काशी विद्वत परिषद के अध्यक्ष पद्मश्री प्रोफेसर रामयत्न शुक्ल नहीं रहे। उनके निधन के साथ ही संस्कृत व्याकरण एवं वांग्मय सहित विद्वत परम्परा के एक युग का अवसान हो गया। संस्कृत और वेद-वेदांग के मर्मज्ञ प्रोफेसर शुक्ल को 2021 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। आचार्य शुक्ल अष्टाध्यायी की वीडियो रिकार्डिंग करा कर नई पीढ़ी को संस्कृत का निःशुल्क ज्ञान देने का प्रयास आखिरी समय तक करते रहे। इसके लिए उन्हें 2015 में संस्कृत भाषा का शीर्ष सम्मान विश्व भारती प्रदान किया गया था।
प्रोफेसर रामयत्न शुक्ल का जन्म भदोही में वर्ष 1932 में हुआ था। उनके पिता राम निरंजन शुक्ल भी संस्कृत के विद्वान थे। प्रोफेसर रामयत्न शुक्ल लंबे समय से बीमार चल रहे थे। उन्हें दो दिन पहले ब्रेन हैमरेज के बाद एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था जहां 90 वर्ष की आयु में आज मंगलवार को उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके निधन की सूचना मिलते ही वाराणसी के शंकुलधारा स्थित उनके आवास पर विद्वानों, छात्रों और उनके शुभचिंतकों का तांता लग गया।
प्रोफेसर शुक्ल ने धर्म सम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज और स्वामी चैतन्य भारती से वेदांत शास्त्र, हरिराम शुक्ल से मीमांसा और पंडित रामचंद्र शास्त्री से दर्शन व योग शास्त्र की शिक्षा प्राप्त की थी। आचार्य शुक्ल बीएचयू के संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय में आचार्य रहे। वह संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में व्याकरण विभाग के आचार्य और अध्यक्ष भी रहे थे।
विद्वत जगत मर्माहत
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के संस्कृत विद्या एवं धर्म विज्ञान संकाय पूर्व अध्यक्ष और श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर न्यास के पूर्व अध्यक्ष प्रकाण्ड ज्योतिषी प्रो. चंद्रमौलि उपाध्याय ने कहा कि प्रो. शुक्ल को काशी में आधुनिक पाणिनी के नाम से जाना जाता था। विद्वान होने के साथ ही सहृदयता, सरलता और सहजता उनकी विलक्षण प्रतिभा थी। उनके जाने से भारत की एक विद्वत परंपरा का अवसान हुआ है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के संस्कृत विद्या एवं धर्म विज्ञान संकाय के प्रोफेसर विनय पांडे ने कहा कि प्रो. शुक्ल का निधन संस्कृत जगत की अपूरणीय क्षति है। वे संस्कृत व्याकरण और दर्शन के निष्णात विद्वान थे। उनका व्यक्तित्व ऐसा था जिसमें सबकुछ समाहित था, बिल्कुल परमहंस थे, जिन्हें आज के युग में ऋषि कह सकते हैं। उनके मन में किसी के प्रति राग-द्वेष नहीं था। शास्त्र और संस्कृत के प्रति समर्पित व्यक्ति थे। देश-विदेश में संस्कृत अध्यापकों की एक पूरी श्रृंखला उन्होंने खड़ी की।
आचार्य शुक्ल के निधन पर श्रीकाशी विद्वत परिषद के महामंत्री प्रो. राम नारायण द्विवेदी ने कहा कि काशी के विद्वत समाज का एक सूर्य अस्त हो गया। आचार्य शुक्ल की भरपाई कभी नहीं हो सकती है। संस्कृत व्याकरण के वह मूर्धन्य विद्वान थे। उधर, संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. हरेराम त्रिपाठी ने कहा कि संस्कृत जगत की यह बहुत बड़ी क्षति है। इस उम्र में भी आचार्य शुक्ल जिस तरह से युवाओं को संस्कृत का ज्ञान बांटते थे, वैसा उदाहरण कहीं और देखने को मिला। गुरुवर आचार्य शुक्ल जी संस्कृत जगत के आभिवावक, शास्त्रों के सूर्य थे।
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