विक्रांत का अर्थ है— विजयी एवं वीर। ब्रिटेन से खरीदे गए पहले विमानवाहक पोत ‘एचएमएस हरक्यूलिस’ का नाम भी आईएनएस विक्रांत रखा गया था, जिसने पाकिस्तान के साथ 1971 के युद्ध में अहम भूमिका निभाई थी। यह 1997 में सेवानिवृत्त हुआ था। उसी के प्रति प्रेम और गौरव की भावना को प्रदर्शित करने के लिए इसका नाम ‘आईएनएस विक्रांत’ रखा गया।
भारतीय नौसेना को स्वदेशी और अब तक का सबसे बड़ा अत्याधुनिक स्वचालित यंत्रों वाला विमानवाहक पोत ‘आईएनएस विक्रांत’ मिल गया है। साथ ही नया ध्वज भी मिला है। पहले नौसेना के ध्वज में तिरंगे के साथ अंग्रेजी शासन का प्रतीक लाल क्रॉस भी था, जिसे हटा दिया गया है। नए ध्वज में तिरंगा तो है ही, अशोक चिह्न के साथ लंगर व अष्टकोण भी हैं। यह अष्टकोण आठ दिशाओं का प्रतीक है, जिसे छत्रपति शिवाजी महाराज की राजमुद्रा से लिया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2 सितंबर को कोचीन शिपयार्ड में एक भव्य समारोह में आईएनएस विक्रांत को नौसेना को सौंपा।
इस युद्धपोत के निर्माण के साथ अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस व ब्रिटेन के बाद भारत विश्व का ऐसा छठा देश बन गया है, जो 40 हजार टन का भारी-भरकम और विशालकाय विमानवाहक पोत बनाने की क्षमता रखते हैं। यह युद्धपोत स्वदेशी सामर्थ्य, संसाधन और प्रतिभा का प्रतीक है। इसके आने से भारत की समुद्री ताकत कई गुना बढ़ गई है। वैसे भारत के पास पहले से विमानवाहक पोत हैं, लेकिन वे ब्रिटेन या रूस निर्मित हैं। भारत ने ब्रिटेन से दो विमानवाहक पोत ‘एचएमएस हरक्यूलिस’ (आईएनएस विक्रांत-1) तथा ‘एचएमएस हर्मीस’ (आईएनएस विराट) खरीदे थे, जबकि रूस से सोवियत काल का युद्धपोत ‘एडमिरल गोर्शकोव’ (आईएनएस विक्रमादित्य) खरीदा था, जो नौसेना के जंगी बेड़े का हिस्सा हैं। रक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक, अत्याधुनिक तकनीक, स्वचालित यंत्रों और तमाम सुविधाओं से युक्त पोत बनाकर भारत ने नौसैन्य क्षेत्र में अपनी क्षमता प्रदर्शित की है।
नौसेना के मुताबिक इसका लगभग 76 प्रतिशत हिस्सा देश में मौजूद संसाधनों से ही बना है। इसमें लगी संचार प्रणाली, नेटवर्क सिस्टम, शिप डाटा नेटवर्क, हथियार व कॉम्बेट मैनेजमेंट सिस्टम आदि स्वदेशी हैं। इसका डिजाइन नौसेना के संगठन युद्धपोत डिजाइन ब्यूरो ने तैयार किया है, जबकि इसका निर्माण बंदरगाह, जहाजरानी व जलमार्ग मंत्रालय के तहत कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड ने किया है।
बढ़ती ताकत से चीन तिलमिलाया
भारतीय नौसेना के बेड़े में आईएनएस विक्रांत को शामिल किए जाने के बाद चीन तिलमिलाया हुआ है। वहां सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने अपने संपादकीय में इसकी तुलना अपने तीसरे विमानवाहक पोत टाइप 003 फूजियान से करते हुए आईएनएस विक्रांत का मखौल उड़ाने की कोशिश की। उसने लिखा कि भारत के पहले स्वदेशी विमानवाहक पोत की तैनाती पर पश्चिमी मीडिया में बहुत तारीफ की गई है। दावा किया जा रहा है कि इस पोत ने भारत को दुनिया की नौसैन्य शक्तियों की विशिष्ट श्रेणी में पहुंचा दिया है। यह क्षेत्र में चीन की बढ़ती सैन्य आक्रामकता का मुकाबला करने में मील का पत्थर साबित होगा। साथ ही, लिखा है कि पश्चिमी मीडिया चीनी नौसना को आईएनएस विक्रांत का मुख्य लक्ष्य के तौर पर पेश कर चीन-भारत को उकसा रहा है। इससे भारत के लोगों में चीन को लेकर राय बनेगी और सरकार पर बीजिंग के खिलाफ फैसले लेने का दबाव बनेगा। हालांकि बाद में अपना रुख बदलते हुए उसने पश्चिमी मीडिया को सलाह देते हुए लिखा है कि यह भारत के लिए जश्न मनाने का पल है। भारत को पश्चिमी देशों की चापलूसी और उकसावे से बचना चाहिए। साथ ही, पूछा है कि क्या वाकई पश्चिम भारत की इस उपलब्धि पर खुश है? अखबार ने चाइना इंस्टीट्यूट आॅफ इंटरनेशनल स्टडीज में एशिया पैसिफिक स्टडीज विभाग के निदेशक लैन जियानक्स्यू के हवाले से लिखा है कि चीन ने भारत को कभी खतरा नहीं माना और न ही उसे एक काल्पनिक प्रतिद्वंद्वी और लक्ष्य के रूप में देखा है।
विक्रांत का अर्थ है— विजयी एवं वीर। ब्रिटेन से खरीदे गए पहले विमानवाहक पोत ‘एचएमएस हरक्यूलिस’ का नाम भी आईएनएस विक्रांत रखा गया था, जिसने पाकिस्तान के साथ 1971 के युद्ध में अहम भूमिका निभाई थी। यह 1997 में सेवानिवृत्त हुआ था। उसी के प्रति प्रेम और गौरव की भावना को प्रदर्शित करने के लिए इसका नाम ‘आईएनएस विक्रांत’ रखा गया। इसकी सामान्य गति 33 नॉट प्रतिघंटा और अधिकतम गति 51 नॉट प्रतिघंटा है। एक बार में यह 13 हजार नॉट से अधिक की दूरी तय कर सकता है। यह समुद्र में चलता-फिरता किला है।
इस पर 20 युद्धक विमान और 10 हेलिकॉप्टर तैनात होंगे। नवंबर से इस पर मिग-29 की तैनाती शुरू हो जाएगी। दुश्मन की पनडुब्बियों पर नजर रखने के लिए इस पर छह एंटी-सबमरीन हेलिकॉप्टर तैनात किए जाएंगे। इसमें वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं से लेकर आईसीयू सहित चिकित्सा से जुड़ी सभी आवश्यक सेवाएं उपलब्ध हैं। यह किसी भी खतरे से निबटने में सक्षम है। यह एंटी सबमरीन वॉरफेयर से लेकर मिसाइल व अत्याधुनिक चेतावनी प्रणाली से लैस है।
नौसेना के लिए भारत में निर्मित ‘एलसीए तेजस’ भी इससे उड़ान भर सकते हैं। आईएनएस विक्रांत की विमानों को ले जाने की क्षमता और इसमें लगे अत्याधुनिक और खतरनाक हथियारों के कारण यह दुनिया के कुछ खतरनाक पोतों में शामिल है। इसीलिए इसे नौसेना की शान व नए भारत का अभिमान माना जा रहा है।
आईएनएस विक्रांत का भारत में निर्माण संभव नहीं था। 2002 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार से मंजूरी मिलने के बाद कोचीन शिपयार्ड में इसका निर्माण शुरू हुआ, पर 2005 में रूस ने वारशिप ग्रड स्टील देने से मना कर दिया। तब भारतीय नौसेना और रक्षा अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशाला की मदद से सेल ने इसके लिए स्टील तैयार किया। भारत इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड, भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड, किर्लाेस्कर, एलएंडटी, केल्ट्रॉन, जीआरएसई, वार्टसिला इंडिया तथा कई अन्य बड़े औद्योगिक निर्माता इसके निर्माण कार्य से जुड़े रहे। 100 से भी अधिक मध्यम और लघु उद्योगों ने भी इसमें लगे स्वदेशी उपकरणों तथा मशीनरी के निर्माण में मदद की।
हिंद महासागर क्षेत्र में चीन के युद्धपोतों और पनडुब्बियों की बढ़ती गतिविधियों के मद्देनजर भारत के लिए आईएनएस विक्रांत जैसे स्वदेशी विमानवाहक पोत की सख्त जरूरत थी। फिलहाल देश के अलग-अलग शिपयार्ड में 39 युद्धपोत बन रहे हैं और जल्द ही 43 पोत और सबमरीन का निर्माण कार्य शुरू होगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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