न भूलने वाला पल
रिश्ते में हमारी एक ननद थीं। मुसलमान उनको नाते-रिश्तेदारों के बीच से उठाकर ले गये थे। हिन्दुओं ने अपनी आंखों के सामने बहन-बेटियों पर जुल्म होते देखा।
मीरा चितकारा
फ्रंटियर, बन्नू, पाकिस्तान
बंटवारे के समय मैं यही कोई छह-सात साल की थी। पिताजी वकालत करते थे। बहुत अच्छा काम चलता था। जहां तक मुझे याद है माहौल भी ठीक-ठाक था उन दिनों, लेकिन विभाजन का शोर जब उठना शुरू हुआ तो एकाएक माहौल में परिवर्तन आ गया।
पिताजी बाहर ही रहते थे। जब घर आते थे तो बाहर के हालात के बारे में सब कुछ बताते थे। घर से लेकर गांव और पड़ोस के शहरों से उन्माद भरी खबरें आनी शुरू हो गईं।
हमें खूब याद है कि जब हम घर से बाहर निकलते थे तो शोर मचता था, ‘भागो-भागो, मारने के लिए मुसलमान आ गए।’ जैसे ही यह शोर मचता था तो घर के बच्चों को एक कमरे में बंद कर दिया जाता।
कमरे में ही खाने-पीने का सामान रख दिया जाता। और हम कई-कई घंटे कमरे में ही बंद रहते थे। मतलब बहुत डर की स्थिति हो गई थी। इलाके के हिन्दू बुरी तरह डरे हुए थे।
मेरे पिताजी का इलाके में बहुत रुतबा और सम्मान था। इसलिए मुसलमानों ने यहां तक कह दिया था कि हम इनको छोड़ेंगे नहीं, क्योंकि यदि ये जिंदा चले गये तो हमारे खिलाफ बहुत तेजी से आवाज उठाएंगे। इसलिए वे हमारे परिवार को लगातार परेशान कर रहे थे। एक तरह से कहें तो जीना मुश्किल कर दिया उन्होंने।
हालत यह थी कब, किसकी जान पर बन आए, किसी को कुछ पता नहीं था। और अंतत: ऐसी स्थिति में घर छोड़ना ही पड़ा। कोई कैसे रह सकता है ऐसे माहौल में, जहां एक-एक सांस लेने में समस्या हो। यह अकेले मेरे परिवार की स्थिति नहीं थी। इलाके के सभी हिन्दू-सिख परिवार डरे हुए थे। सभी जान बचाने के लिए भाग रहे थे।
एक घटना जो मुझे बाद में पता चली। रिश्ते में हमारी एक ननद थीं। मुसलमान उनको नाते-रिश्तेदारों के बीच से उठाकर ले गये। जिहादियों का झुंड घर में घुसकर मारकाट करने लगा। सभी के पास हथियार थे। उन्होंने ननद का अपहरण कर लिया और ले जाने लगे। इतने में परिवार के लोग उन्हें बचाने के लिए पीछे भागे तो जिहादियों की ओर से अंधाधुंध गोलीबारी की गई। और इसी गोलीबारी के बीच मुसलमान ननद को उठाकर ले गए।
यानी हिन्दुओं ने अपनी आंखों के सामने बहू-बेटियों पर जुल्म होते देखा और कुछ नहीं कर पाए। इस परिवार पर दुखों का पहाड़ तब एक बार और टूटा जब जिहादी उनके एक बेटे को भी उठाकर ले गये और जान से मार डाला। बहुत ही क्रूर थे वहां के मुसलमान।
आज जब कभी पुराने दिनों की याद आती है, तो रोना आ जाता है। जख्म उभर आते हैं। भगवान कभी किसी को ऐसे दिन ना दिखाए, जो दिन विभाजन के दौरान हिन्दू और सिखों ने मुसलमानों के पाकिस्तान में देखे।
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