आज झारखंड गोतस्करी के मामले में पश्चिम बंगाल के बाद सबसे ज्यादा चर्चित रहता है। शायद ही ऐसा कोई दिन जाता होगा जब राज्य के किसी ना किसी हिस्से में गोतस्करी या चोरी का मामला ना आता हो। इसके बावजूद राज्य सरकार इस मामले पर कोई कार्रवाई नहीं करती। इस कारण राज्य में गोतस्कर गोवंश की चोरी भी करने लगे हैं। इसका सबसे ज्वलंत उदाहरण है कठरेवा गांव।
यह गांव रामगढ़ जिले के मांडू थाने में पड़ता है। कठरेवा मुस्लिम बहुल गांव है। इस कारण गांव के हिंदुओं को अनेक प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
बात 10 सितंबर की एक घटना से शुरू करते हैं। यहां के कोलेश्वर महतो के घर 10 सितंबर की देर रात दो बैलों की चोरी हो गई। रात में उनकी नींद टूटी तो अपने बैलों को ना देखकर वे परेशान हो गए। इसके बाद वे पड़ोस के कुछ लोगों के साथ अपने बैलों को ढूंढने के लिए निकले। एक जगह उन्हें दो मुसलमान लड़के (सुखा अंसारी अब्बा अनशेद अंसारी और सरवर अंसारी अब्बा तैयब अंसारी) मिले। ये दोनों हुआग गांव के रहने वाले हैं और दो बैलों को लेकर कहीं जा रहे थे। हालांकि वे दोनों बैल कोलेश्वर के नहीं थे। इसके बावजूद कोलेश्वर और उनके साथियों ने उन दोनों युवकों से पूछा कि इतनी रात में इन्हें कहां ले जा रहे हो ? उन दोनों युवकों ने बताया कि काटने के लिए ले जा रहे थे। बाद में वहां पुलिस बुलाई गई और दोनों लड़कों को पुलिस को सौंप दिया गया। फिर कुछ देर बाद कोलेश्वर महतो और सुरेंद्र महतो ने थाने में एक आवेदन देकर बताया कि उनके बैलों की चोरी हो गई है। उस आवेदन में उपरोक्त दोनों मुसलमान लड़कों की कहीं कोई चर्चा नहीं है। इसके बावजूद उन दोनों युवकों के घर वालों ने कोलेश्वर और सुरेंद्र पर दबाव बनाया कि आवेदन वापस ले लो। ऐसा न करने पर उन्हें जान से मारने की धमकी दी गई। इसके बाद भी पुलिस ने दोनों लड़कों को बॉन्ड भरवा कर छोड़ दिया।
कठरेवा गांव के राजेश महतो ने बताया कि इस गांव में गोवंश की चोरी बराबर होती है। इसकी शिकायत पुलिस से भी की गई है और जनप्रतिनिधियों को भी बताया गया है। इसके बावजूद गोवंश की चोरी रुक नहीं रही है। कठरेवा के बगल में ही हुआग गांव है। हमारे सूत्रों ने बताया कि यहां प्रतिदिन जानवरों को काटा जाता है और उसका मांस अनेक स्थानों पर भेजा जाता है। इसकी जानकारी आसपास के सभी गांवों के लोगों को है। लोग बताते हैं कि रात में 1:00 से 4:00 के बीच में जानवरों की कटाई होती है और फिर मांस से भरी गाड़ियां चारों दिशाओं में भागने लगती हैं। इतने बड़े पैमाने पर जानवरों की हत्या होती हो और स्थानीय प्रशासन और पुलिस को पता ना हो, इस पर कोई भरोसा नहीं करेगा। इसके बावजूद प्रशासनिक अधिकारी कहते हैं कि उन्हें इसकी कोई जानकारी नहीं है।
मांडू थाने के प्रभारी नवीन कुमार ने बताया कि जिन दो लड़कों को बैलों के साथ पकड़ा गया था, उन्हें फिलहाल बॉन्ड भर कर छोड़ दिया गया है लेकिन जरूरत पड़ने पर उनसे और पूछताछ की जाएगी।
हालांकि पुलिस की कार्रवाई से या उसके आश्वासन पर जल्दी कोई भरोसा नहीं कर पा रहा है। क्योंकि अभी कुछ दिन पहले गोतस्करों ने एक महिला पुलिसकर्मी को गाड़ी से कुचल कर मार दिया था। लोग कहते हैं कि जब गोतस्कर पुलिस को भी नहीं छोड़ रहे हैं तो फिर आम आदमी को वे क्यों छोड़ेंगे? यही कारण है कि पूरे प्रदेश में गोतस्करों का दुस्साहस चरम पर है। कई ऐसी घटनाएं सामने आई हैं जिसमें यह पाया गया है कि दिन में कुछ गोतस्कर व्यापारी बनकर गांव में जाते हैं और लोगों से गोवंश या अन्य जानवरों की खरीदारी की बात करते हैं। दरअसल खरीदारी तो एक बहाना है, इनका उद्देश्य यह देखना होता है कि किसके घर में कितने जानवर हैं और वे कहां रखे जाते हैं। अनेक ग्रामीणों ने बताया कि ऐसा अक्सर देखा जाता है कि जब कोई जानवर खरीदने के लिए गांव आता है तो उसके कुछ दिन बाद ही उस गांव में जानवरों की चोरी हो जाती है। ऐसी घटनाओं को देखते हुए लोग सतर्क और सजग रहते हैं। इस कारण कुछ चोर पकड़े भी जा रहे हैं। लेकिन पुलिस और गोतस्करों के बीच ऐसी साठ गांठ होती है कि गोतस्कर जल्दी ही छूट जाते हैं और फिर वही चोरी और तस्करी करने लगते हैं।
बता दें कि झारखंड से बड़ी संख्या में गोवंश की तस्करी कर उन्हें बांग्लादेश भेजा जाता है और जो जानवर बच जाते हैं उन्हें किसी कसाईखाने में भेज दिया जाता है।
यह बात भी देखने को मिल रही है कि जबसे झारखंड में हेमंत सोरेन की सरकार बनी है तबसे जानवरों की तस्करी बढ़ी है। झारखंड में गोतस्करी रोकने के लिए 17 साल पहले एक कानून भी बना था, लेकिन उस कानून की रक्षा करने में पुलिस और प्रशासन पूरी तरह विफल हो रहा है।
दस वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय। राजनीति, सामाजिक और सम-सामायिक मुद्दों पर पैनी नजर। कर्मभूमि झारखंड।
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