पटना के सेंट जोसेफ स्कूल में हिंदू शिक्षिकाओं को वहां की प्राचार्य इसलिए फटकार लगाती हैं कि वे सिंदूर और बिंदी लगाकर विद्यालय आती हैं। इस कारण कई शिक्षिकाओं ने नौकरी छोड़ दी है।
पटना के प्रतिष्ठित सेंट जोसेफ कॉन्वेंट की शिक्षिकाएँ दहशत में हैं। इस दहशत का कारण कोई और नहीं, बल्कि स्कूल की प्रिंसिपल सिस्टर जोसेफिन हैं। उन्होंने विद्यालय में एक प्रकार से हिंदू शिक्षिकाओं को अपमानित करने का बीड़ा उठा रखा है। विद्यालय में कोई शिक्षिका अगर सिंदूर या बड़ी बिंदी लगाकर आ जाए तो उसकी खैर नहीं। बता दें कि इस वर्ष 30 अगस्त को हरितालिका तीज व्रत था। 31 अगस्त को व्रत का पारण था। कुछ शिक्षिकाएं सिंदूर की लंबी लकीर लगाकर आई थीं। उन्हें देखते ही प्रिंसिपल महोदया भड़क गईं। उन्होंने तुरंत सिंदूर की लकीर कम करने का आदेश दिया। शिक्षिकाओं को बहुत बुरा लगा। चूंकि वे प्रिंसिपल हैं, इस कारण कुछ शिक्षिकाओं ने उनकी बात मान ली, लेकिन कुछेक शिक्षिकाओं ने उनके आदेश की उपेक्षा कर दी। बाद में ऐसी शिक्षिकाओं को उन्होंने काफी भला-बुरा कहा।
एक शिक्षिका ने बताया कि जबसे सिस्टर जोसेफिन इस विद्यालय में आईं हैं तबसे हिंदू प्रतीक चिन्हों को लेकर वे आक्रोश में रहती हैं। वे 2019 में इस विद्यालय की प्रिंसिपल बनकर आईं। 2020 और 2021 तो कोरोना की भेंट चढ़ गए। लेकिन कोरोना काल की समाप्ति के बाद उनका स्वभाव सबके ध्यान में आया। उनके व्यवहार से खिन्न होकर कई प्रतिष्ठित शिक्षिकाओं ने विद्यालय छोड़ दिया। नई नियुक्ति में भी वे ईसाई शिक्षिकाओं को ही तवज्जो देती हैं। पिछले 3 वर्ष में नियुक्त होने वाली शिक्षिकाओं में एक प्रकार से सिर्फ ईसाई शिक्षिकाएं हैं। तीज के दिन उन्होंने शिक्षिकाओं को छुट्टी देने से मना कर दिया। आधे दिन की छुट्टी से भी मना करना उनका स्वभाव है। ईएल और सीएल किसी भी कर्मचारी का अधिकार होता है। परंतु ऐसे अवकाश भी उनकी मर्जी से ही लिए जा सकते हैं।
बता दें कि भारत में लॉर्ड मैकाले की शिक्षा नीति पर अमल करते हुए अंग्रेज शासकों ने यहां अंग्रेजी विद्यालयों का जाल बिछाना शुरू किया। बिहार में भी 1850 के आसपास पटना में दो विद्यालय प्रारंभ हुए। एक सेंट जोसेफ कॉन्वेंट स्कूल बांकीपुर में और दूसरा सेंट माइकल स्कूल दीघा में। धीरे धीरे इनकी प्रसिद्धि बढ़ने लगी। लिहाजा हर अभिभावक इन विद्यालयों में अपने बच्चों का नामांकन कराने को आतुर रहता है।
1849 में, बिशप अनास्तासियस हार्टमैन ने बांकीपुर में लगभग पाँच एकड़ भूमि का अधिग्रहण कर 23 सितंबर, 1849 को एक चैपल की नींव रखी। 1850 में रोमन कैथोलिक चर्च, सेंट जोसेफ खोला गया था।
1852 में पटना के बिशप अनास्तासियस हार्टमैन के निमंत्रण पर जर्मनी से वर्जिन मैरी सिस्टर्स की पांच बहनें पटना आईं। ये पांच बहनें थीं मारिया ग्रोएपनर, एंजेला हॉफमैन, एलोसिया माहेर, एंटोनिया फेथ और कैथरीन श्राइबमैन। बहनें जहाज से बॉम्बे उतरीं और फिर पटना के लिए निकलीं। उन्होंने घने जंगलों के बीच बैलगाड़ी से बंबई से पटना तक की यात्रा की। 6 माह बैलगाड़ी से यात्रा कर फरवरी, 1853 के आसपास पटना पहुंचीं। उन्हीं दिनों गंगा नदी के तट पर यह विद्यालय स्थापित हुआ। उस समय कलकत्ता और आगरा के बीच सेंट जोसेफ एकमात्र कॉन्वेंट था। प्रारंभ में विद्यालय परिसर में विद्यालय के अतिरिक्त दो अनाथालय थे। एक देशी लड़कियों के लिए और दूसरी यूरोपीय और यूरेशियन लड़कियों के लिए। संस्थान धीरे-धीरे समय के साथ बढ़ता गया।
समय समय पर इन विद्यालयों के चर्चे भी खूब होते हैं। 2006 – 07 में पटना के नोट्रेडम स्कूल का मामला मुख्यमंत्री के जनता दरबार तक पंहुचा था। विद्यालय के एक दरबान का आरोप था कि विद्यालय द्वारा उसे ईसाई बनाने की कोशिश की जा रही है। ऐसा नहीं करने पर उसके बच्चों को प्रताड़ित किया जाता है। पहले उस दरबान को नौकरी से और बाद में उसके बच्चों को विद्यालय से बाहर कर दिया गया था।
बहरहाल इस सेंट जोसेफ कॉन्वेंट स्कूल की प्रिंसिपल के हिंदू विरोधी रवैए से हर हिंदू मर्माहत है। जीवित्पुत्रिका व्रत रखनेवाली शिक्षिकाओं को डर है कि कहीं विलंब होने पर या अन्य कारणों से उन्हें फिर प्रताड़ित तो नहीं किया जायेगा।
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