को संदिग्ध बताया था।
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