बिहार में महागठबंधन के वरिष्ठ नेताओं की जुबान से शालीनता गायब हो चुकी है। निर्लज्जतापूर्वक अपनी नाकामयाबी विपक्ष के ऊपर मढ़ा जा रहा है। 13 सितंबर को बेगूसराय में 28 किमी तक फायरिंग होती रही। 2 बाइक पर 4 अपराधी थे। 5 थाना क्षेत्र में मुख्य मार्ग पर अपराधियों ने गोलियां बरसाईं और पुलिस को मालूम नहीं कि गोली किस हथियार से चली? बछवाड़ा से लेकर बार चकिया थाना क्षेत्र के राजेंद्र सेतु तक अपराधियों ने गोलीबारी की। यह समय था कि बिहार की कानून व्यवस्था पर सर्वदलीय बैठक बुलाने का। आखिर अपराध की घटनाएं रुक क्यों नहीं रही हैं, लेकिन सत्ता समीकरण में उलझे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गोली में भी जाति ढूंढ ली। इस घटनाक्रम पर उनकी प्रतिक्रिया थी कि पिछड़े और मुस्लिम इलाकों को जानबूझकर चुना गया था। उन्हीं की पार्टी के एक अन्य नेता का बयान था कि आखिर इस गोलीबारी में कोई अगड़ा क्यों नहीं मरा?
बिहार के पूर्व डीजीपी अभयानंद बताते हैं कि बैलेस्टिक सबसे ठोस साक्ष्य होता है। पुलिस अगर किसी संदिग्ध को गिरफ्तार करती है तो उसे गन शॉट रेसिड्यू से पक्का किया जाता है। फायरिंग के समय बारूद का कुछ हिस्सा गोली चलानेवाले व्यक्ति के हाथ में जम जाता है। इसी से मृत या घायल व्यक्ति के कपड़े या शरीर का मिलान कराया जाता है। परंतु बिहार की पुलिस तो शराब और बालू के चक्कर में है। वह तो यह भी पता नहीं कर पाई कि गोली किस हथियार से चली, देसी कट्टे से या पिस्टल से? जबकि खोखा पर पिन का निशान और घायल या मृत व्यक्ति का घाव बहुत कुछ बता देता है। जबकि विशेषज्ञ बताते हैं कि सामान्य समझ रखने वाला व्यक्ति भी बता देगा कि पिस्टल की गोली से छोटा घाव होता है और देसी कट्टे से बड़ा घाव। मगर जब प्रशासन में राजनीति घुसेड़ दी जाए तो अपराध थमता कहां है?
गोलीबारी के शिकार लोगों के नाम ही नीतीश कुमार के वक्तव्य की असलियत बताते हैं। इस अंधेरगर्दी में एक भी मुसलमान घायल नहीं हुआ। घायलों में सभी जाति वर्ग के लोग थे। एक मृतक धानुक जाति का मजदूर था। फिर भी मुख्यमंत्री की मंशा समझ से परे है।
बिहार के बुद्धिजीवी मुख्यमंत्री के वक्तव्य से हतप्रभ हैं। लोगों को विश्वास ही नहीं हो रहा है कि ये वही नीतीश हैं जिन्होंने 2005 में अपराध नियंत्रण के लिए डीजीपी को खुली छूट दे दी थी। अपराधियों पर कड़ी नजर रखी जाती थी। जिले में अपराध से जुड़ी बैठकों में एसपी, डीआईजी के साथ सरकारी वकील और अन्य प्रबुद्ध जनों को रखा जाता था। बिहार के वरिष्ठ पत्रकार और बीबीसी के पूर्व संवाददाता मणिकांत ठाकुर इसे पूरी तरह से प्रशासनिक विफलता मानते हैं। उनके अनुसार इस तरह से अराजकता का प्रदर्शन पहले कभी नहीं हुआ था। सरकार अपनी विफलता को गलत मोड़ देकर छिपाने की कोशिश कर रही है। सरकार द्वारा ऐसी घटना में जातीय पक्ष ढूंढना उसकी राजनैतिक विफलता को भी बताता है।
जिस दिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपराध की घटना में राजनीतिक लाभ-हानि ढूंढ रहे थे, उसी दिन राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और महागठबंधन के प्रमुख घटक हम (से) के प्रमुख जीतनराम मांझी ने एक और बेतुका बयान दे दिया। हाजीपुर में कुछ दिन पहले एक 13 वर्षीय बालिका का सामूहिक बलात्कार हुआ था। मांझी ने कहा कि ज्यादा बर्तन होने पर ढनमनाता है। उनके कहने का मतलब था कि ज्यादा आबादी होने पर बलात्कार की घटना होगी ही। अपराध नियंत्रण की बात न करके ये लोग अपने ढंग से घटनाओं का विश्लेषण कर रहे हैं। वरिष्ठ पत्रकार अमित कुमार दुबे ने इन बयानों के संदर्भ में कहा कि ऐसे राजनेता ही बिहार में अराजक माहौल के लिए जिम्मेदार हैं।
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