ईरान एक बार फिर से जल रहा है, और यह आग कहीं बाहर से नहीं लगी है, बल्कि यह आग इन्साफ के लिए लड़ाई लड़ती महिलाओं की आग है। यह आग उन आंसुओं की है जो लगातार न जाने कितने वर्षों से बह रहे हैं, परन्तु दुर्भाग्य की बात है कि “यूनिवर्सल सिस्टरहुड” का नारा देने वाली वामपंथी हिन्दू फेमिनिस्ट लेखिकाएं इस आग की ताप भी अनुभव नहीं कर पा रही हैं।
वहां पर लड़कियां अपने मूलभूत अधिकार अर्थात सिर को खुला रखने के अधिकार के लिए लड़ रही हैं, वह चाहती हैं कि उनके बाल भी हवा में लहराएं, उनके बालों को भी सूरज की धूप मिले, उनके बाल भी बातें करें, परन्तु उन्हें यह अधिकार नहीं है। सरकार की ओर से उन्हें यह आदेश है कि उन्हें अनिवार्य हिजाब पहनना ही है।
यह लड़ाई अनिवार्य हिजाब के खिलाफ लड़ाई है और इस लड़ाई में रह रह कर आंच तेज इसलिए होती रहती है क्योंकि इनमें किसी न किसी लड़की की आहुति पड़ जाती है। यह स्वतंत्रता का यज्ञ है, जिसमें लडकियां स्वयं को बलिदान कर रही हैं, परन्तु उनकी पीड़ा से उस देश की कथित फेमिनिस्ट पूरी तरह से अनजान हैं, जहां पर स्त्रियों को सदा से स्वतंत्रता रही थी।
क्यों हो रहा है विरोध?
आखिर फिर से विरोध क्यों आरम्भ हो गया है? दरअसल गुस्सा उपजा है ईरान में एक ऐसी युवती की मृत्यु से जो और कुछ नहीं बस अपना चेहरा ही दिखाना चाहती थी। वह बस अपनी ज़िन्दगी जीना चाहती थी। महसा अमीनी, जी हां, यही नाम था। उसे केवल इसीलिए मार डाला गया, क्योंकि उसने हिजाब पहनने से इंकार कर दिया था। ईरान में महिलाओं के पास यह आजादी है ही नहीं, कि वह हिजाब से मुक्त होकर बाहर निकल सकें! वह इसी खूनी क़ानून का विरोध कर रही थी!
परन्तु क्या अपने मन से ज़िन्दगी जीना ही इतनी बड़ी बात है कि उसे मरना पड़े! शायद ईरान में ऐसा है, फिर भी दुर्भाग्य यही है कि भारत में जरा सी बात पर हंगामा मचाने वाली फेमिनिस्ट एवं कथित रूप से औरतों के दर्द में आंसू बहाने वाली फेमिनिस्ट ब्रिगेड ने इस विषय में अपना मुंह नहीं खोला है। उन्हें यह नहीं पता है कि ईरान में महासा अमीनी ईरान की राजधानी तेहरान घूमने के लिए गयी थी तो उन्हें मोरल पुलिस ने पकड़ लिया। और यह आरोप लगाया कि उन्होंने इस्लामी क़ानून के अंतर्गत कपड़े नहीं पहने हुए हैं।फिर उन्हें उस मोरल पुलिस ने मारा-पीटा और उसके बाद अस्पताल में उसकी मृत्यु हो गयी।
This photo is taken an hour before she got beaten and arrested by morality police in Iran for the crime of wearing “bad hijab” and now she is in a coma.
Why this tragedy is not in the front page of international media?
Are you worried about Islamophobia? Don’t! Her life matters. pic.twitter.com/geY5gFmLiF— Masih Alinejad 🏳️ (@AlinejadMasih) September 16, 2022
जैसे ही उसकी मृत्यु का समाचार आया वैसे ही विद्रोह की चिंगारी भड़क गयी और पूरे ईरान में फैल गयी। लोग सड़कों पर उतर आए और नारे लगाने लगे कि “तानशाह की मौत हो!”
Protest continues across Iran after the death of Masha Amini by Police.
Iranian men and women protest in the city of Sanandaj.
Protesters chant: Death to the Dictator!
Sanandaj residents have been commemorating Masha Amini since Friday.#MahsaAmini pic.twitter.com/DBmiDcBWVX
— Fazila Baloch🌺☀️ (@IFazilaBaloch) September 18, 2022
इतना ही नहीं वहां पर महिलाओं में इतना गुस्सा है कि लोग महसा अमीनी के समर्थन में अपने बाल तक काट रही हैं।
हिजाब जलाती ईरान की महिलाएं। #MahsaAmini की हत्या के विरोध में ईरानी महिलाओं ने जलाया हिजाब।
दुनियांभर से मिल रहा है समर्थन। pic.twitter.com/a2RZ2paF29
— Hitesh Shankar (@hiteshshankar) September 18, 2022
यह बहुत ही हैरान करने वाली बात है कि भारत में एक बड़ा वर्ग पूरी तरह से उन घटनाओं के विषय में आंखें मूंदे खड़ा है, जो पूरी दुनिया को हिलाए हुए हैं। तेहरान यूनिवर्सिटी के विद्यार्थी भी उतरे हुए हैं, वह भी विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं, ईरानी गुस्से में हैं, मगर उनकी व्यथा पर भारत में कोई बात ही नहीं हो रही है?
आखिर बात क्यों नहीं हो रही है? क्या इसलिए क्योंकि पीड़ित लडकियां इस्लाम की कट्टरता पर प्रश्न उठा रही हैं? या फिर इसलिए क्योंकि यहां की फेमिनिस्ट तो बुर्का और हिजाब के समर्थन में हैं। वह चुपचाप कर्नाटक की उन कट्टरपंथी लड़कियों और ताकतों के पक्ष में जाकर खड़ी हैं जो इस बात के लिए लड़ाई लड़ रही हैं कि हिजाब अर्थात स्थाई रूप से सिर को ढकना तो इस्लाम का जरूरी तत्व है। उन्हें इस बात से कोई भी फर्क नहीं पड़ता है कि सुदूर ईरान में जहां पर सिर ढका रहना कानूनन जरूरी है, वहां पर इकट्ठे होकर लडकियां और महिलाएं आजादी की मांग कर रही हैं?
ये वही आजादी है, जो भारत में मिली हुई है, क्योंकि भारत में सेक्युलर लोकतंत्र है फिर भी यहां की फेमिनिस्ट महसा अमीनी के पक्ष में न जाकर उस मुस्कान के पक्ष में खड़ी हो जाती हैं, जिनके कारण भारत में भी कोई महसा अमीनी कट्टरपंथ का शिकार हो सकती है? यह क्या है? यह क्यों है? इतना दोगलापन क्यों है? भारत की फेमिनिस्ट भारत में ही महसा अमीनी के लिए संभावनाओं का निर्माण कर रही हैं, क्या वह चाहती हैं कि जिस प्रकार अनिवार्य हिजाब के भीतर ईरान की लड़कियों के सपने दम तोड़ रहे हैं, उसी प्रकार भारत की मुस्लिम लड़कियों के सपने भी दम तोड़ें? क्योंकि इस्लाम का अनिवार्य अंग साबित होने पर उसका पालन भी अनिवार्य हो जाएगा और फिर लडकियां उसी तरह से कैद हो जाएंगी जैसे वहां पर हो रही हैं, ये महिलाएं क्यों उन हिजाब को जलाती हुई महिलाओं के साथ नहीं हैं, यह प्रश्न बार बार उभरता है, परन्तु फेमिनिस्टों के पास न ही उत्तर है और न ही तर्क! है तो बस ओढी हुई बेशर्म मानसिकता, जो अंतत: एक ऐसी अंधी सुरंग में जाती है, जहाँ पर काले बुर्के का अन्धेरा ही अन्धेरा है!
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